Thursday, May 2, 2013

कुंभाथल वाही किसी ,जोग री जमदडढ !
जाण असाढ़ी बीजली , कालै बादल कडढ !!
भावार्थ :
भाटी जोगादास की कटारी उस भीमकाय काले हाथी के मस्तक पर इस प्रकार तीव्रता से जा घुसी ,मानो अषाढ़ के काले बादल में बिजली कोंधी हो।

महाराजा शूर सिंह जी जोधपुर ने भाटी गोयन्दास को अपना प्रधान बनाया व लवेरा की जागीर दी , इन्ही गोयंद दास के पुत्र जोगीदास भाटी थे। यह महाराजा का विश्वस्त सेवक व साहसी योधा था। सम्वत १६६८ में बादशाह जांहगीर की फोज  दक्षिण की तरफ जा रही थी ,उस में कई राजा व नवाब भी साथ थे। उसी समय एक विचित्र घटना घटी। आमेर के कछावाह राजा मान सिंह के एक उमराव का हाथी मदोन्मत हो गया और संयोग से भाटी जोगीदास अपने घोड़े पर बैठा उधर से निकल रहा था। उस मदोन्मत एवं भीमकाय हाथी ने सहसा अपनी सूंड से जोगीदास को घोड़े की पीठ से उठाकर निचे पटका और दांतों से उसे आर पार वेध डाला। जोगीदास ने हाथी के दांतों में पिरोये हुए और बिंधे हुए शरीर से भी अपनी कटारी निकाल कर तीन प्रहार कर उसके कुमभ्सथल पर घाव कर डाले। जोगीदास भाटी के इस साहस को देख कर लोग दंग रह गये। राजा मान सिंह ने तो उसकी वीरता से प्रभावित हो वह हाथी महाराजा  शूर सिंह को भेंट कर दिया।

No comments:

Post a Comment