मै कल स्वामी विवेकानंद जी का अमेरिका से राजा अजीत सिंह जी को लिखा पत्र पढ़ रहा था जिसमे उन्होंने लिखा क्षत्रिय इस देश की अस्थि व मज्जा है, क्षत्रिय कमजोर हुए तो भारत भी कमजोर हुआ। आज राजस्थानी के मानेता साहित्यकार कवि श्री उदयराज जी ऊज्ज्वल का एक दोहा पढ़ा जो कुछ इसी भाव का है। -
रहणा चुप नाही रजपूतो, धारो कुळ मारग अवधूतो !
पोखो अब तो मात सपूतो , मिलसी देस न तो सहभूतो !!
हे ! राजपूतो अब चुप रहने का वक्त गया। अपने कुळ धर्म को धारण करो हे ! अवधूतो। हे मातृभूमि के सपूतो इस देश की रक्षा करो, नही तो यह देश गर्त में मिल जायेगा।
किसीने भी पैदा करने वाले भगवान को देखा नही ,पर पैदा करने वाली माँ को सभी जानते हैं ,वो केवल पैदा नही करती पर बड़ा भी करती है ,वो भगवन से कम कैसे हो सकती है. जो धर्म इस को नही समझता वह कैसा धर्म।
रहणा चुप नाही रजपूतो, धारो कुळ मारग अवधूतो !
पोखो अब तो मात सपूतो , मिलसी देस न तो सहभूतो !!
हे ! राजपूतो अब चुप रहने का वक्त गया। अपने कुळ धर्म को धारण करो हे ! अवधूतो। हे मातृभूमि के सपूतो इस देश की रक्षा करो, नही तो यह देश गर्त में मिल जायेगा।
किसीने भी पैदा करने वाले भगवान को देखा नही ,पर पैदा करने वाली माँ को सभी जानते हैं ,वो केवल पैदा नही करती पर बड़ा भी करती है ,वो भगवन से कम कैसे हो सकती है. जो धर्म इस को नही समझता वह कैसा धर्म।
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