Saturday, May 4, 2013

स्वामी विविदिषानंद से स्वामी विवेकानंद - राजा अजीत सिंह जी खेतड़ी

स्वामी विवेकानन्द का नाम पहले विविदिषानंद था। इनका खेतड़ी राजा अजीत सिंह जी से बड़ा घनिष्ठ सम्बन्ध था।राजा अजीत सिंह अपने समय के बहुत ही प्रतिभावान राजा थे। समकालीन राजा, प्रजा व अंग्रेज उन्हें बहुत सम्मान देते थे। स्वामी जी लम्बे समय तक खेतड़ी में रहे। उस समय राजाजी ने कहा कि स्वामी जी आप का नाम तो विवेकानंद होना चाहिए क्यों कि 'विविदिषा ' का अर्थ है जिज्ञासा काल जो कि खत्म हो चूका है। आप तो महान विवेकी हैं सो आप विविकानंद नाम धारण करो , स्वामीजी ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया।

स्वामी जी ने साफा बांधना भी खेतड़ी में ही सीखा, जो इनकी वेश भूषा की पहचान ही बन गया । इन्होने खेतड़ी के राज पंडित   नारायणदास से अष्टाध्यायी व महा भाष्य का अध्यन किया। स्वामीजी पंडत जी को अपना अध्यापक मानते थे।

खेतड़ी से जाने के बाद जब स्वामी जी मद्रास में थे तो उन्हें अमेरिका के शहर  शिकागो में होने वाले सर्व  धर्म सम्मेलन का पता लगा। ये उस में जाने के लिए आतुर हो उठे ,किन्तु खर्च की व्यवस्था नही हो पा  रही थी। जब इस बात का पता राजा अजित सिंह जी को लगा तो उन्होंने अपने निजी सचिव मुंशी जगमोहन लाल को मद्रास भेज कर स्वामीजी को खेतड़ी बुलाया। फिर पैसे की पूरी व्यवस्था कर अमरीका भेजा। मुंशी जगमोहन लाल को स्वामी जी के साथ बम्बई भेजा गया, जहाँ स्वामी जी के लिए कपड़े आदि बनाये गये व जहाज का प्रथम श्रेणी का टिकट खरीद कर दिया गया।

सर्वधर्म सम्मेलन में स्वामी जी ने जो जो विलक्षण व विद्वता पूर्ण भाषण दिया वह इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस भाषण से स्वामी जी की कीर्ति पूरे विश्व में फैल गयी।

स्वामी जी ने अमेरिका से पहला पत्र  राजा अजीत सिंह जी को लिखा - " श्रीमन , श्री नारायण आपका तथा आपके सम्बन्धियों का  कल्याण करे। श्रीमन की कृपा पूर्ण सहायता से ही मैं इस देश में आ सका .................क्षत्रिय ही भारत वर्ष की अस्थि मज्जा है। "

स्वामीजी ने एक सभा में कहा था -" भारत वर्ष की उन्नति के लिए जो थोडा बहुत मैंने किया वह कभी नही होता यदि राजाजी मुझे नही मिलते।"

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