Sunday, April 8, 2012

rajasthani dohe


                                                                   
                                                                                   राजस्थानी दोहे
                                                                              (सुरजन सिंघजी शेखावत झाझड )

राजस्थानी (डिंगल ) साहित्य के छन्द विधान में दोहा समस्त प्रकार के छंदों की मणि माला में सुमेरु के स्थान पर शोभायमान है .छंद शास्त्र के अन्य विवध छंदों की अपेक्षा दोहा सुगमता से सब की समझ में आने वाला छंद है.दोहों की रचना इतनी सरस ,सरल सुंदर और उत्प्रेरक होती है कि उनके सुनने,समझने और बोलने में साधारण जन को भी अत्यधिक रूचि होती है. कबीर ,दादू दयाल,आदि संत महात्माओ द्वारा कतिथ दोहे तो इतने लोकप्रिय है कि जन जन कि वाणी पर उनका प्रयोग मुहावरों के रूप में होता है.
राजस्थानी कवियों ने वीर,श्रंगार ,भक्ति ,निति,करुण,हास्य आदि नव रसों में गीत दोहों की रचना करके राजस्थानी के साहित्य भंडार को समर्ध बनाने में अत्यधिक योग दिया है . वस्तुतः दोहा डिंगल साहित्य की आत्मा है-अमूल्य निधि है. इतिहास की दृष्टी से देखें तो दोहों का महत्व और भी बढ़ जाता है. राजस्थान के सभी स्तर के शूर वीरों ,दातारों, संतो और सतपुर्शों के अज्ञात अनेक प्रवाद उन दोहों के माध्यम से प्रकाश में आते हैं .अनेक इतिहासिक घटनाये जो प्राप्य इतिहासों में नही पाई जाती -प्रचलित दोहों के माध्यम से जनता की जबान पर चिरकाल से चली आ रही है.प्राप्य इतिहासों में सम्राटों ,सामंतों व नवाबों के युद्ध कार्यों ,क्रांतियो और परिवर्तनों का ही अंकन पाया जाता है किन्तु दोहों में में तो एतदेशीय विस्मृत और अज्ञात परिचय योधाओं और दातारों तक का विशद यशोगान गुंजरित मिलता है.वे राजा हो चाहे  रंक हों ,गढ़पति हों चाहे झोंपड़ियों में रहने वाले हों किन्तु जिन्होंने वीरत्व एवम त्याग के उत्कट कार्य कर दिखाये, कवियों ने गीतों व दोहों के माध्यम से उन के महान कार्यों को उजागर करते हुए उन्हें अमर बना दिया है. "गावड़ीजे जस गीतडा,गया भिंतडा भाज" राजाओं के गढ़ महल मालिय ढह गए किन्तु उन नर रत्नों की कीर्ति कथा गीतों व दोहों के माध्यम से आज भी जीवित है.
सांगा गौड़ अपनी विधवा माता के  साथ झोंपड़े में रहने वाला एक गरीब राजपूत था ,जो भेड़ पाल कर जीवन निर्वाह करता था.अकस्मात घर पर आये चारण कवी बारहठ इसरदास को आतिथ्य सत्कार देकर -मोठ बाजरी की रोटी खिला कर ,उस ने वह यश अर्जित किया जो राजाओं और ठाकुरों को मिलना दुर्लभ था. हरिभक्त  बारहठ ईसरदास ने सांगा के नाम का यह दोहा कह कर अमर बना दिया-

देबा सूं देवल चढ़े ,मत कोई रीस करेह .
नागर चलका ठाकरां  थां में सांगों गौड़ सिरेह .

डिंगल के ये दोहे लिखित इतिहासों से अधिक मूल्यवान सूचनाये देते हैं वास्तव में राजस्थान का असली इतिहास तो उन दोहों सोरठों में ही सुरक्षित है. उनके जाने बिना राजस्थान के इतिहास का सही ज्ञान हो नही सकता .
इस आलेख के  प्रारंभ में कतिपय उद्बोधक दोहों को उधृत करने के बाद रंग के दोहों ,प्रान्तों की विशेषताओं के धोतक दोहों एवम व्यक्ति वाचक प्रासंगिक दोहों के कुछ उद्धरन प्रस्तुत करने का अल्पसा प्रयास किया गया है :-

जो करसी उणरी होसी ,आसी बिण नूँ'तीह!
आ न किणरा बाप री,भगती रजपूतिह !!

धरता पग  धर धूजती ,दाकलता दिगपाल !
जनती रजपुतानिया ,थन थी झाल बंबाल  !!

अर्थात अपने स्तनों से नि:सृत अग्निकणों सा दूध पिलाकर वे राजपुताणिया ऐसे नर नाहर पुत्रों को जन्म देती थी ,जिनके पैरों की धमक से धरती धूजती थी- जिन के दकालने से वीरहाक से दिशाओं के दिगपाल कम्पायमान हो उठते थे.

कटका त्र्म्बक खुडककिया ,होय मराद्दा हल्ल  !
लाज कहे मर जीवड़ा , वयस कहे घर चल  !!

युद्ध के नगाड़े बजते ही ही वीर योधा yudhonmad में झूमने लगे .यदपि उनकी तरुनाई योव्नोचित आनंद की स्मृति दिला कर उन्हें युद्ध विमुख होने को प्रेरित कर रही थी किन्तु कुल परम्परा ने उन्हें युद्ध मरण की महता की तरफ उन्मुख कर दिया.

नमस्कार सूरां नरां ,पुरां सत पुरषांह! भारथ रण थाटा भिड़ें ,अड़े भुजा अरसांह !!
ढोल सुणता मंगली ,मुछा भोंह मिलंत ! चंवरी ही पह्चानियो ,कंवरी मरनो कंत !!
नाग ध्र्मंका कीं पड़े ,नागण धर मचकाय ! इनरा भोगीहार जे ,आज भिड़ना आय !!
भारथ रचियाँ ही भड़ , भारथ धर्म रहाए! भारथ सूं कै दिन बचाँ ,रहनो भारथ माँय !!

टोटे सर का भिंतडा ,घाते उपर घास !
बारीजे भड झोंपड़ा , अध्पतियाँ आवास !!

कवि की दृष्टी में वीर योधाओं के घास फूस के झोपड़ें  राजा महाराजाओं  के महल मालियों से अधिक श्रेष्ठ है.

झोंपड़ियाँ भड़ एकलो ,गढ़ में भरिया घाट !
तो पण गढ़ न झेलना ,झोंपड़ियाँ ऋ झाट !!

धीरा धीरा ठाकरां ,गुमर कियां म जाह !
मुहंगा देसी झोंपड़ा , जे घर होसी नाह !!

कंत न छड़ो ठाकरां,कालो जाण करंड !
इण  भोगीरा जहरथी,दूजो की जमदंड !!

जिण बन भूल न जावता ,गयंद गवय गिड़राज !
तिण बन जम्बुक ताखडा ,उधम्म मंडे आज !!

हाथी,गेंडा और शूर (वराह ) जैसे पराक्रमी वन्य जीव जिस वन में भूल कर भी जाने का साहस नही कर सकते थे ,देखो आज उसी वन में (पराक्रमी वनराज सिंह के नही होने से ) गीदड़ व् जरख जैसे साधारण किन्तु उत्पाती जानवर उधम मचा रहे है.

सुत मरियो हित देश रै,हरख्यो बन्धु समाज !
माँ न हरखी जन्म दे ,उतरी हरखी आज  !!

सुत आयो घावा सहित ,अनजस थयो माय !
पय पायो धोले वरण ,  ra तो  रंग चढ़ाये  !!

सात पूत रन मेलिया ,सातों ही कटिया साथ !
और नही जे मेलती,,माँ इण सांसे नाथ  !!

वीर पियो पय मात को ,दियो अधर रस बाम !
अब शोणित अरियन पियत ,तोही पीवन को काम !१

हे योधा ! बाल्य अवस्था में तुम ने माता के दुग्ध का पान किया ,योवन में प्रिया के अधरामृत का पान किया  और अब शत्रु के रक्त का पान कर रहे हो . पीना ही तुम्हारा व्यसन है.उपरोक्त दोहे महाकवि बाँकीदास आसिया ,वीर रसावतार सूर्यमल्ल मिश्रण  तथा नाथुदानजी महियारी की रचनाओ से चुन कर उध्रत किये गए है.

                                                     रंग रा दोहा

रंग रामा रंग लिछमणा ,दसरथ रा कवंराह !
भुज रावण रा भांजिया ,आलीजा भँवरा !१!
रंग रामा रंग लिछमणा,दसरथ रा पूतांह  !
लंक लुटाई सोहणी ,रंग बां रजपूतांह !२!
कर्ण खयंकर लंक रा, जीत भयंकर जंग !
रघुवर किंकर आपने , रंग हो हणुवनत रंग !३!
सज टोला सबळ ,नाग बहोला नीह !
अमलां बेली आपने ,भोला रंग भुतीह !४!
धमके पांवा घुघरा ,पलकै तेल शरीर !
अमलां बेलां आपने ,रंग हो भैरव वीर !५!
तो सरणे ब्रन खटतणी ,लोवाड़ वाली लाज !
आवड करणी आपने ,रंग अधका महराज !६!,
पापी कंस पछाडियो , तिकण कियो जग तंग !
अवनि भार उतरता ,रंग हो गोविन्द रंग !७!
विजय विजय तोसूं बणी,जुड़तां भारत जंग !
बाढ़ खलां बरंग ,रंग हो गोविन्द रंग  !८!
करियो अकर्त कैरवां,चीर बढायो चंग  !
सरम राखी द्रुपद सुता ,रंग हो गोविन्द रंग !९!
करयो नहं उण दिन किसन, भीसम रो प्रण भंग !
तजि प्रतिज्ञा आप तणी, रंग हो गोविन्द रंग !१०!
रंग अणिरा भादरा ,टणका आगल टंग !
खागां सामा सिर पड़े , राजपूतां ने रंग !११!
साहस कर जुटे समर ,तुरी चचटे तंग !
टुट्टे सिर गढ़ नह टुट्टे ,बां राजपूतां ने रंग !१२!

फूटे गोला फिन्फारा , टूटे तुरीयं तंग !
संग लडियो सुल्तान रे , उन रुपवत ने रंग !१३!

रुपावत खेत सिंह राठौर निमाज ठाकुर सुल्तान के साथ जोधपुर की सेना से लड़ कर मारा गया था .(यह वाकिया बहुत ही रोम्चक ही नही बल्कि राजपूत चरित्र की  बेजोड़ मिसाल है. इस गरीब राजपूत ने निमाज हवेली में रात बिताई थी उन के  रसोवाड़े में खाना खाया था ,नमक का हक अदा करने के लिए उस ने जान दे दी)

सोढ़ी छोड़ी बिलखती ,माथे जसरो मोड़ !
अमलां बेलां आपने ,रंग पाबू राठोड !!
भाला भड झाले भुजा ,घाले पाखर घोड़ !
तेरा तुंगा तोडिया ,रंग माला राठोड  !!

गुजरात के मुस्लिम सूबेदार के तेरह सैन्य दलों को एक  साथ पराजित करके भगाने वाले मालानी के स्वामी रावल मल्लिनाथ राठोड को रंग है -शाबाश.है
 .
किनी रिन्झा कोटड,बाघे आंकी बार !
अमलां बेलां आपने, दुनो रंग दातार !!
बाघा भारमली प्रेमाख्यान के लोकप्रिय नायक कोटडा के स्वामी बाघजी राठोड को दातारों की अग्रिम पंक्ति में रखते हुए दोहरा रंग दिया गया है.
धन्य धन्य कह कर उसका यशोगान किया गया है.

खाग बजाई खैरवे ,भड कट हुआ बरंग !
निज भड गोपीनाथ रा , रंग हो जोरा रंग !!
कसारी (जिला नागौर ) का जोरजी चान्पावत जोधपुर की सेना से युद्ध करता हुआ ३६ गोलियों से जर्जरित हो कर वीरगति का प्राप्त हुआ.ऐसे योधा को रंग देना कवी धर्म था .

खाटू गढ़ बागी गजर ,धजर रखे रणधीर !
पुर्जा पुर्जा हुई पड्या,रंग महताब हमीर !!
खाटू गढ़  उपर खिंवे ,तोपां गोला तीर  !
उन बरियाँ द्यां आप ने ,रंग महताब हमीर !!

जोधपुर की सेना द्वारा खाटू (जिला नागौर )के गढ़ को तोपों द्वारा ध्वस्त करते समय गढ़ के रक्षक महताब सिंह और हमीर सिंह नामक दो चंपावत वीरो ने तलवारों से तोपों पर आक्रमण किया और तोपों के गोलों से आहत हो कर कीर्ति शेष हुए .

कवियां सिविका कंध दे ,मग ले चल्यो उमंग !
उदियापुर टोडर इसो, राय्सलोता रंग !!
कवी की पालकी के कन्धा दे कर उदयपुर (शेखावाटी ) तक पैदल चलने वाला रायसलका पोता टोडरमल को रंग .
ढाता मन्दिर सिर दियो , आतां दल अवरंग !
इल बाता सूजो अमर, राय्सोलाता रंग !!
बादशाह औरंगजेब की सेना द्वारा खंडेला का देव मन्दिर तोड़े जाने के समय सुजाणसिंह  ने अपना मस्तक कटाकर आत्मोसर्ग करके प्रथ्वी पर अपना नाम अमर कर दिया.रायसल के उस पौत्र को भी रंग है.

आसंग लीधो आगरो ,फैल गिने न फिरंग !
जग जस डुंग जुन्हार को राय्सलोता रंग !!

अंग्रेजो के आतंक का उपहास करते हुए दूंग्जी जुन्हारजीने आगरे के कारगर को तोडकर दुनिया में अपने. यस का डंका बजा दिया .उन राय्सलोतो को भी रंग .

हुय हल्ला तोपां हल्ले ,गज टल्ला लग गाह !
बला आपने उन बगत ,घना रंग कछवाह !!
तुटे सिर उठे तुरंत ,वीर बकार बकार  !
कायर मन भय कंपवे, रंग भूरा उन बार !!
निचो गाँव गिरावडी ऊँचोमॉल उतंग !
भैरूं भारथ मंडियों ,रंग लाडाणी रंग !!
घर मरुधर रा उपन्या, दिल्ली री दोडाह !
उमरावा अजीत रा ,रंग छ राठोडा !!"

                                                       भोगोलिक दोहे
मेवाड़: -
गिरी ऊँचा ऊँचा गढ़ा, ऊँचा जस अप्रमाण !मांझी मेवाड़ रा नर खटरा निरखाण !!
धन डूंगर घर थंबणा ,मणयाज रत्ना धाम ! सिंहा,सिधां,सोहाडा,वीर बिखा बिसराम !१
उदियापुर लंझा बसे ,माँणस घण मोल़ा ! दे झोला पाणी भरे रंगछ पिछोला !!
उदयपुर री कामणी गोखां निरखे गात ! मन देवां रा डिगे ,माँणस कितिक बात !!
आ गादी इकलिंग री ,पावस घटा अणपार ! आम रसावल इकठा रंग धरा मेवाड़ !!

आमेर या ढूढाड :-
धरा ढूंडाहड़ देश दृढ़ , गढ़ा गिरवरा घेर ! चौ तरफा सेती फबे ,अनुपम गढ़ आमेर !!
बागां बागां बावडिया ,फुलवाडा चहुँ फेर ! कोयल करे टहुकडा ,यो घर आमेर !!
ऊँचा गढ़ आमेर रा ,नीचा और निवास ! भुजां भरोसे आप रे ,दिल्ली पल्लसे बास!!
ऊँचा डूंगर सेर वन ,कारीगर तरवार ! इतरा बधका निपजे ,रंग हो देश ढूंढाड !१
अजमेर :-
सिस दही री जामणी ,झांझर झनकेराह ! गुजरियां गह्का करे ,अइयो अजमेराह !!
पीतल चूड़ी पालडी,फेट्य हंदो फेर ! गुजरियां अंगजबरी ,अजब धरा अजमेर !!
आबू :-
टूके टूके केतकी ,झरने झरने जाय! अर्बुद  री छवि देखता और न आवे दाय !!
जोधपुर :-
लाग काठा निपजे ,गेंहू खासा खाण ! भड़ बांका ताता तुरी ,अइयो घर जोधाण !!
मारवाड़ :-
जळ ऊंडा थल ऊजला ,नारी नवले बेस ! पुरख पटा धर निपजे अइयो मुरधर देस !!
खग धारां घोडा नरां ,सिमट भरयो सह पाण! इणथी मुरधर तरल ,जळ पाताला परवाण !!
सरबत भरिया थल सजे ,थलवट टीबा मत्थ !ऊंडा जळ नर निपजे ,मरुधर सह समरत्थ !!
मरू देस उपन्निया ,सर ज्यों प्द्धरियांह! कडवा कदे न बोलही, मीठा बोलणिया  !!
सदा सुरंगी कामणी,ओढ़ण चंगा बेस ,बंका भड़ खग बाहवां ,अए हो मुरधर देस !!
बीकानेर :-
बोर मतिरा बाजरी, काचर खेलण खाण !अन धन धीणा धुपटा,बरसाले बीकाण !!
ऊंट मिठाई अस्तरी, सोनो गहनों साह ! इती बात पिरथी सिरे,वाह बीकाणा वाह !!
गोडवाड़:-
ऊपर तो आड़ाबलो ,निचे खेत निवांण ! डरपे फोजां साहरी, अइयो घर गोड़ाण !!
तड़ लम्बा अम्बा गहर,नेड़ा नीर निवांण ! कोयल दिवे टहुकडा ,अइयो घर गोड़ाण !!
जैसलमेर :-
गढ़ बंका गेंदल बिछे,अमल बंटे अप्रमाण !घर घर पद्मण निपजे ,अइयो घर जेसाण !!
मांड (जैसलमेर के चौतरफ का परदेस ) :-
उर चौड़ी कड़ पातली, जीकारा री बाण ! जे सुख चावो जिवरो, घण मांडेची  आण !!
थली (बीकानेर के पास का प्रदेश ) :-
ओढ़ण झीणी लोवडी धाबल रो गहगट !
पसवाडा पलका करै ,अइयो धर थलवट्ट !!
अमराणा (उमरकोट ) :-
केहर लंकी गौरियां , सोढा भंवर सुजाण ! भड खंचिया लाम्बा सरां, अइयो घर उमराण !!
सूरांह,कराह,साड़ियाँ, पदमन रूप अप्रमाण !घिरत सुगंधी धन घणो, अइयो  घर अमराण !!
राड़धडा :-
धर डाँगी आलम धणी, परगल लूनी पास !
लाभियो जिण न लाभसी ,राड़धडा रो बास !!
बावहनाद :-
हद आबू  रा टुंकडा ,हद चंपे री छांह ! हद हद बाह्बनाद रै,पदमन पानी जांह !!

सियाले खाटू भली ,ऊनाले अजमेर !
नागाणो नित को भलो ,सावन बीकानेर !!

                                  प्रान्तों के निन्दात्मक दोहे 

गाजर मेवो कांस खड़,पुरसज पून उघाड़! ओंधो ओछो असतरो, बालूं देस ढूंडाहड़ !!
रांड सुहागन परख नही ,सारां एकण भेस !घण बोला घसकी घणा राणाजी रे देस !!
घण चंगी नर चोरटा ,भीलडिया रो भेस !भालडिया रूलता फिरे ,अइयो अर्बुद देस !!
पग पूंगल धड कोटड ,बहां  बायाढमेर !धिरतो फिरतो बीकपुर ,ठावो जेसलमेर !!
अकाल दानव के पैर पूंगल में ,धड कोटडा में भुजाये बाढ़मेर  में है. यह दानव घूमता फिरता कभी बीकानेर की धरती पर भी आ टपकता है,किन्तु उसका स्थाई निवास स्थान तो जेसलमेर  की धरती ही है.

                                             व्यक्तिवाचक प्रसांगिक  दोहे

आभ फटे धर उलटे , कटे बगतरा  कोर !
टूटे सिर धड तड़फडे ,जद छुटे जलोरे !१
जालोर के दुर्ग में घिरे हुए राजा मानसिंह ने मरने का दृढ़ निश्चय करके उपरोक्त दोहा कहा था.

हम ठल्ले हथि भुजन, घल्ले अद्रिन बत्थ !
खंडे दखिन खल खगन,मंडे रण बिन मत्थ !!

मारवाड़ के महाराजा अभयसिंह को उस की म्रत्यु से पूर्व मराठों से मारवाड़ की रक्षा का वचन देते हुए शेर सिंह मेडतिया आदि उस के उमरावों ने सगर्व कहा था. "युद्ध में हम भुजाओं के जोर से हाथियों को धकेल देंगे ,पर्वतों को बांथ में भरने जैसा असाधारण अद्भुत कार्य कर दिखायेंगे.बिना मस्तक ,मस्तक कट पड़ने  पर भी युद्ध करते हुए दुष्ट मराठों को तलवार के प्रहार से गर्व गंजन कर के भगा देंगे " आप निश्चित हो कर स्वर्ग को पधारें .

जैमल लिख्या जवाब जद , सुनजे अकबर साह !
आण फिरे गढ़ ऊपरा ,टुटा सिर पतसाह !!
पण लीधो जमल पते ,मरस्याँ बांधर मोड़ !
सिर साटे सुंपा नही ,चकता ने चितोड़ !!
मारू पर घर मारका ,ठहरें समहर ठोड !
ओ कहनो उजवालियो, चढ़ जैमल चित्तोड़ !!
बादसाह अकबर ने वि.स. १६२४ में चित्तोड़ दुर्ग का घेरा लगाया उस काल राठोड राव जैमल मेडतिया दुर्ग में प्रधान सेनापति के पद पर आरूढ़ थे .उपरोक्त दोहे उसी घटना के प्रसंग में कहे गये है.जैमल ने बादसाह को उतर में लिखा की उसकी मरतु  के बाद ही चितोड़ के गढ़ पर बादसाह का अधिकार हो सकेगा ,पहले नही .जैमल व् पत्ता ने म्रत्यु के वरण हेतु सिर पर सेहरे बांध कर प्रतिज्ञा की कि जब तक उन के सिर सलामत है मुगलों को चितोड़ गढ़ नही सोंपेंगे .यह प्रसिद्ध है कि मरुधरा के सपूत पर भूमि में जाकर बेढ करने वाले होते है ,राठोड जैमल ने चितोड़ के दुर्ग कि रक्षार्थ प्राणोत्सर्ग करके उस कथन को सत्य सिद्ध कर दिखाया .

घंट न बजे देवरा ,संक न माने साह !
एकरसा फिर आवज्यो, माहरू जयसाह !!
उपरोक्त दोहा जोधपुर के महाराजा जसवंत सिंह (प्रथम ) ने आमेर के राजा मिर्जा राजा जयसिंह (प्रथम ) कि म्रत्यु पर उन्हें याद करते हुए मर्सिया के रूप में कहा था." हे माहससिंह के पुत्र जयसिंह !आप के न रहने पर बादसाह (ओरंगजेब ) निसंक  हो गया है. .मन्दिरों में घंटे व् झालरों का बजना बंद हो गया है .आप  एक बार पुन: आएये .

जते जसो पहु जिवयो ,थिर रहियो सुर थान !
आंगल ही ओरंग सूं ,पडियो नही पाषाण !!
महाराजा जसवंत सिंह  जब तक जीवित रहे  बादसाह ओरंगजेब हिन्दू देव मन्दिरों को तोड़ने का दु; साहस नही कर
सका.
बीकानेर के तत्सामयिक राजा राय सिंह के लघु भ्राता प्रथ्वीराज राठोड,जो हिंदी व् राजस्थानी के प्रकांड विद्वान थे जिन्होंने "कृसण रुकमनी री बेली "नामक काव्य का डिंगल में सृजन किया था,सम्राट अकबर के दरबार के मानिता सभासद थे. जब उन्होंने सुना की महाराणा प्रताप ने अकबर के सामने नतमस्तक होने का मानस बना लिया है ,तो उन का स्वाभिमानी क्षत्रियोचित मन तिलमिला उठा . उन्होंने महाराणा को कुल गौरव का स्मरण कराते हुए लिखा:-

पातळ जो पतसाह ,बोले मुख हूंता बयण !
मिहिर पिछम दिस मांह ,ऊगे कासप राव उत्त!!
पटकूं मुन्छा पाण ,कै पटकूं निज तन करद !
दीजे लिख दिवाण ,इण दो मन्हली बात इक !!

इस पर महाराणा ने जो उतर दिया वह भी द्र्स्टव्य है.:-

तुरक कहासी मुख पतो ,इण तन सूं इकलिंग !
उगै जठ ही उगसी  ,प्राची बीच पतंग  !!
खुसी होय पीथल कमध ,पटको मुन्छा पाण !
पछटण है जेतै पतो ,कलमां सिर केकाण !!
सांग मूड सह सीस को ,समजस जहर सवांद !
भड़ पीथल जीतो भले ,बैण तुरक सूं वाद  !
करद (तलवार ) पतंग (सूर्ये ) कलमा सिर (कलाम पढने वाले यानि मुसलमानों के सिर पर )केकाण(घोडा ) समजस (बराबर वाले का यश )

राणा अमरसिंह ने मुगलों के निरंतर होने वाले हमलों से पस्त हिमत  होकर शाही सेनापति अब्दुल रहीम खानखाना को निम्न दो दोहे लिख भेजे व उसकी राय मांगी की इस विषम स्थिति में उसे क्या करना चाहिए :-
कमधज ,हाडा ,कूरमा, महला मोज करंत !
कह्ज्यो खाना खान ने ,हूँ वन चर हुओ फिरन्त !!
तंवरा सूं दिली गई ,राठोडा कन्वज्ज !
राण पयाम्पे खान नै , वो दिन दिसे अज्ज !!

खानखाना अरबी और फारसी के अलावा संस्कृत व हिंदी का विद्वान था. साथ ही वह ह्रदय से हिन्दुओं व राजपूतों का समर्थक भी था. कहा जाता है की महराना प्रताप के प्रति उसके ह्रदय में पूर्ण सम्मान था.उस ने महाराणा अमरसिंह को साहस के साथ अपने स्वातन्त्र्य सघर्ष जारी रखने की प्रेरणा देते हुए लिखा :-
धर रहसी रहसी धरम ,खीस जासी खुरसान !
अमर विसम्भर ऊपराँ, राखो निहचै राण !!

हे अमर !ईश्वर    पर विश्वास रखकर अपने निश्चय पर अडिग बने रहो .तुम्हारी धरती तुम्हारे अधिकार में रहेगी एक दिन  ये खुरासान वाले (मुग़ल )स्वत समाप्त हो जायेंगे .

दुर्गादास राठोड के प्रसंग में :-
जननी सुत अह्डा जनों, जेह्ड़ा दुर्गादास !
मार मंडसो थामियो बिण खम्बे आकास !!
दिल्ली दलदल मेंह ,आडियो रथ अगजीत रौ !
पाछोह इक पल मेंह ,कमधज दुर्गे काढियो !!
संतति साहरी,गत सांहरी ले गयो  !
रंग दंहूँ राहांरी ,बात उबारी आसवात !!
रण दुर्गो रुटेह , त्रिजडअ सिर tute तुरत !
लान्ठी घर लूटेह, आलम रो उठै अमल !!
 ओरंग इक दिन आखियो ,तने बालोह कांइ दुरगेश !
खग वालिह वालोह प्रभु  , वालोह मरुधर देश !!

आसोप (मारवाड़ ) का स्वामी महेशदास कुंपावत राठोड अपने समय का अद्वितीय वीर योद्धा हुआ है.मारवाड़ पर माधोजी सिधिया की सेनाओ के आक्रमण के समय महेशदास ने मेड़ता के रक्त रंजित समर में मराठों के गोले उगलते तोपखाने पर भयंकर आक्रमण करके प्राणोत्सर्ग किया था.मराठा सेना के कमांडर फ्रांसीसी जनरल दिबॉय ने अपने आत्म चरित्र में उल्लेख किया है की उसने अपने सैनिक जीवन में ऐसा आत्मघाती प्रबल आक्रमण कभी नही देखा. ऐसे अनोखे वीर योद्धा के मरण महोत्सव के कीर्ति गीतों में से चुन कर कुछ दोहे निचे उधृत किये जा रहे है.

दिखणी आयो सजि दल्ला ,प्रथि भरावन पेस !
कुंपा थां बिन कुण करे , म्हारी मदद महेस !!
सुख महला न सोवाणों, भार न झेले सेस !
तों उभां दलपत तणा,मुरधर जाय महेस !!
जानिवासो मेड़ते ,मांढ़ो दिखणी देस !
दळ दिखण्या रै ऊपरे , बणियो बींद महेस !!
महेस कह सुण मेड़ता , साँची साख भरेस !
भिडसी कुण-कुण भागसी , देखे जसी कहेज !!
भुज मापे ब्रह्मंड नै , आडियो सिर अमरेस !!
पग जडया पताल में , मुडया नहीं महेस !

मुगलों और मराठो से संघर्स करने वाले राठोड योधाओं के प्रसंग में :-
हथनापुर हलचल हुई ,गई सितारे गल्ल !
धुओं अम्बर ढकियो ,रूठा वे रिडमल्ल !!
मग बांका मारू बहण,भड बंका सिरमोड़ !
नर बंका किरतब करण,रण बंका राठोड !!
      यहाँ पर रिडमल से रिडमल के वंशज राठोड़ो से अभिप्राय  है. गढ़ सिवाना और कल्ला राठोड  के सन्दर्भ में  :-
किलो अणकिलो यों कह,जूझ कल्ला राठोड !
मो सिर उतरे मैंहणो ,  तो सिर बंधे मोड़ !!
कलो किला ते कढीयो,वीर भड़ा संग लेर !
पहर एक लग पाछटी ,सीस कट्यां समसेर !!

गौड़ वत्सराज और पिठ्वा चारण:
देतो अडव पसाव दत्त ,धिनो गौड़ बछराज !
गढ़ अजमेर सुमेर सूँ,ऊँचो दिसे आज !!
बिसाऊ (शेखावाटी ) के ठाकुर श्याम सिंह द्वारा सांखू के हमले से सम्बन्ध :
श्यामा सूरजमाल रा ,सेखा भला सपूत !
सांखू नै सीधी करी ,काढयो भोमो भूत !!

राजा अभयसिंह खेतड़ी द्वारा जोधपुर के दावेदार धोंकल सिंह को शरण देने के प्रसंग में :-
खगां जु बांकी खेतड़ी ,भड़ बांको अभमाल !
गढ़पति राख्यो गोद में ,नवकुंटी को लाल!!

इन्द्रराज सिघवी के संदर्भ में :-
पडतां घेरो जोधपुर ,अड़ता दला असंभ !
आभ डिगनता इंदडा , तैं दीधो भुज थंम !!

महाराजा सवाई इश्वरी सिंह जयपुर :-
मत्री मोटो मारियो ,खत्री केसोदास !
तबही छोड़ी ईसरा , राज करण री आस !!
लाड़ी कर कर मांणज्यो, गाड़ी चलै न गैल !
भोज कहे बगडावता , माया हाथ रो मैल !!
माया माणी बाघ का , कै लाखे फुलानी !
रही सही अब माँणगो , हर नन्द नाटाणी !!   

इस प्रकार के प्रासंगिक  दोहों सोरठों से - जिनमे राजस्थान का इतिहास गुम्फित है -डिंगल का साहित्य भंडार भरा हुआ है . उस का यथा क्रम संग्रह करने पर एक विशद  ग्रन्थ तैयार किया जा सकता है.   

14 comments:

  1. My father Thakur Surjan Singhji Jhajhar has written number of books and articals the above artical was published in "Marubharti "I have copied it as it is .

    ReplyDelete
  2. सभी दोहे एक से बढ़कर एक :)

    ReplyDelete
  3. हुक्म जोरदार कहानियां व् दोहे आपने राजस्थानी भाषा में लिखे हैं में उनके लिए बहुत बहुत तेहदिल से स्वागत करता और बहुत बहुत धन्यवाद देता हूं लेकिन में आपको एक कष्ट देता हूं कि आपके इस राजस्थानी दोहों से जुड़े रहने के लिए आपके कोई एप या कोई साइड बताइये मेरे व्हाट्सएप्प नम्बर 9636005141

    ReplyDelete
  4. हुक्म जोरदार कहानियां व् दोहे आपने राजस्थानी भाषा में लिखे हैं में उनके लिए बहुत बहुत तेहदिल से स्वागत करता और बहुत बहुत धन्यवाद देता हूं लेकिन में आपको एक कष्ट देता हूं कि आपके इस राजस्थानी दोहों से जुड़े रहने के लिए आपके कोई एप या कोई साइड बताइये मेरे व्हाट्सएप्प नम्बर 9636005141

    ReplyDelete
  5. These rules also apply to different campaigns 카지노사이트 that by mistake was promoted with no legitimate wagering requirement

    ReplyDelete
  6. You 우리카지노 will lose some huge cash on a simple recreation that gives you a real shot at winning

    ReplyDelete
  7. सर गौर गौड़ caste के बारे में मुझे जानकारी उत्तर प्रदेश

    ReplyDelete