Sunday, December 21, 2014

भरतपुर के जाट राजा सूर्यमल्ल की मृत्यु का वृतांत - " शाही दृश्य " लेखक  माखन लाल गुप्ता  गर्क। यह पुस्तक नागरी प्रचारणी सभा ,काशी से १९२६ ई  में प्रकाशित हुयी है।

फ़्रांसिसी समरू  की सहायता क्या प्राप्त हुयी  वह फूलकर कुप्पा हो गया,जिसके कारण उसकी दूरदर्शिता व बुद्धि का हास हो गया। उसने बादशाह के सामने फरुखनगर की फौजदारी मांगी। नजीबखां ने जाट राजा से शीघ्र बिगाड़ करना ठीक नही समझा और एक दूत उसको समझाने भेजा। मुग़ल दूत व जाट राजा के बीच जो अदभुत वार्ता हुयी वह उल्लेख योग्य है। 
एलची जो भेंट लेकर उपस्थित हुआ उसमे एक फूलदार छींट का थान भी था,जिसे देख कर गंवार नरेश इतना अधिक मग्न व मोहित हुआ की तुरंत ही उसके वस्त्र सिलवाने की आज्ञा देदी। जाट राजा ने उस समय जो कुछ भी वार्तालाप किया ,वह केवल उस थान के बारे में ही किया ,और दूसरी बात करने का दूत को अवसर ही नही दिया। दूत ने मन में सोचकर विदा मांगी की संधि के संबंध में दूसरे समय चर्चा करूंगा। चलते समय उसने कहा - "ठाकुर साहेब ,जल्दी में कुछ कर न बैठना। मैं कल तुमसे फिर मिलूंगा। " परन्तु मुग्ध नरेश ने उत्तर दिया -" जो तुम्हे ऐसी ही बात करनी है तो ,फिर मुझ से मत मिलो " 
दूत ने सारी बात वैसी की वैसी मंत्री नजीबुद्दौला को सुना दी।  मंत्री ने कहा " ऐसी बात है तो हम अवश्य उस काफिर से लड़ेंगे और उसे दण्ड देंगे। "
परन्तु मुग़ल सेनापति दिल्ली से बाहर निकलते उस से पहले ही सूर्यमल्ल शहादरे  के निकट हिण्डोन पर आ लगा जो दिल्ली से ६ मील  दुरी पर है। किन्तु जिस स्थान पर वह आया पुरानी शिकारगाह थी ,उसका इस भूमि पर आने का शायद यह प्रयोजन था की हमने शाही शिकारगाह का शिकार कर लिया। जब वे अचेत होकर टटोल और खोज कर रहे थे ,तब मुगल रिसाले का एक दस्ता भागता हुआ आ पंहुचा।  उसने राजा को पहचान लिया और  अचानक जाटों पर टूट कर  सब को मार डाला और राजा की   लाश उठा कर नजीबखां के पास ले गए ले गये। पहले  वजीर को इस अकस्मात सफलता पर विश्वास नही  हुआ। पर जब उस दूत ने  जो थोड़े समय पहले जाटों  शिविर से लौट कर आया था ,लाश के उन कपड़ों को देख कर अनुमोदन किया ,जो उस छींट के थान के बने थे। 
इसी बीच जाट सेना अपने मनमाने झूठे संरक्षण में सूर्यमल्ल के पुत्र जवाहर सिंह के नीचे सिकंदराबाद से कूच कर रही थी कि उस पर अचानक मुग़ल सेना के हरावल ने छापा मारा जिसके एक  सवार ने  बल्लम पर सूर्यमल्ल का कटा सिर झंडे के रूप में लगा हुआ था। इस अमंगल दृश्य को देखने से हलचल  मची  उस ने  जाटों के पाँव उखाड़ दिए ,जिससे हट कर वे अपने देश को आ गए।  






Friday, December 19, 2014

देविदास जी ढूसर वंशीय वश्ये थे .राजा रायसल जी खण्डेला के दीवान .बहुत ही योग्य व्यक्ति।  इन्होने नीति के दोहे / कवित  लिखे हैं।  कुछ इस प्रकार हैं-

छोटे छोटे पेड़न को सुलन की बार करो,
         पातरे से पौधा जिन्हे पानी दे के पारिबो।
नीचे  गिर गये तिन्हे देदे टेक ऊँचे करो ,
                 ऊँचे बढ़ गए ते जरूर काट डारिबो।
फूले फूले -फूल सब बीन एक ठौर करो ,
               घने घने रूंख एक ठौर ते उखारिबो।
राजन को मालिन को नित्य प्रति देवीदास ,
               चार घडी रात रहे इतनो विचार बो। १।.

कौन यह देश कौन काल कौन बैरी मेरो ,
             कौन हेतु कौन मोहि ढिग तेन टारिबो।
केतो आय केतो खर्च केतो बल ,
             ताही उनमान मोहि मुखते निकारबो।
संपत के आवन को कौन मेरे अवरोध ,
              ताहि को उपाय यह दाव उर धारिबो।
राजनीति राजन को दिन प्रति देवीदास ,
              चार घडी रात रहे इतनो विचारबो।। २।.