अकबर महान -पाठ्य पुस्तकों में यह घोल घोल कर पिलाया जाता है कि अकबर महान शासक था। पर वास्तव में वह विदेशी आक्रान्ता था ,क्रूर था। चितोड़ में जब जोहर व साका हो गया , सारे राजपूत व राजपुतानिया मारे गये उस के बाद में उसने चितोड़ में ३०००० आम नागरिकों की हत्या की।
अकबरी दरबार नाम से एक पुस्तक जिसका की हिंदी में अनुवाद आज से लगभग ८६ वर्ष पहले हुआ है में एक जगह संगरवाल (प्रयाग ) के युद्ध के बाद की घटना का वर्णन है -उसने आज्ञा दी कि जो नमक हरामों का सिर काट कर लावेगा ,उसे पुरस्कार दिया जाये गा। विलायती सिर के लिए एक असरफी व हिंदुस्तानी सिर के लिए एक रुपया नियत हुआ। हाय अभागे हिन्दुस्तानियों,तुम्हारे सिर कट कर भी सस्ते रहे। लशकर के लोग गोद में भर कर विपक्षियो के सिर लाते व मुट्ठियाँ भर कर रूपये व अशर्फियां लेते।
इसी पुस्तक में मुल्ला ने बीरबल के बारे में लिखा है -असल में देखो तो यह भाट थे। विद्या व पांडित्य स्वयम ही समझ लो कि भाट क्या और उस की विद्या तथा पांडित्य की बिसात क्या। पुस्तक तो दूर रही ,आज तक एक श्लोक भी नही देखा जो गुणवान पंडितों की सभा में अभिमान के स्वर में पढ़ा जाये। एक दोहा नही सुना जो मित्रों में दोहराया जाये। यदि योग्यता देखो तो कंहा राजा टोडरमल और कंहा ये। यदि आक्रमणों व विजयों को देखें तो किसी मैदान में कब्जे को नही छुआ। और उस पर दसा यह की सारे अकबरी नोरत्नो में एक दाना भी पद और मर्यादा में उनसे लग्गा नही खाता।
मुल्ला जी आगे लिखते हैं - बादशाह को बचपन से ही ब्राह्मणों ,भाटों और अनेक प्रकार के हिन्दुओं के प्रति विशेष अनुराग था। एक ब्राह्मण भाट मंगता ,जिसका नाम ब्रह्मदास था और जो कालपी का वाला था और हिन्दुओं का गुणगान जिसका पेशा था ,लेकिन जो बड़ा सुरता व सयाना था ,बादशाह के राज्यरोहण के आरम्भिक दिनों में ही आया और उसने नोकरी कर ली। सदा पास रहने और बराबर बातचीत करने के कारण उसने बादशाह का मिजाज पूरी तरह पहचान लिया और उन्नति करते करते इतने उच्च पद पर पंहुच गया कि "मैं तो तूं हो गया और तूं मई हो गया। मैं तो शरीर हो गया व तूं प्राण हो गया "
शेरशाह सूरी ने हुमायु को जब इस देश से खदेड़ दिया तो वह उमरकोट होते हुए इरान गया। उस समय इरान के शाह तहमास्प ने एकांत एकांत में सहानुभूति प्रगट करते हुये हुमायु से साम्राज्य के विनाश का कारण पुच्छा तो उसने भाइयों के विरोध व वैमनष्य को इस का कारण बताया। तो शाह ने पुच्छा -प्रजा ने साथ नही दिया ? हुमायु ने उत्तर दिया ,वे लोग हमसे भिन्न जाती व धर्म के लोग हैं। शाह ने कहा अबकी बार वहां जाओ तो उन लोगों से मेल कर के ऐसी अपनायत बना लेना कि कंही मध्य में विरोध का नाम ही न रह जाये।
खान आजम अकबर का विश्वास पात्र सेनापति था। वो प्रायह कहता था कि अमीर के चार स्त्रियाँ होनी चाहिए -पास बैठने व बातचीत करने के लिए ईरानी , घर गृहस्थी का काम करने के लिए खुरासानी , सेज के लिए हिंदुस्तानी और एक चौथी तुरकानी जिसे हरदम केवल इसलिए मारते पिटते रहें कि जिस से और स्त्रिया डरती रहें।
अकबरी दरबार नाम से एक पुस्तक जिसका की हिंदी में अनुवाद आज से लगभग ८६ वर्ष पहले हुआ है में एक जगह संगरवाल (प्रयाग ) के युद्ध के बाद की घटना का वर्णन है -उसने आज्ञा दी कि जो नमक हरामों का सिर काट कर लावेगा ,उसे पुरस्कार दिया जाये गा। विलायती सिर के लिए एक असरफी व हिंदुस्तानी सिर के लिए एक रुपया नियत हुआ। हाय अभागे हिन्दुस्तानियों,तुम्हारे सिर कट कर भी सस्ते रहे। लशकर के लोग गोद में भर कर विपक्षियो के सिर लाते व मुट्ठियाँ भर कर रूपये व अशर्फियां लेते।
इसी पुस्तक में मुल्ला ने बीरबल के बारे में लिखा है -असल में देखो तो यह भाट थे। विद्या व पांडित्य स्वयम ही समझ लो कि भाट क्या और उस की विद्या तथा पांडित्य की बिसात क्या। पुस्तक तो दूर रही ,आज तक एक श्लोक भी नही देखा जो गुणवान पंडितों की सभा में अभिमान के स्वर में पढ़ा जाये। एक दोहा नही सुना जो मित्रों में दोहराया जाये। यदि योग्यता देखो तो कंहा राजा टोडरमल और कंहा ये। यदि आक्रमणों व विजयों को देखें तो किसी मैदान में कब्जे को नही छुआ। और उस पर दसा यह की सारे अकबरी नोरत्नो में एक दाना भी पद और मर्यादा में उनसे लग्गा नही खाता।
मुल्ला जी आगे लिखते हैं - बादशाह को बचपन से ही ब्राह्मणों ,भाटों और अनेक प्रकार के हिन्दुओं के प्रति विशेष अनुराग था। एक ब्राह्मण भाट मंगता ,जिसका नाम ब्रह्मदास था और जो कालपी का वाला था और हिन्दुओं का गुणगान जिसका पेशा था ,लेकिन जो बड़ा सुरता व सयाना था ,बादशाह के राज्यरोहण के आरम्भिक दिनों में ही आया और उसने नोकरी कर ली। सदा पास रहने और बराबर बातचीत करने के कारण उसने बादशाह का मिजाज पूरी तरह पहचान लिया और उन्नति करते करते इतने उच्च पद पर पंहुच गया कि "मैं तो तूं हो गया और तूं मई हो गया। मैं तो शरीर हो गया व तूं प्राण हो गया "
शेरशाह सूरी ने हुमायु को जब इस देश से खदेड़ दिया तो वह उमरकोट होते हुए इरान गया। उस समय इरान के शाह तहमास्प ने एकांत एकांत में सहानुभूति प्रगट करते हुये हुमायु से साम्राज्य के विनाश का कारण पुच्छा तो उसने भाइयों के विरोध व वैमनष्य को इस का कारण बताया। तो शाह ने पुच्छा -प्रजा ने साथ नही दिया ? हुमायु ने उत्तर दिया ,वे लोग हमसे भिन्न जाती व धर्म के लोग हैं। शाह ने कहा अबकी बार वहां जाओ तो उन लोगों से मेल कर के ऐसी अपनायत बना लेना कि कंही मध्य में विरोध का नाम ही न रह जाये।
खान आजम अकबर का विश्वास पात्र सेनापति था। वो प्रायह कहता था कि अमीर के चार स्त्रियाँ होनी चाहिए -पास बैठने व बातचीत करने के लिए ईरानी , घर गृहस्थी का काम करने के लिए खुरासानी , सेज के लिए हिंदुस्तानी और एक चौथी तुरकानी जिसे हरदम केवल इसलिए मारते पिटते रहें कि जिस से और स्त्रिया डरती रहें।
शानदार ऐतिहासिक जानकारी
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