Friday, May 24, 2013

राजस्थान में छपनिया अकाल की स्मृति हमारे बचपन तक पुराणी पीढ़ी में ज्यों कि त्यों बनी हुई थी। यह दुर्भिक्ष विक्रमी सम्वत १ ९ ५ ६  यानि इसवी सन  १ ८ ९ ९  में पड़ा था। मेरे बचपन से कोई ५ ४ वर्ष पहले। उस समय तक छपनिया काल के नाम से ही पुराणी पीढ़ी में दहशत सी पैदा होती थी। अकाल आज की नई पीढ़ी के लिए न समझ में आने वाली बात है, किन्तु उस अकाल के समय लोगो के पास न्योलियो में पैसे होने के बाद भी अनाज नही होने से मृत्यु के मुंह में जाना पड़ा। इस सम्बन्ध में एक कवित है जो इस प्रकार है :

निरभय नारायण सुधि सिर नाऊँ ,
पर हर संशय भय बुद्धि वर पांवु!
सम्वत छपने रो कवण सिर लोको ,
लोकिक लेवण ने सांमल ज्योलोको  !!१
पांचो ,आठो , दस पनरो खू पडयो,
सतरे  बिसे हय खतरे में खडिया  !
पुलियों पचीसो चोतिसो चुलयो ,
अड़तालिसो भी अंतर आकुलियो !!२
पीढ़ी पर पीढ़ी पोतो जी पाया ,
अगले कालारां दादोजी आया  !
कालप चावी कर भावी भुज भेटी ,
मोटा मोटा री माविती मेटी  !!३
सुख सूं सूती थी पिरजा सुखियारी ,
दुष्टि आंतां ही करदी दुखियारी  !
जग में उसरियो खापरियो जेरी ,
वाला बिछोडण बापरियो बैरी !!४
माणस मुरधरिया  माणक सम मूंगा ,
कोडी कोडी रा करिया श्रम सुंगा  !
डाढ़ी मूं छाल़ा डलिया मै डूलिया ,
रलियाँ जायोड़ा गलियाँ मै रुलिया !!५


आफत मोटि न खोटी पुल आई ,
रोटी रोटी न रैयत रोवाई !
आड़ी ओंखलिया खायोड़ा आदा ,
लाडा कोड़ा में    जायोड़ा लाडा  !!६
सारी सृष्टि में कुंडल छल करियो ,
भारी हा हा रव भूमंडल भरियो  !
वसुदा काली री ताली तड बागी ,
भिडिया सोनारी चिड़िया पड़ भागी !!७
महनत मजदूरी मासक घण मोला,
बिलखा बिगतालू  आसक अण बोला !
बांठा बांठा में ठाठा ठा ठरिया ,
भुका मरतोड़ा मरिया गुण भरिया !!८
खांचे शुकर वत कूकर भिनकावे ,
जोगा कांपन तन खापण विनजावे !
मुरदा मरघट में पड़िया नह मावे ,
सीडिया बासे सब भकरन्द भभकावे !!९
आडा खाड़ा में भोडक अडबडता ,
सन्ता आसण ज्यूँ तुंबा तड़ बडता !
ग्रिधा गरणावे खावे तन खांचे ,
राम द्वारा में रांडा ज्यूँ राचे  !!१ ०

सतियां महा सतियाँ केता तन सोहे ,
मधुरि बाणी मुख प्राणी मन मोहे !
राजपूताणी रुच सिंचाणी सिरखी ,
नेणा जल भरती सेणा थल निरखि !!१ ४
सुंदर सुकुलिणी झीणी साड़ी में ,
जुलाफां सपणी जिम अपनी  आड़ी में !
सूनी ठाणी में सेठाणी सोती ,
रेगी बिरयाणी  पाणी ने रोंती !!१ ५
जंगल जंगल में जूनी जणयाणी ,
धोला धोरयाँ री धूनी घरयाणी !
खोटे तोटे नग कणीया बिखरगी ,
माहब मोटे दुःख जाटणियां मरगी !!१ ६
सूकी सुदराणी   झाडा रे सारे ,
लादी बिदरानी बाड़ा रे लारे !
सद व्रत करतोड़ी वर्णाश्रम सेवा ,
काड़े मरतोडी रेवा तट केवा !! १ ९

 





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