श्री गनपत राय जी पुरोहित नवलगढ़ ने नासिक से २५ -६- ८६ को नासिक से पत्र लिखा ,पुरोहित जी ब्रह्मचर्य आश्रम के दिनों के सहपाठी थे।
आदरणीय भाई सूर्य सिंह जी ,
सादर प्रणाम ! शुभाशीष !
आप आश्रम के अग्रणी छात्र एवम स्नातक थे। अत: बड़े होने के नाते नमन और आपके पूर्वजों के दिय गये अधिकार के कारण आशीष।
आपके प्रति सदा से ही आदर भावना रही है। कारण प्रथम तो आप क्षत्रिय दूसरे आप में देश प्रेम एवम वीरोचित भावना। .............................. आपने नवलगढ़ का इतिहास मुझे भेंट किया था। उसका धन्यवाद आज दे रहा हूँ। आप की लेखन शैली बहुत अछी है। ............................ आप के प्रति आश्रम में बनी मेरी आदर भावना में आप एक वीर क्षत्रिय ,देश भक्त ,सौम्य ,शिष्ट एवम अभिज्यात क्षत्रिय परम्परा की लुप्त होती कड़ी है।
आपका
गणपतिराय पुरोहित , नवलगढ़
आदरणीय भाई सूर्य सिंह जी ,
सादर प्रणाम ! शुभाशीष !
आप आश्रम के अग्रणी छात्र एवम स्नातक थे। अत: बड़े होने के नाते नमन और आपके पूर्वजों के दिय गये अधिकार के कारण आशीष।
आपके प्रति सदा से ही आदर भावना रही है। कारण प्रथम तो आप क्षत्रिय दूसरे आप में देश प्रेम एवम वीरोचित भावना। .............................. आपने नवलगढ़ का इतिहास मुझे भेंट किया था। उसका धन्यवाद आज दे रहा हूँ। आप की लेखन शैली बहुत अछी है। ............................ आप के प्रति आश्रम में बनी मेरी आदर भावना में आप एक वीर क्षत्रिय ,देश भक्त ,सौम्य ,शिष्ट एवम अभिज्यात क्षत्रिय परम्परा की लुप्त होती कड़ी है।
आपका
गणपतिराय पुरोहित , नवलगढ़
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