Sunday, March 24, 2013

ठाकुर सुरजन सिंह जी की पुस्तक " राजा रायसल दरबारी " की समीक्षा में श्री . सवाई सिंह जी धमोरा द्वारा पध्य बद्ध संक्षिप्त रचना :

रायसल्ल जीवन वृत रचियो , कुण करतो थां बिन यो काम !
वंश वृक्ष मझ मोटा डाळ , सुरजन सिंह सडोलो नाम !!

गीतां गावण घणा गोखड़ा , अंग वस्त्र अपूरण अंग  !
थां बिन कुण पोथी रचवावै , रायसल्ल वंशज घण रंग !! 

झाझड़ का झाड़ा बिच बैठ 'र , साहित साधना बडकां साज !
किधी सुरजन सिंह अनूठी , कर न सक्या जो करता राज !!

जुग सराद करयो जुग सारु , जुग जुग करसी पिढ्यां याद !
सूरज सम सुरजन सिंघ  चमकै , शेखावत संघ सद मरजाद !!

शार्दूल -न्यास पंच पाना , जस आखर झपवायर आज !
बडकां बिडद बतायो सब नै , करतब कीर्ति कमाया ' र काज !!

करूँ समीक्षा के पोथी की , स्वयम समीक्षा हो री आज !
भागवत तो बो ही भणसी , वेदव्यास सम हो रिषिराज  !!

भोज राज जीवन वृत लिख भळ , करवावो कुळ कीरत काज !
ओ सराद पछ कुण करसी , सुवाई नै घण थां पर नाज !!

  
 

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