Friday, May 3, 2013

ठाकुर खंगार सिंह लाडखानी के पास एक चारण आकर रुका हुआ था, रात में चारण ने सेवक को हुक्का भर कर लाने के लिए आवाज दी किन्तु बार बार पुकारने पर भी जब सेवक नही जागा तो स्वयम खंगार सिंह ने हुक्का भरकर चारण को पकड़ा दिया। चारण ने क्रोध में दो -चार बेंत खंगार सिंह को सेवक समझ कर लगा दी।
सुबह चारण को लगा की उसे रात में क्रोध नही करना चाहिए था। उसने सेवक को कहा  की रात में गलती से क्रोध में तुम्हे बेंत जड  दी उस के लिए मुझे दुःख है. किन्तु जब सेवक ने कहा कि मैंने तो रात में आप को हुक्का भर कर नही दिया था। तब तो चारण को वास्तविक स्थिति मालूम हुई, और उसे बड़ा पशचाताप हुआ और उसने निम्न दोहा कहा :

लाडाणी जस लुटियो , मांडाणी जग मांय !
कीरत हंदा  कोरडा , त्राता जुगां न जाय  !!

भावार्थ : हे लाडाणी (लाडखानी खंगार सिंह ) तुमने इस संसार में बड़ा यश लूट लिया है, यह कीर्ति के चाबुक युगों तक याद रखे जायेंगे।

भृगु लात उर में दई , पग मोरा बल हीन !
खागा जस रै कारणे , सह्या कोरडा तीन !!

 

3 comments:

  1. बहुत ही उम्दा

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