राजस्थानी दोहे
कायर ,कुदत ,कपूत ,मेहणों लागे जलमियां।
सूरो सुदत ,सपूत ,नामी इण धर निपजे।।
भावार्थ :कायर ,कंजूस व कपूत इन के जन्म से कुल कलंकित होता है। किन्तु इस राजस्थान कि जमीन पर तो शूरवीर ,दानी व सपूत ही पैदा होते हैं।
एक राजपूत खिंवरा बिखे में आ गया यानि विपति में आगया फिर भी अपनी सामर्थ्य को कम नही होने दिया ,कैसे -
गुधलियो तो ही गंग जल , सांखलियो तोही सिंह।
विखायत तोहि खिंवरो ,खांकलियो तोही दिह।।
भावार्थ : अगर गंगाजल गुधला भी गया हो तो भी उसकी महिमा कम नही होती। अगर सिंघ को सांकलो में जकड़ भी दिया जाये तो भी सिंघ तो सिंघ ही है। इसी तरह खीवसी भी विपति में होने से भी वैसा ही है। अगर दिन यानि सूर्य आंधी की गर्द से ढका है तो भी दिन ही है।
पक्षपात प्रत्यक युग में अपना प्रभाव दिखता है। चापलूसी से मुर्ख व्यक्ति भी मुंशीगिरी प्राप्त कर लेता है अयोग्य होने पर भी योग्य व्यक्ति के सिर पर जा बैठता है -
कागां सरखा कुमांणसां ,पंखा बळ फळ खाय।
सिंघ सबळ बिण पंख कै ,नीचे फिर फिर जाय।।
पख बड़ा सो नर बड़ा ,पख बिना बड़ा न कोय।
पंख आया कीड़ी उड़े ,गिरवर उड़े न कोय।।
भावार्थ :- कौआ जैसा कुमाणस इस लिये फल खाता है क्यों की उसके पास पंख है और सिंह जैसा सबल बिना पंखो के पेड़ के निचे फिर कर चला जाता है।
जिस व्यक्ति का पक्ष सबल वह बड़ा आदमी ,बिना पक्ष के कोई बड़ा नही हो सकता। पंख आने से कीड़ी भी उड़ने लगती है पर बिना पंखों के पर्वत जैसा शक्ति शाली भी उड़ नही सकता।
हे नरो ! सत्य का मार्ग मत छोड़ो क्यों कि सत्याचरण छोड़ने से स्वयम की कुल की व समाज की प्रतिष्ठा मिट जाएगी -
सत मत छोड़ो हे नरां ,सत छोड्या पत जाय।
सत की बांधी लिछमी ,फेर मिलेगी आय।
कायर ,कुदत ,कपूत ,मेहणों लागे जलमियां।
सूरो सुदत ,सपूत ,नामी इण धर निपजे।।
भावार्थ :कायर ,कंजूस व कपूत इन के जन्म से कुल कलंकित होता है। किन्तु इस राजस्थान कि जमीन पर तो शूरवीर ,दानी व सपूत ही पैदा होते हैं।
एक राजपूत खिंवरा बिखे में आ गया यानि विपति में आगया फिर भी अपनी सामर्थ्य को कम नही होने दिया ,कैसे -
गुधलियो तो ही गंग जल , सांखलियो तोही सिंह।
विखायत तोहि खिंवरो ,खांकलियो तोही दिह।।
भावार्थ : अगर गंगाजल गुधला भी गया हो तो भी उसकी महिमा कम नही होती। अगर सिंघ को सांकलो में जकड़ भी दिया जाये तो भी सिंघ तो सिंघ ही है। इसी तरह खीवसी भी विपति में होने से भी वैसा ही है। अगर दिन यानि सूर्य आंधी की गर्द से ढका है तो भी दिन ही है।
पक्षपात प्रत्यक युग में अपना प्रभाव दिखता है। चापलूसी से मुर्ख व्यक्ति भी मुंशीगिरी प्राप्त कर लेता है अयोग्य होने पर भी योग्य व्यक्ति के सिर पर जा बैठता है -
कागां सरखा कुमांणसां ,पंखा बळ फळ खाय।
सिंघ सबळ बिण पंख कै ,नीचे फिर फिर जाय।।
पख बड़ा सो नर बड़ा ,पख बिना बड़ा न कोय।
पंख आया कीड़ी उड़े ,गिरवर उड़े न कोय।।
भावार्थ :- कौआ जैसा कुमाणस इस लिये फल खाता है क्यों की उसके पास पंख है और सिंह जैसा सबल बिना पंखो के पेड़ के निचे फिर कर चला जाता है।
जिस व्यक्ति का पक्ष सबल वह बड़ा आदमी ,बिना पक्ष के कोई बड़ा नही हो सकता। पंख आने से कीड़ी भी उड़ने लगती है पर बिना पंखों के पर्वत जैसा शक्ति शाली भी उड़ नही सकता।
हे नरो ! सत्य का मार्ग मत छोड़ो क्यों कि सत्याचरण छोड़ने से स्वयम की कुल की व समाज की प्रतिष्ठा मिट जाएगी -
सत मत छोड़ो हे नरां ,सत छोड्या पत जाय।
सत की बांधी लिछमी ,फेर मिलेगी आय।
No comments:
Post a Comment