मुगलों के समय रियासतों के प्रतिनिधि आगरे में रहते थे जिन्हें वकील कहा जाता था ,इन का काम आज के राजदूतो जैसा था। ये लोग अपने राजा व मंत्री को दरबार की गतिविधियों के बारे में सूचित करते रहते थे।
एक पत्र प्रकाल दास का कल्याण दास को शुक्रवार 23 फरवरी 1666 ई. का -
"शाहजहाँ की मोत इस तरह हुई। पहले वे बीमार हुये ,फिर ठीक हो रहे थे उसने फरमाया 'अब हम नहायेंगे 'और कहा कि ओरंगजेब को लिखो कि तबियत बिगड़ी हुई है। ओरंगजेब ने एक ऐसा हकीम भेजा ,उसने शाहजहाँ को अर्ज पहुंचाई कि बिना तेल मत नहाना ,भेजे हुए तेल की पहले मालिश करना ,जिस से शरीर में ताकत आये ,उस ने तेल बना कर सुबह भेजा ,उस तेल को लगते ही बादशाह के शरीर की त्वचा फट गयी ,उसमे जहर मिला था।
बादशाह के पास ओरंगजेब ने अपने बेटे आजम को भेजा था ,वह एक दिन ठहरा ,मृत्यु काल के समय भी वह बादशाह के पास नही आया। खोजे फुम यहाँ था ,यह नाजर था व आगरे का किलादर था। उसने रात में मोरी दरवाजे सेअपमानित अवस्था में जनाजा निकाला। उमरावो ने कंधा नही दिया और कहारों के कन्धो पर ताबूत देकर बाड़े में लाकर रखा और ताजमहल के मकबरे में गाडा।
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