एक बार एक चारण चुरू आया। गढ़ के गोखे पर अपना धोती लोटा छोड़ कर गढ़ के अंदर गया। वापिस आया तो धोती लोटा दोनों गायब थे। तब चारण ने कहा :
चुरू रांड चाँदडी , कुण आवेगो थारे !
धोती लोटो खो दियो , ईं गोखै कै सा रै !!
चुरू ठाकुर साब को मालूम पड़ा तो उन्होंने चारण को नई धोती व लोटा दिलवा दिया ,और चारण को कहा अपने वचनों को फेर। तब चारण ने दूसरा दोहा कहा :
चुरू होसी चोगुनी , धीरा होसी धींग !
दो खिडा उड़ ज्यावसी , ज्यों सावन की भींग !!
चुरू रांड चाँदडी , कुण आवेगो थारे !
धोती लोटो खो दियो , ईं गोखै कै सा रै !!
चुरू ठाकुर साब को मालूम पड़ा तो उन्होंने चारण को नई धोती व लोटा दिलवा दिया ,और चारण को कहा अपने वचनों को फेर। तब चारण ने दूसरा दोहा कहा :
चुरू होसी चोगुनी , धीरा होसी धींग !
दो खिडा उड़ ज्यावसी , ज्यों सावन की भींग !!
बढिया
ReplyDeleteउत्तम और अतिउत्तम
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