Wednesday, March 13, 2013

शेखावत सुजाण सिंह टोडरमलोत

शेखावत सुजाण सिंह टोडरमलोत   

ओरंग जेब  ने जब खंडेला के देव मन्दिर को तोड़ने के लिए शाही सेना भेजी तो राजाजी ने खंडेला खाली कर पहाड़ों की शरण ली ,जैसा कि उस समय की युद्ध पद्धति थी . किन्तु जब यह बात शादी कर लोटते हुए श्याम सिंह जी छापोली को मालूम हुई तो उन्होंने दृढ़ निश्यच के साथ कहा की यह धरती हमारी है मै रायसल का प्रपोत्र  हूँ , हमारे जीते जी देवमंदिर डहया नही जा सकता। नव विवाहिता दुल्हन को छापोली रवाना कर वे अपने जाबांज योधाओं के साथ खण्डेला के देव मन्दिर की रक्षार्थ सनिध हो गये और जीते जी यवनों को मंदिर में प्रवेश नही करने दिया। आज भी शेखावाटी प्रदेश में यह लोक गीत बड़े गर्व से गाया जाता है -" झिर मर झिर मर मेवा बरसे मोरां छत्री छाई ,कुल में है तो आव सुजाणा फौज देवरे आई "    डॉ . गोरधन सिंह जी गुड़ा की यह कविता :

मोहन जी के मंदिर से 
खंडेला के खंडर से 
आती है बेबस सी 
हर वक्त पुकार 
किसी दिन यहाँ लड़ा था 
झुंझ मरा था 
मंदिर की मर्यादा खातिर 
वह कर्मवीर 
वह धर्मवीर 
वह रणधीर 
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कंकण भी जिसका खुला नही 
मेंहदी का रंग भी घुला नही 
उस संध्या को संख बजा 
रण साज सजा 
शादी के सपने भुलाकर 
अरि को गहरी नीद सुलाकर 
टोडरमल की आन निभा कर 
चढ़ गया बलि वेदी पर 
नाद गगन भेदी कर 
सुजाण सिंह महान 
जानता सारा जहान 
आज भी -गवाले गाते 
मस्त हो नाचते 
मेह की झड़ियों में 
झिरमिर -२ मेवा बरसे 
मोरां छतरी छाई
कुल में है तो आव सुजाणा 
फोज देवरा आई 
  

गीत सुजाण सिंघ जी रो 
(खंडेला के मोहन जी के मंदिर को ध्वस्त करने ओरंगजेब ने सेना भेजी। सुजाण सिंघजी छापोली ने मंदिर की रक्षार्थ साका किया। )

नही आज जैसिंघ जसराज जगतो नही
           दे गया खत्री सह पूठ दूजा।
प्रथि पालट हुवै पाट मंदिर पड़ै
           सादी मोहण करै आव सूजा।।

भावार्थ :- आज जयपुर महाराज सवाई जय सिंह ,जोधपुर महाराजा जसवंत सिंह व उदयपुर महाराणा जगत सिंह नही रहे। दूसरे सभी क्षत्रिय पीठ दे गए। आज मंदिर को ध्वस्त कर पृथ्वी पर गिराया जा रहा है। मोहन जी महाराज तुम्हे पुकार रहे हैं -हे सुजाणसिंघ आवो मेरी सहायता करो।

महासुत गजनसुत करणसुत गया मुगत
            राय अन परहरै धरम रेखा।
सांकड़ी बार अब राखै तो सूं रहै
           सरम मो परम ची बिया सेखा।।

भावार्थ :- महासिंघ का पुत्र जयसिंघ ,गजसिंघ का पुत्र जसवतसिंघ ,करणसिंघ का पुत्र जगतसिंघ ये सभी मुक्ति धाम को चले गए यानी स्वर्गवासी हो गए और ओरंगजेब को मौका मिल गया। दूसरे राजाओं ने धर्म की रेखा छोड़ दी। इस संकट के समय मुझ परमेश्वर की शर्म का भार हे ! दूसरे सेखा अब तुम्हारे पर है।

मानहर मालहर अमरहर वींस मै
          आन पह ओसंकै नकू आया।
आज हूँ एकलो असुर दल उलटियो
          जुडण काज पधारो स्याम जाया।।

भावार्थ :- मानसिंघ ,मालदेव व अमरसिंघ के पौत्र यानि जयसिंघ ,जसवतसिंघ व जगतसिंघ वींसमै विश्राम कर रहे है स्वर्ग में। और दूसरे राजा आसंकित हैं भयभीत हैं इस लिए रक्षार्थ नही आये। आज मैं अकेला हूँ और असुरां का दल उलटकर आ गया है। हे स्याम सिंह के पुत्र सूजण सिंह युद्ध में जुटने के लिए पधारो।

साद सुण सेहरौ बाँध हंस ऊससौ
          प्रीति हुति जिसो परख पायौ।
बाद सुरताण सूं मांड खग बाहतौ
         असुर दल गाहतो बेलै आयो।।

भावार्थ :-साद सुण यानी सहयता की पुकार सुन सेहरा बाँध हंस कर उत्साहित हुआ। जैसी उससे प्रीति थी वैसा ही उसे परख कर पाया। सुलतान से बाद कर तलवार चलाते हुए ,असुरों के दल को गाहता हुआ (बेल) सहायता के लिये आया।

पाड़ पातसाह धड़ सिराणे पोढियो
                देव नर सरिखौ न कौ दूजो।
मार मेछाण दल सूज मिलै
             पथर पाडो तथा कोय पूजौ।।

भावार्थ :-बादशाह की सेना से युद्ध करते हुये मंदिर के सिरहाने सुजाणसिंघ सदा के लिए सो गया। मलेछो को मार कर सुजाणसिंघ ज्योति में मिल गया अब कोई पथर उखाड़े या उसे पूजे।






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