जीवन कर्म सहज भीषण है ,
उसका सब सुख केवल क्षण है,
यधपि लक्ष्य अदृश्य धूमिल है ,
फिर भी वीर ह्रदय ! हलचल है।
अंधकार को चीर अभय हो ,
बढ़ो साहसी ! जग विजयी हो।
( स्वामी विवेकानन्द )
उसका सब सुख केवल क्षण है,
यधपि लक्ष्य अदृश्य धूमिल है ,
फिर भी वीर ह्रदय ! हलचल है।
अंधकार को चीर अभय हो ,
बढ़ो साहसी ! जग विजयी हो।
( स्वामी विवेकानन्द )
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