राजस्थानी के प्रसिद्ध कवी बद्रिदान जी गाडण (हरमाड़ा ) ने राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलवाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री भैंरू सिंह जी को रिझाने के लिए प्रशंसा में दो गीत लिख भेजे , किन्तु उस पर जब कोई प्रतिक्रिया नही हुई तो कवी ने उलाहना के दोहे भी बना भेजे :
मायड़ भाषा मोह ,उकसयो मोनू इसो !
तो मैं कियो मतोह , तोने बिडदावण तणो !१ !
मैं जाणी मन मांय , बिडदायां हिमत बंधे !
पण थारी न पाय , दिसी भैंरू देवरा ! २ !!
आगै ख्यात अनेक , बीडदायां सिर बोलिया !
इण कलयुग में एक , भणक न लागी भैरवा ! ३ !!
लोही थारो लाल ,मिलतो टोडरमाल सो !
कलजुग तणी कुचाल , भेळ दियो मळ भैरजी !! ४ !!
पख पोखर रै पाण , एक न सबद उचारियो !
अदत बिलोपी आण , मायड भाखा री मुदै !५!!
तारीफां थारीह , बे बे गीत बणाविया !
मत गुमी म्हारीह , पातर नह पिछाणीयो !६!!
सेखा ! थारी साख , बधाई मैं बावलै !
रै नह सकियो राख , तूं भैरूं देवा तणा !!७!!
बंस बिगाडू व्यास , चाटुकार मोनू कवै !
उर बिच होय उदास , जहर तिको ही जरावियो !!८!!
बात पोस बिजोह , खिज्यो मो माथै खरो !
रै ! तो पर रिझ्योह , भोळप म्हारी भैरजी !!९!!
मैं बिन्हू गीतां मांय , कबाई खाई किना !
निपट ताहरै नांय ,आ पूँजी माण्डी अजे !!१०!!
सुख बणतां सिन्धिह ,कुळ गोरव अनुभव करै !
बंस तण बिन्दिह , भली लगाई भैरजी !!
गीत इस प्रकार था :
" गीत शेखावत भैंरू सिंघ रो "
(बद्रिदान गाडण कहै )
राज भाजपा सजग प्रभारी , भैंरू सुभट बिजै हर भारी !
राजथान भान अणभंगी , सुर धानुख प्रभा सतरंगी !!१!!
भावर्थ :
हे विजय सिंह के पोते सुभट भैरूं सिंह तुम भाजपा राज के सजग करता धरता हो। तुम राजस्थान के अभंग सूर्य हो ,इंद्र धनुष की सतरंगी प्रभा हो।
सेखावत मोटा सींगाल़ा , त्रहकै जीत तणा त्रम्बाला !
तों उभां बैरी बिगताला, सकै किसूं बळ संच बडाला !!२!!
भावार्थ :
हे सिंगोवाले(मारकणा) बड़े सेखावत तुम्हारी जीत के नगारे गूज रहे हैं ,त्रह्क रहे हैं। तेरे खड़े रहते बैरी केवल तांक झांक करते है ,सामना नही कर सकते, तुम्हें शंका किस से है हे ! पराक्रमी (बडाला )बल का संचय कर।
तू भीखम भारथ भुज तोका , साहस सील स पुन्य सिलोका !
राजनीती रण पंडित रुडा , चाकर जगत प्रबुधा चुडा !!३ !!
हिये लोक हित रा नित हामी , निरभै जन नेता घण नामी !
बाग विदग्ध दग्ध अरि दावा , सज्जण सुध्द बिसुद्ध सुभावां !!४!!
लोकतंत्र रा मन्त्र सलोखा , प्रजातंत्र पहरायत पोखा !
माडाणी लेणा जस मोडां , लाड़ाणी कीरत धन लोड़ा !!५!!
भाषा राजथान दुःख भांगण, अरज करै ऊभी अनुरागण !
कुण बैसाणे ऊंचै आसण , दुनिया बणी खड़ी दुशासन !!६!!
आसगर तों सूं अजकाला , बिलखे आज द्रोपदी बाला !
हिमत कर नर हीमत हाला , बधा किसन ज्यूँ चीर बडाल़ा !!७!!
भावर्थ :
सारा भार तुम्हारे कन्धो पर है महाभारत के भीष्म की तरह ,हे साहस व शील के पुन्य श्लोक । राजनीतीक
युद्ध के तुम अच्छे (रुड़े ) खिलाडी हो, पंडित हो। हृदय से लोकहित के हामी हो ,हिमायती हो।निर्भीक जन नेता के रूप में आप का घणा नाम है।वाक पटुता और दुश्मन के दावपेंचो को दग्ध करने वाले हो।स्वभाव में विशुद्ध सज्जनता है। लोकतंत्र के श्रेष्ठ मन्त्र ,प्रजातंत्र के पोषक पहरेदार अपने सिर पर यश का मोड़ ,सेहरा बंधवालो। हे लाडखानी भैरू सिंह !कीर्ति के धन को एकत्रित करलो। हे राजस्थानी भाषा के दुःख को भांजने वाले यह अनुरागी भाषा ऊभी आप से अर्ज कर रही है। इस को कौन अपने ऊच स्थान पर फिर से स्थापित करेगा, दुनिया इस के मार्ग में दुशासन बनी खड़ी है। हे अजकाला यानि तेज गति वाले तुम्हारे से ही आशा है (आसागर ) द्रोपदी आज बिलख रही है। हे हिम्मत वाले नर हिम्मत कर व कृष्ण की तरह चिर को बढ़ा।
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"आगै ख्यात अनेक ,बिडदाया सिर बोलिया "
जैसलमेर के साके में राव दुर्जन साल काम आ गया तो उनकी पत्नी ने चारण सांदू हूपा को अपने पति का शीश लेने गुजरात के विजयी सुलतान के पास भेजा। जब चारण ने अपने आने का मन्तव्य सुल्तान को बताया तो उस ने कहा इन सिरों के ढेर में ढूंढ़लो। इस पर हुँपा ने कहा इस की जरूरत ही नही पड़ेगी ,जब मै राव के विरुद का बखान करूंगा तो सिर अपने आप बोल पड़ेगा। ऐसा प्रसिद्ध है कि राव दुर्जन साल का सिर बोलने लगा कि अरे हूपा यदि इस समय मेरे हाथ पांव होते तो मै इस बेग्ड़े को मार कर अभी बदला ले लेता।
मायड़ भाषा मोह ,उकसयो मोनू इसो !
तो मैं कियो मतोह , तोने बिडदावण तणो !१ !
मैं जाणी मन मांय , बिडदायां हिमत बंधे !
पण थारी न पाय , दिसी भैंरू देवरा ! २ !!
आगै ख्यात अनेक , बीडदायां सिर बोलिया !
इण कलयुग में एक , भणक न लागी भैरवा ! ३ !!
लोही थारो लाल ,मिलतो टोडरमाल सो !
कलजुग तणी कुचाल , भेळ दियो मळ भैरजी !! ४ !!
पख पोखर रै पाण , एक न सबद उचारियो !
अदत बिलोपी आण , मायड भाखा री मुदै !५!!
तारीफां थारीह , बे बे गीत बणाविया !
मत गुमी म्हारीह , पातर नह पिछाणीयो !६!!
सेखा ! थारी साख , बधाई मैं बावलै !
रै नह सकियो राख , तूं भैरूं देवा तणा !!७!!
बंस बिगाडू व्यास , चाटुकार मोनू कवै !
उर बिच होय उदास , जहर तिको ही जरावियो !!८!!
बात पोस बिजोह , खिज्यो मो माथै खरो !
रै ! तो पर रिझ्योह , भोळप म्हारी भैरजी !!९!!
मैं बिन्हू गीतां मांय , कबाई खाई किना !
निपट ताहरै नांय ,आ पूँजी माण्डी अजे !!१०!!
सुख बणतां सिन्धिह ,कुळ गोरव अनुभव करै !
बंस तण बिन्दिह , भली लगाई भैरजी !!
गीत इस प्रकार था :
" गीत शेखावत भैंरू सिंघ रो "
(बद्रिदान गाडण कहै )
राज भाजपा सजग प्रभारी , भैंरू सुभट बिजै हर भारी !
राजथान भान अणभंगी , सुर धानुख प्रभा सतरंगी !!१!!
भावर्थ :
हे विजय सिंह के पोते सुभट भैरूं सिंह तुम भाजपा राज के सजग करता धरता हो। तुम राजस्थान के अभंग सूर्य हो ,इंद्र धनुष की सतरंगी प्रभा हो।
सेखावत मोटा सींगाल़ा , त्रहकै जीत तणा त्रम्बाला !
तों उभां बैरी बिगताला, सकै किसूं बळ संच बडाला !!२!!
भावार्थ :
हे सिंगोवाले(मारकणा) बड़े सेखावत तुम्हारी जीत के नगारे गूज रहे हैं ,त्रह्क रहे हैं। तेरे खड़े रहते बैरी केवल तांक झांक करते है ,सामना नही कर सकते, तुम्हें शंका किस से है हे ! पराक्रमी (बडाला )बल का संचय कर।
तू भीखम भारथ भुज तोका , साहस सील स पुन्य सिलोका !
राजनीती रण पंडित रुडा , चाकर जगत प्रबुधा चुडा !!३ !!
हिये लोक हित रा नित हामी , निरभै जन नेता घण नामी !
बाग विदग्ध दग्ध अरि दावा , सज्जण सुध्द बिसुद्ध सुभावां !!४!!
लोकतंत्र रा मन्त्र सलोखा , प्रजातंत्र पहरायत पोखा !
माडाणी लेणा जस मोडां , लाड़ाणी कीरत धन लोड़ा !!५!!
भाषा राजथान दुःख भांगण, अरज करै ऊभी अनुरागण !
कुण बैसाणे ऊंचै आसण , दुनिया बणी खड़ी दुशासन !!६!!
आसगर तों सूं अजकाला , बिलखे आज द्रोपदी बाला !
हिमत कर नर हीमत हाला , बधा किसन ज्यूँ चीर बडाल़ा !!७!!
भावर्थ :
सारा भार तुम्हारे कन्धो पर है महाभारत के भीष्म की तरह ,हे साहस व शील के पुन्य श्लोक । राजनीतीक
युद्ध के तुम अच्छे (रुड़े ) खिलाडी हो, पंडित हो। हृदय से लोकहित के हामी हो ,हिमायती हो।निर्भीक जन नेता के रूप में आप का घणा नाम है।वाक पटुता और दुश्मन के दावपेंचो को दग्ध करने वाले हो।स्वभाव में विशुद्ध सज्जनता है। लोकतंत्र के श्रेष्ठ मन्त्र ,प्रजातंत्र के पोषक पहरेदार अपने सिर पर यश का मोड़ ,सेहरा बंधवालो। हे लाडखानी भैरू सिंह !कीर्ति के धन को एकत्रित करलो। हे राजस्थानी भाषा के दुःख को भांजने वाले यह अनुरागी भाषा ऊभी आप से अर्ज कर रही है। इस को कौन अपने ऊच स्थान पर फिर से स्थापित करेगा, दुनिया इस के मार्ग में दुशासन बनी खड़ी है। हे अजकाला यानि तेज गति वाले तुम्हारे से ही आशा है (आसागर ) द्रोपदी आज बिलख रही है। हे हिम्मत वाले नर हिम्मत कर व कृष्ण की तरह चिर को बढ़ा।
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"आगै ख्यात अनेक ,बिडदाया सिर बोलिया "
जैसलमेर के साके में राव दुर्जन साल काम आ गया तो उनकी पत्नी ने चारण सांदू हूपा को अपने पति का शीश लेने गुजरात के विजयी सुलतान के पास भेजा। जब चारण ने अपने आने का मन्तव्य सुल्तान को बताया तो उस ने कहा इन सिरों के ढेर में ढूंढ़लो। इस पर हुँपा ने कहा इस की जरूरत ही नही पड़ेगी ,जब मै राव के विरुद का बखान करूंगा तो सिर अपने आप बोल पड़ेगा। ऐसा प्रसिद्ध है कि राव दुर्जन साल का सिर बोलने लगा कि अरे हूपा यदि इस समय मेरे हाथ पांव होते तो मै इस बेग्ड़े को मार कर अभी बदला ले लेता।
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