Thursday, August 29, 2013

राजस्थानी दोहे (वियोग व श्रंगार )

                             राजस्थानी दोहे (वियोग व श्रंगार )

मिलण भलो बिछटण बुरो , मिल बिछुडो मत कोय। 
फिर मिलणा हंस बोलणा , देव करे जद होय।।

भावार्थ : (यह वो जमाना था जब सवांद के आज के से साधन नही थे ) मिलना अच्छा बिछुड़ ना बुरा। अगर एक दफा मिल गये तो ईश्वर उन का विच्छोह न करे। क्यों कि फिर मिलना ,हंस बोलना तो देव करेगा तब ही होगा।

जो धण होती बादली ,तो आभे जाये अडंत। 
पंथ बहन्ता साजना , ऊपर छाह करंत।। 

भावार्थ : पति यात्रा पर निकला है ,धुप हो गयी है। पत्नी कहती है अगर मैं बदली होती तो ऊपर आकाश में अड़ जाती और रस्ते में चलते मेरे साजन पर छांह कर देती।

 आडा डूंगर बन घणा ,  जंहा हमारा मीत। 
देदे दाता पंखडी , मिल मिल आऊं नित।। 

भवार्थ : बहुत से पर्वत और वन मेरे व मेरे प्रियतम की राह में बाधक हैं। हे दाता मेरे पंख देदे सो मैं  रोज उन से मिल आऊं।

बिजलियाँ जलियाँ नही , मेहा तूं तो लज्ज। 
सूनी सेज विदेश पीव ,मधरो -मधरो गज्ज।।

  ऎ बिड़ला ऎ बाग़ , आज लगो अण खांवणा। 
भलो अमीणो भाग , बालम तों बारां बहे।।

धर अम्बर इक धार , पाणी नालां पड़े।
 आलिजो इण बार ,बालमियो बाटां बहे।।

 घसिया बादल धुर दिशा , चंहु दिशियाँ चमकंत। 
मन बसिया आज्यो महल , कामण रसिया कंत।।

घर घर चंगी गोरड़ी ,गावे मंगला चार। 
कंथा मति चुकाय ज्यो ,तीज तणों त्योंहार।।

सावण आवण कह गया , कर गया कोल अनेक। 
गिणता-गिणताघिस गई ,आंगलियां री कोर।।

सूरज थाने पुजस्याँ ,भर मोत्यां रो थाल। 
चिन के मोड़ो आंथियो , बादिलो रमे से शिकार।।

कागद को लिखबो किसो ,कागद सिष्टाचार। 
बो दिन भलो जो उगसी ,मिलस्याँ बांह पसार।।



  


2 comments:

  1. अनमोल संग्रह ..

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  2. हिंदी भाषा ही नहीं, और न सिर्फ़ ज़ुबान।
    यह अपने जह हिंद के नारे की पहचान॥
    हिंदी में जन्मे-पले, बड़े हुए श्रीमान।
    अब इंग्लिश में कर रहे, हिंदी का अपमान॥
    वायुयान में बैठकर, कैसा मिला कुयोग।
    हिंदुस्तानी लोग ही, लगे विदेशी लोग॥
    हिंदी इतनी है बुरी, तो फिर स्वर को खोल।
    अपना हिंदी नाम भी, अंगरेज़ी में बोल॥
    ‘डी ओ’ “डू” तो क्या हुआ ‘जी ओ’ का उच्चार।
    अंगरेजी का व्याकरण, कितना बदबूदार॥
    अंगरेजी ने कर दिये, पैदा कैसे “मैड”।
    माँ को कहते हैं “ममी” और पिता को “डैड”॥
    टीवी की हिंदी दिखी, अंगरेजी की चोर।
    भारत चुप था इण्डिया मचा रही थी शोर॥
    अंगरेजी के शब्द तक, कर लेती स्वीकार।
    अपने भारत देश सी, हिंदी बड़ी उदार॥
    अंगरेजी के पक्षधर, अंगरेजी के भाट।
    अपने हिंदुस्तान को, कहीं न जाएँ चाट॥

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