Tuesday, October 30, 2012

हंस व सरोवर


भमतै भमतै हंसडै , दीठा बहु निध नीर !
पण इक धडी न बिसरे , मानसरोवर तीर।।

भावार्थ; घूमते घूमते हंस ने बहुत तालाब देखे ,किन्तु एक घडी के लिए भी मानसरोवर के तट को वह भूल
नही सका।

हँसा सरवर न तजो , जे जल थोडा होय।
डाबर डाबर डोलता , भला न कहसी कोय।।

भावार्थ ;अगर सरोवर में जल थोडा भी हो गया तोभी  हे हंसो सरोवर को मत  छोड़ो क्यों की छोटे छोटे तालाबों
में फिरते तुम भले नही लगोगे।

सरवर केम उतावालो , लामीं छोल न  लेय।
आयां छा उड़ ज्याव स्यां , पांख संवारण देय।।

भावार्थ;  हे सरोवर तूं उतावला क्यों हो रहा है,यह लम्बी लम्बी झोल क्यों मार रहा है,आये हैं फिर उड़ जायेंगे,
             थोड़ी सी पंखों को विश्राम करने दे।
                 
जावो तो बरजूं नही, रैवो तो आ ठोड।
हंसा न सरवर घणा, सरवर हंस  किरोड़।।

भावार्थ;  अगर आप को जाना है तो मेरी तरफ से कोई रुकावट नही,और रहना है तो यह जगह है। अगर हंसों के
            लिए सरवर की कमी नही तो सरोवर के लिए भी करोडो हंस है।

और घणा ही आवसी , चिड़ी कमेडी काग।
हंसा फिर न आवसी,सुण सरवर निरभाग।।

भावार्थ; हे निरभागी सरोवर तुम्हारे पास चिड़ी कामेडी व काग जैसे बहुत से आयेंगे लेकिन हंस फिर नही आयेंगे।

सरवर हंस मनायले , नेडा थकां बहोड़।
जासूं लागे फूटरो, वां सूं तांण म तोड़।। 

भावार्थ; हे सरोवर हंसों को मनाले, अभी कोई देर नही हुई है। जिनसे सुंदर लगते हो उनसे सम्बन्ध नही तोड़ने
            चाहिए।

Wednesday, October 3, 2012

Welcome

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शेखावाटी का प्राचीन इतिहास

                                   

                                   शेखावाटी का प्राचीन इतिहास    

आमेर (जयपुर ) के शासक कछवाहा राजवंश से प्रादुर्भूत शेखावत क्षत्रियों ने अपने मूल स्थान 

अमरसर से उठ कर विगत तीन सौ वर्षों के लम्बे समय (स .1500-1800 विक्रमी ) से शनैः 

शनैः उन समस्त प्रान्तों को ,उन के तत्कालीन शासकों से जीत कर अपने अधिकार में किया 

और तभी से यह अनेक परगनों वाला विशाल भूभाग शेखावाटी नाम से प्रसिद्ध हुआ।

           किन्तु इस से पहले यह भूभाग किस नाम से जाना जाता था, इस पर किन राजवंशो ने 

शासन किया, इस पर सबसे पहले ठाकुर सुरजन सिंघजी झाझड की पुस्तक "शेखावाटी का 

प्राचीन इतिहास" नामक पुस्तक से प्रकाश पड़ता है। इस पुस्तक का नम्र निवेदन स्वयम 

ठा . सुरजन सिंह जी व भूमिका डॉ . उदयवीर जी शर्मा द्वारा लिखित यहाँ ज्यों कि त्यों उध्रत 

है, 

                                                          नम्र निवेदन

राजस्थान का मरुभूमि वाला  पुर्वोतरी एवम पश्चिमोतरी विशाल भूभाग वैदिक सभ्यता के 

उदय का उषा काल माना जाता है। हजारों वर्ष पूर्व भूगर्भ में विलुप्त वैदिक नदी सरस्वती यहीं 

पर प्रवाह मान थी, जिसके पावन तटों पर   तपस्यालीन आर्य ऋषियों ने वेदों के सूक्तों की 

सरंचना की थी।सिधुघाटी सभ्यता के  अवशेषों एवं विभिन्न संस्कृतियों के परस्पर मिलन 

,विकास उत्थान और पतन की रोचक एवं रोमंचक गौरव गाथाओं को अपने विशाल अंचल में छिपाए यह मरुभूमि