सुरजन -सुजस
(राजस्थानी काव्य )
लेखक -डॉ. उदयवीर शर्मा सम्पादक- गोपीराम मुरारका
१
मन की बात
साहित्य,संस्कृति,और शोर्य की शोरभ से जिनका अन्तर्मुखी व्यक्तित्व उजागर हो रहा है,
जिन्होंने इन दिव्य क्षेत्रों में अपना सुख्यात स्थान बनाया है और जो जन मन की धारणा में
सामान्य से विशेष बने है,उनकी प्रशस्ति में सदा ही लिखा जाता रहा है.इसी परम्परा में
ठा.सुरजन सिंह शेखावत,झाझड (झुंझुनू ) के विशिष्ट व्यक्तित्व को सुरजन -सुजस में
उभारने का प्रयत्न किया गया है.श्रीमान ठाकुर साहेब इतिहास के मर्मज्ञ, साहित्य के शोधक
और कला के पारखी हैं. प्राचीन साहित्य ग्रन्थों में इतिहास के लुप्त एवम अलभ्य तथ्यों को
खोज निकलना ,उनकी प्रमाणिकता को परखना तथा उन अकाट्य तथ्यों के आधार पर
इतिहास लेखन के कार्य को सुलभ और रोचक बनाना,एक नवीन गति देना तथा मौलिक
अभिव्यक्ति से उसे मंडित करना आदि आप की इतिहास शिल्प की विशिष्टताएं हैं.आप
द्वारा लिखे गये इतिहास ग्रन्थ इस बात के पुष्ट प्रमाण हैं.आप के शोध पूर्ण लेख पत्र पत्रिकाओं
का गौरव बढ़ाते रहे हैं.ऐसे 'शेखावाटी के इतिहास और साहित्य के सपूत ' की प्रशस्ति में कुछ
लिखा जाना एक स्वाभाविकता है.
उलेखनीय है कि लेखक डॉ. उदयवीर शर्मा श्री शेखावत साहेब कि शालीनता ,सहृदयता ,
आत्मीयता, गंभीर विद्वता, क्षमतापूर्ण पैनी दृष्टी , मानवोचित सुदृढ़ता आदि से प्रभावित है.ऐतदर्थ
मेरे निवेदन पर उनके गुणों और कार्यों का पद्य बध करके गुणी जनों के सम्मुख प्रस्तुत करने का यह
भाव पूर्ण प्रयास डॉ. शर्मा द्वारा किया गया है.आशा है, यह प्रयास श्री शेखावत के इतिहास और
साहित्य - गोरव का परिचायक हो सकेगा .
राजस्थान के साहित्य व इतिहास को प्रकाशित करवाने में श्रीमान रावल साहब ठा.मदन
सिंह जी नवलगढ़ की रुचि सैदेव रही है.आप ने ठा. सुरजन सिंह जी के अनेक ग्रंथो के प्रकाशन में
सदेव सहयोग दिया है.प्रस्तुत पुस्तक भी आप के आर्थिक सहयोग तथा मुरारका प्रिंटर्स के मुद्रण सहयोग से प्रकाशित हो सकी है. मै इन सब का हृदय से आभार प्रकट करता हूँ.
गोपीराम मुरारका
( २ )
सुरजन - सुजस
( राजस्थानी दूहा शतक )
वंदना
विनवूं चरण पुनीत, जय वरदा वगेसरी !
पालू साहित रीत, थारो बल प् शारदा !!१
वाणी रो वरदान , थां बिन कुण देवे सजल !
थारी ओट महान , कारज सारे अण सरया !!२
मति गति राखणहार, थारी जोत सुहावणी !
जग वाणी -आधार, जय जय मायड़ सुरसती !!३
तू आवे झूट भाग ,याद करै जद लाडला !
भगतां रो ही भाग,धन धन तेरी महर सूं !!४
तेरी निरमल जोत,जग मग राखै जगत नै !
जोत मिले जद जोत, हिड्दै सें चनदण हुवे !!५
इमरत रस री धार, तेरे हुकमां संचरे !
सकल कला आधार , मायड़ सांचल जगत में !!६
कवि कोविद आधार,जग में तू मातेसरी !
फलपे जस अणपार, वरद हस्त प् थारलो !७
वरदा दे वरदान , तेरो जस गाऊँ सदा !
अंतर मन में ध्यान, राखूं इबछल हरख सूं !!८
गुरु में जोत सवाय, तेरी देखूं मावडी !
परतख दरसण पाय,सिस नवाऊँ मान सूं !!९
परिचय
सुरजन सूरज सो अडिग, समदर सो गंभीर !
इतिहासां रो पारखी, विनयशील मति धीर !!१०
धन धन थारी लेखनी, धन धन उजलो ज्ञान !
धन धन साहित सूरमा, जलम भोम रा मान !!११
ज्ञान मान पायो घणो,शेखा धरा प्रविण !
सरस सुरीली बाज री, थार जस री बींण !!१२
झाझड नगरी में तपै, सुधि गुणी रस रूप !
फलपी इमरत साधना, आतम भाव अनूप !!१३
पुन्य धाम शेखा धरा,सत साहित में सीर !
कदै कदै ही नीपजै, सुरजन सा मति धीर !!१४
सुरसत सुत रै काम सूं, झाझड बण्यो सुधाम !
काम धाम रल मिल हुया, साहित जग सरणाम !!१५
झाझड दीन्या रतन घणा, सती सूर जुंझार !
सुरजन सा भुसण सबल, लूंठा साहितकार !!१६
सत-संगम ओपै धरा, झाझड जुझारांह !
साहित रच मंडित करी,वाह रै सुरजन वाह !!१७
तन रजपूती भावना, मन साहित री चाह !
दोनूं भाव उजालिया, वाह रै सुरजन वाह !!१८
रचना धरमी धुन घणी, थारो ज्ञान प्रवाह !
चोकुंटा फैल्यो सहज,वाह रै सुरजन वाह !!१९
मितभासी ज्ञानी सुधि, गुण पुरो नर नाह !
कीरत थामा रोपिया, वाह रै सुरजन वाह !!२०
मनमौजी खोजी सुदिढ़, थारो ज्ञान अथाह !
इकडंको पुजवाइयो, वाह रै सुरजन वाह !!२१
मन कंवलो तनड़ो सबल, मिल चाल्या इकराह !
रस बरसायो ज्ञान सूं, वाह रै सुरजन वाह !!२२
अलख जगायो ज्ञान रो,चाल्या अपणी राह !
तन मन सूं धाकड़ घना,वाह रै सुरजन वाह !!२३
( ४ )
सहज सनेही कंवल मन, कदै न मानी डाह !
अपण पथ आपे बढया,वाह रै सुरजन वाह !!२४
कण कण में मनड़ो रम्यो, शेखा धरा सुधीर !
घण पोषक धारक सबल, धन धन सुरजन वीर !!२५
इमरत रस बरसायो, ज्ञान गिरा गंभीर !
मिलियो जो अपणो हुयो, सुरजन घणा सुधीर !!२६
धोती कुरता कोट पर, भल राजपूती पाग !
रूप निखारै थारलो, धन धन रजवट राग !!२७
अंतर मन कंवलो घणो, सराबोर रस राग !
वीर संस्कृति रा धणी, अरियां ताणी नाग !!२८
मुखड़े सू मोती झडे, नैणा बरसै नेह !
निरमल हिड़दो रस भरयो, बरसै इमरत मेह !!२९
सीधा सादा विनय नत, आतम भाव अनूप !
परहित साधक विमल मत, सुरजन सुर-जन रूप !!३०
रजपूती राखी अटल, सत रै काज अनूप !
राष्ट्र धरम ने धारियों, जीवन रस रै रूप !!३१
धरम करम रजपूत रा, सत री लियां उमंग !
झेल्यो भोग्यो जुझिया, आजादी रै रंग !!३२
धाकड़ वाणी गूंजती, गातां डिंगल गीत !
जोश उमड्तो डील में, रजवट रस रा मीत !!३३
बलिदानी जीवन जियो,जुझारां रै साथ !
आजादी तांई लड्या, करिया दो दो हाथ !!३४
दिवलो बण राखी अटल, आजादी री जोत !
जुझारी रस धार में, कुद्या नहाया भोत !!३५
काव्य और इतिहास रो, संगम घणो अनूप !
सुरजन हिवडे ओपरयो, रजपूती रो रूप !!३६
( ५ )
सुरसत रो साधक धुनी, रजपूती गुण खान !
दोनू रूप सुहवणा , धीर वीर मती मान !!३७
कण कण सूं सत उझलै, रज रज में रण वीर !
दानी मानी दृढ़ व्रती, सेखा कुली सुधीर !!३८
वीर घराणो वीर मन, कुल गौरव सूं लाड !
जद हा पन्द्रह बरस रा,पढ़ियो कर्नल टाड !!३९
पुरखा रै इतिहास रो, बचपण सूं हो चाव !
पढयो गुण्यो मंथन करयो, पड्यो सरस प्रभाव !!४०
खरवा राव गोपाल सिंह, आजादी रै जंग !
जुझ्या ब्रिटिश राज सूं, थे हा बां रै संग !!४१
अथक लेखनी अटल मन,अडिग लगन अणपार !
थां सा थे ही सूरमा, सत साहित संसार !!४२
उजलायो कुल गोत नै, शेखा कुल इतिहास !
ज्ञान जोत नित जगमगे, दीपे घणो उजास !!४३
समझ्यो परख्यो ज्ञान सूं, मिनख पणे रो मोल !
धरम करम सत भाव सूं, लिन्यो हिवडे तोल !!४४
उजलायो निज ज्ञान सूं,जलम भोम रो नाम !
शेखा कुल री कीरति,सुरजन सूं सरनाम !!४५
सुरसत रो सेवक अटल,इतिहासां री जोत !
शेखा कुल रो लाडलो, उजलो रूप उदोत !!४६
थारै अंतर मन रमी, मरुधर मीठी राग !
जलम भोम हिवडे बसी,कण कण सूं अनुराग !!४७
तपसी साधक गुण धणी, ज्ञान वीर गतिमान !
मरुधर रै रस में रम्यो, संस्कृति कला निधान !!४८
जीवन पथ रा जातरी,सिर पर सत री पोट !
थरप्या ऐडा ज्ञान रा, मथ मथ काढयो खोट !!४९
सुरजन सुरसत लाडलो,आतम रस लवलीन !
अपणी मझ में झूमणो, तन मन सूं स्वाधीन !!५०
( ६ )
शेखावाटी रो रतन, कुल रो गौरव-गान !
दिव्य लोक सूं उतरयो, ले उजलो वरदान !!५१
डुबकी खा आध्यत्म में, हुयो मगन रस लीन!
आतम रस मन मोद सूं,पायो सदा नवीन !!५२
अट्क्या भटक्या फिर बढया, आयो ज्ञान निखार !
जुड्या दिव्य संगीत सूं, मन वीणा रा तार !!५३
सुरजन बोल सुहावणा, उपजावे अनुराग !
निरमल हिड्दै रा धणी, मिलै कदै बड़ भाग !!५४
निरमल थारी साधना, निरमल थारो रूप !
निरमल थारी भावना, निरमल भाव अनूप !!५५
दिव्य देश सूं उतरया, लियां दिव्य संदेश !
सत पुरखा रो देश यो, म्हारो मरुधर देश !!५६
सुरजन थाने के कवां, महिमा अमित अपार!
थां सा तो थे ही गुणी,काढयो इमरत सार !!५७
साधना
शेखावाटी रो सुजस, करयो आप विख्यात !
विदवाना रै जगत में, नित उठ चाले बात !!५८
महिमा थारे ज्ञान री, गुणिया रो आनंद !
राजस्थानी सम्पदा, थां सूं ही बणी बिलंद !!५९
अंतर मन कंवलो घणो, सराबोर रस राग !
वीर संस्कृति रा धणी, अरियां ताणी नाग !!२८
मुखड़े सू मोती झडे, नैणा बरसै नेह !
निरमल हिड़दो रस भरयो, बरसै इमरत मेह !!२९
सीधा सादा विनय नत, आतम भाव अनूप !
परहित साधक विमल मत, सुरजन सुर-जन रूप !!३०
रजपूती राखी अटल, सत रै काज अनूप !
राष्ट्र धरम ने धारियों, जीवन रस रै रूप !!३१
धरम करम रजपूत रा, सत री लियां उमंग !
झेल्यो भोग्यो जुझिया, आजादी रै रंग !!३२
धाकड़ वाणी गूंजती, गातां डिंगल गीत !
जोश उमड्तो डील में, रजवट रस रा मीत !!३३
बलिदानी जीवन जियो,जुझारां रै साथ !
आजादी तांई लड्या, करिया दो दो हाथ !!३४
दिवलो बण राखी अटल, आजादी री जोत !
जुझारी रस धार में, कुद्या नहाया भोत !!३५
काव्य और इतिहास रो, संगम घणो अनूप !
सुरजन हिवडे ओपरयो, रजपूती रो रूप !!३६
( ५ )
सुरसत रो साधक धुनी, रजपूती गुण खान !
दोनू रूप सुहवणा , धीर वीर मती मान !!३७
कण कण सूं सत उझलै, रज रज में रण वीर !
दानी मानी दृढ़ व्रती, सेखा कुली सुधीर !!३८
वीर घराणो वीर मन, कुल गौरव सूं लाड !
जद हा पन्द्रह बरस रा,पढ़ियो कर्नल टाड !!३९
पुरखा रै इतिहास रो, बचपण सूं हो चाव !
पढयो गुण्यो मंथन करयो, पड्यो सरस प्रभाव !!४०
खरवा राव गोपाल सिंह, आजादी रै जंग !
जुझ्या ब्रिटिश राज सूं, थे हा बां रै संग !!४१
अथक लेखनी अटल मन,अडिग लगन अणपार !
थां सा थे ही सूरमा, सत साहित संसार !!४२
उजलायो कुल गोत नै, शेखा कुल इतिहास !
ज्ञान जोत नित जगमगे, दीपे घणो उजास !!४३
समझ्यो परख्यो ज्ञान सूं, मिनख पणे रो मोल !
धरम करम सत भाव सूं, लिन्यो हिवडे तोल !!४४
उजलायो निज ज्ञान सूं,जलम भोम रो नाम !
शेखा कुल री कीरति,सुरजन सूं सरनाम !!४५
सुरसत रो सेवक अटल,इतिहासां री जोत !
शेखा कुल रो लाडलो, उजलो रूप उदोत !!४६
थारै अंतर मन रमी, मरुधर मीठी राग !
जलम भोम हिवडे बसी,कण कण सूं अनुराग !!४७
तपसी साधक गुण धणी, ज्ञान वीर गतिमान !
मरुधर रै रस में रम्यो, संस्कृति कला निधान !!४८
जीवन पथ रा जातरी,सिर पर सत री पोट !
थरप्या ऐडा ज्ञान रा, मथ मथ काढयो खोट !!४९
सुरजन सुरसत लाडलो,आतम रस लवलीन !
अपणी मझ में झूमणो, तन मन सूं स्वाधीन !!५०
( ६ )
शेखावाटी रो रतन, कुल रो गौरव-गान !
दिव्य लोक सूं उतरयो, ले उजलो वरदान !!५१
डुबकी खा आध्यत्म में, हुयो मगन रस लीन!
आतम रस मन मोद सूं,पायो सदा नवीन !!५२
अट्क्या भटक्या फिर बढया, आयो ज्ञान निखार !
जुड्या दिव्य संगीत सूं, मन वीणा रा तार !!५३
सुरजन बोल सुहावणा, उपजावे अनुराग !
निरमल हिड्दै रा धणी, मिलै कदै बड़ भाग !!५४
निरमल थारी साधना, निरमल थारो रूप !
निरमल थारी भावना, निरमल भाव अनूप !!५५
दिव्य देश सूं उतरया, लियां दिव्य संदेश !
सत पुरखा रो देश यो, म्हारो मरुधर देश !!५६
सुरजन थाने के कवां, महिमा अमित अपार!
थां सा तो थे ही गुणी,काढयो इमरत सार !!५७
साधना
शेखावाटी रो सुजस, करयो आप विख्यात !
विदवाना रै जगत में, नित उठ चाले बात !!५८
महिमा थारे ज्ञान री, गुणिया रो आनंद !
राजस्थानी सम्पदा, थां सूं ही बणी बिलंद !!५९
भुज बल मन बल धरम बल, थां में भरयो अखुट !
थारी सुरसत साधना, लूंठी दिव्य अटूट !!६०
साहित थारी साधना, गुण थारो इतिहास !
जीवन रस में घोलरया, मंगल मोद हुलास !!६१
( ७ )
गुण ग्राही सेवक विमल, रचना धरमी धीर !
किनी इमरत साधना, रंग रै सुरजन वीर !!६२
सुरजन थारी साधना, अविचल जीवन राग !
सुरसत रै वरदान सूं, उजलयो थारो भाग !!६३
थे फैलायो ज्ञान निज,धोबा भर भर बाँट !
ज्यूँ जीवन रस उमड्यो,बादल छोड़े छांट !!६४
लिखरया सन चालीस सूं,शोध खोज रा लेख !
अपणो पद थरप्यो सहज,खीच ज्ञान री रेख !!६५
नाना विध लिखिया सरस,घणा लुभाणा लेख !
साहित जग आदर दियो,सत रो सिरजण देख !!६६
घण मोली तथ्यां भरी, पोथी 'शेखो राव' !
कुल कीरत री रागनी,थे गाई मन-चाव !!६७
खोजी शोध सवांर कै, पोथी 'मांढ़ण युद्ध' !
प्रगटी साहित सम्पदा, थे हो घणा प्रबुद्ध !!६८
महिमा थारी गूंजरी, नवल नगर इतिहास !
ज्ञान जोत दिपै करे कीरत-भवन उजास !!६९
ख्यात बात इतिहास में, थारी पैनी दीठ !
साहित रो पख उजलो, रंग सुरंग मजीठ !!७०
शिला लेख प्रगटाया , बांच- बांच नै बांच !
सत प्रगट्यो इतिहास रो, कर कर फिर फिर जाँच !!७१
आद्कल सूं इब तलक , शेखा घर इतिहास !
सांचो सबलो मांडियो, फैल्यो ज्ञान ऊजास !७२
शेखा घर री जस कथा, थे गुंथी गुण भेद !
मानो थरप्या घण सजल, कुल कीरत रा वेद !!७३
वेदां री भूमि विमल, सदा साधना लीन !
मरुधर में शेखा धरा, उजलयो जस प्राचीन !!७४
एक कड़ी इतिहास री, जगमग 'रायसल्ल' !
ज्ञान धजा लेकर खड्यो, कीरत खंभ अचल्ल !!७५
( ८ )
जूनी गुथ्याँ सुलझगी, जुड्यो तार सूं तार !
लिख इतिहास लुभावणा, जस पायो अणपार !!७६
मंथन कर इतिहास रो, काढ्या रतन अनूप !
उजलायो कुल गोत नै,सुरजन साहित भूप !!७७
मौन साधना रत धुनी, वाणी सबद रसाल !
बांटयो घण इतिहास रस, सुरजन करयो कमाल !!७८
सहज सनेही विमल मन, ज्ञानी गुणी विशाल !
पर हित साधक विनय नत,सत री करी संभाल !!७९
इतिहासां री जस कथा, गाई घणी अनूप !
सुरसत रे परताप सूं, निखरयो आतम रूप !!८०
शेखा गर कीरत कथा, जग सूं कदै न जाय !
सरस उजाली थोक में, हरख हरख हरखाय !!८१
अपणी कुल कीरत करी,सुरजन जग विख्यात !
धजा फरूकै गगन में, जुग जुग चाले बात !!८२
कीरत शेखा- कुल धरा,भारत में विख्यात !
इतिहासां री जस कथा, गाई घणी अनूप !
सुरसत रे परताप सूं, निखरयो आतम रूप !!८०
शेखा गर कीरत कथा, जग सूं कदै न जाय !
सरस उजाली थोक में, हरख हरख हरखाय !!८१
अपणी कुल कीरत करी,सुरजन जग विख्यात !
धजा फरूकै गगन में, जुग जुग चाले बात !!८२
कीरत शेखा- कुल धरा,भारत में विख्यात !
सुरजन किधि कलम सूं,जुग जुग चालै बात !!८
जूनी पोथ्यां सांवठी ,पढ़ी खोलियो भेद।
आदकाल सूं जोड़ियों ,शेखा कुल रो वेद।।८४
शेखावाटी हित तपै ,सुरजन गुणी सपूत।
समझयो जीवण सार नै ,यो सांचो अवधूत।। ८५
लिखियो जूनो सांवठो ,जलम भौम इतिहास।
धन है थारी लेखनी ,शेखावाटी - व्यास।। ८६
नित पोथ्यां रै ढेर बिच ,ओपै व्रती उदार।
ज्यूँ तारा बिच चन्द्रमा ,किरणा लिया अपार।। ८७
सुरसत रै परिवार में ,इतिहासां री बात।
थां सूं ही पूरी हुवै ,शेखा घर विख्यात।। ८८
गौरव गरिमा सूं भरयो ,भारत रो इतिहास।
थां नै दिनी प्रेरणा ,मन में घणो हुलास।। ८९
मन रमियो इतिहास में, जीवन रो रसमान।
आन बान सूं थे कथ्यों ,पुरखां रो गुणगान।। ९०
पोथ्यां पढ़ पढ़ सैंकड़ी ,पायो आतम बोध।
काळजयी पुरखा हुया ,किन्यो प्रबल प्रबोध।। ९१
अणथक चालै लेखनी ,तन बुढो मन जोश।
जूनी पोथ्यां सांवठी ,पढ़ी खोलियो भेद।
आदकाल सूं जोड़ियों ,शेखा कुल रो वेद।।८४
शेखावाटी हित तपै ,सुरजन गुणी सपूत।
समझयो जीवण सार नै ,यो सांचो अवधूत।। ८५
लिखियो जूनो सांवठो ,जलम भौम इतिहास।
धन है थारी लेखनी ,शेखावाटी - व्यास।। ८६
नित पोथ्यां रै ढेर बिच ,ओपै व्रती उदार।
ज्यूँ तारा बिच चन्द्रमा ,किरणा लिया अपार।। ८७
सुरसत रै परिवार में ,इतिहासां री बात।
थां सूं ही पूरी हुवै ,शेखा घर विख्यात।। ८८
गौरव गरिमा सूं भरयो ,भारत रो इतिहास।
थां नै दिनी प्रेरणा ,मन में घणो हुलास।। ८९
मन रमियो इतिहास में, जीवन रो रसमान।
आन बान सूं थे कथ्यों ,पुरखां रो गुणगान।। ९०
पोथ्यां पढ़ पढ़ सैंकड़ी ,पायो आतम बोध।
काळजयी पुरखा हुया ,किन्यो प्रबल प्रबोध।। ९१
अणथक चालै लेखनी ,तन बुढो मन जोश।
सुज(स 11
sssssss