१८५७ ई. की क्रांति में राजस्थान के आउवा ठाकुर कुशल सिंह से सम्बन्धित दोहे
एरनपुरा व डीग के क्रांतिकारी सैनिक आऊवा में आकर ठाकुर खुशाल सिंह के नेतृत्व में इकत्रित हो गये। मेवाड़ और मारवाड़ के कई और भी सामंत आ जूटे शेखावाटी से मंडावा ठाकुर ने भी सैन्य सहायत भेजी।
इन वीरों ने निश्चय कर लिया कि अंग्रेजों को यहाँ से निकाल कर देश को आजाद करेंगे। अंग्रेजी फौजें व जोधपुर की फौजे इनके मुकाबले पर आ पहुंची। जोधपुर की सेना के सेनापति अनाड सिंह व राजमल दोनों मारे गये। सिमली के ठाकुर सगत सिंह ने केप्टन मेसन को मार डाला। जोधपुर से दूसरी सेना जिसके मुसाहिब कुशल राज सिंघवी व दीवान विजयमल थे ,ये दोनों भी युद्ध क्षेत्र से भाग निकले। इस पराजय से लज्जित हो अंग्रेजों व जोधपुर की विशाल सेनाये अपने तोपखाने के साथ आऊवा पर चढ़ आयी। ठाकुर कुशल सिंह ने भंयकर युद्ध किया। २००० हजार सैनिको को मार डाला और तोपखाने की तोपे छीन ली। ब्रिगेडियर जनरल सर पैट्रिक लारेंस मैदान छोड़ कर भाग गया। इतनी बड़ी पराजय से फिरंगीयों को होश ऊड गये। अजमेर ,नसीराबाद ,मऊ व नीमच की छावनियो से फोजे आऊवा पंहुची। सब ने मिलकर आऊवा पर हमला बोल दिया। क्रांति कारी सामन्तो के किलों को सुरंग से उड़ा दिया। आउवा को लूटा। सुगली देवी की मूर्ति अंग्रेज उठा ले गये।
चवादा उगनिसे चढे ,जे दल आया जाण।
रह्या आउवे खेत रण , पुतलिया पहचानण।।
भावार्थ : सवंत १९१४ में अंग्रेज आउवा पर चढ़ आये और यह चढ़ कर आने वाला दल आउवा में काम आया यानि रण खेत रहा। इसकी पहचान यहाँ रुपी हुयी पथर प्रतिमाये हैं।
हुआ दुखी हिंदवाण रा , रुकी न गोरां राह।
विकट लडै सहियो विखो , वाह आऊवा वाह।।
भावार्थ :गोरों की राह नही रुकी ,पूरा हिदुस्तान दुखी है। आऊवा के स्वामी ने विपतियाँ झेलकर विकट लडाई लड़ी ,धन्य है आपको।
फिर दोळा अऴगा फिरंग ,रण मोला पड़ राम।
ओळा नह ले आउवो ,गोळा रिठण गाम।।
भावार्थ :फिरंगियों ने बड़ी तेजी से आउवा गाव को घेर लिया,उसी गति से उन्हें वापस लोटना पडा। हार जाने से उन का नूर उतर गया। युद्ध के डर से बहाना बनाने वाला आउवा गाँव नही है।,यह तो गोलों की बोछार करने वाला गाँव है।
फीटा पड़ भागा फिरंग मेसन अजंट मराये।
घाले डोली घायलां ,कटक घणे कटवाय।।
भावार्थ : फीटा यानि निर्लज्ज होकर अंग्रेज भाग छुटे ,अपने रेजिडेंट मेसन का मरवाकर। बहुत से सैनिको को मरवाकर घायलों को डोली में दाल कर भाग छुटे ।
काळा सूं मिल खुसलसी , टणके राखी टेक।
है ठावो हिंदवाण में ,ओ आउवो एक।.
अजंट अजको आवियो ,ताता चढ़ तोख़ार।
काळा भिडिया कीडक न ढिब लिया खग धार।।
प्रसणा करवा पाधरा ,घट री काढण छूंछ।
क्रोधिला खुसियाल री ,मिलै भुन्हारा मूंछ।।
थिर रण अरियाँ थोगणी , नधपुर पुगो नाम।
आऊवो खुसियाल इल ,गावे गांवों गाँव।।
१८५७ ई. की क्रांति में राजस्थान के योगदान को सही जगह नही मिल पाई इस के लिए केवल व केवल राजस्थान के कांग्रेसी जिम्मेदार हैं। क्यों की मैं इस लिए अच्छा नही हूँ की मैं अच्छा हूँ बल्कि तुम को ख़राब साबित करूंगा तब ही तो मैं अछा हूँ। और यह राजस्थान की बात नही पुरे देश में यही हुआ। इस को भुगतेगा कोन ? हम तो भुगत ही रहे हैं पर जो अपने आप को सेकुलेर कह रहे है उन को बहुत भुगतना पड़ेगा।
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