सर प्रताप सिंह जोधपुर के महाराजा तख्त सिंह के छोटे बेटे थे ,पर
जोधपुर में पहले कचहडियां व सचिवालय गुलाबसागर तालाब पर राजमहल में थी। एक बार तालाब भरा नही। खाली तालाब देख कर सर प्रताप बोले 'तालाब क्यों नही भरा अबकी बार ' तो उनके चहते व स्पष्ट वक्ता बारहठ भोपाल दान जी ने कहा :
कने आं रै कचेडियाँ , तीण सूं खाली तलाव !
का डेरा कागा करो , का भेजो भांडेलाव !!
कचेडीयों( यानि सचिवालीय या कोर्ट ) इस तालाब के पास होने से यह हालत है क्यों की यहाँ न्याय नही अन्याय होता है।सो इन को कागा या भांडेलाव में शिफ्ट करदो (दोनों ही शमशान थे ) जिस से अफसरों को अपना अंतिम स्थान पता रहे।
गुसे में कही गयी बात उपयुक्त नही थी सो उन्होंने दूसरा दोहा कहा -
बाडो बड़ो घिरावदो , दरवाजा सूं दूर !
करवाओ उठे कचेडियां, शहर सवायो नूर
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