Saturday, March 10, 2012
JAMIN RO KUN DHANI
हमारे स्कुल के स्लेबस में एक कविता थी "जमीन रो कुण धणी, ओ धणी को वो धणी " कवी पूर्वाग्रसित था. जमीन के कल तक के धणीयो से जिन्होंने ये धरती अपने बहुबल से अर्जित की थी,जिनका धर्म केवल जमीन का उपभोग नही था बलकी कर्तव्य पालन की महती भावना के तहत बलिदान की की परकासटा जो की आत्मोत्सर्ग ही था के लिए सदेव तैयार रहते थे को गलत ढंग से दिखाने के लिए एक सोची समझी रणनीति के तहत लिखा था. मैंने यह कविता जब मेरी पिताजी को दिखाई तो उन्होंने हंस कर जो प्र्तुतर दिया वो कुछ इस प्रकार था :
काळ चक्र नै देख घुमतो ,बोल उठ्यो कोई कवी कणि.
इण धरती रो कुण धणी ,ओ धणी को वो धणी .
काळ देव हंस कर यो बोल्या ,धरती रो ना कोई धणी .
धरती है माता सारा की ,
काळ देव म बीज बणी,नित उपजाऊ नित खपाऊ .
आतो रवे बणी ठनी,
कतरा बेटा इणरी खातर,खून देवे और मोत वरे .
बिजोड़ा अन धन उपजाव ,खून पसीनो एक करे .
धरती पर रक्षक न होता ,चोर लुटेरा कियां डरे .
अन धन इज्जत आब मिनख री, लेता बी नाहक डरे .
सोच समझ कर बोलो ,धरती रा है कोण धणी .
अ धणी क ब धणी .
काळ चक्र नै देख घुमतो ,बोल उठ्यो कोई कवी कणि.
इण धरती रो कुण धणी ,ओ धणी को वो धणी .
काळ देव हंस कर यो बोल्या ,धरती रो ना कोई धणी .
धरती है माता सारा की ,
काळ देव म बीज बणी,नित उपजाऊ नित खपाऊ .
आतो रवे बणी ठनी,
कतरा बेटा इणरी खातर,खून देवे और मोत वरे .
बिजोड़ा अन धन उपजाव ,खून पसीनो एक करे .
धरती पर रक्षक न होता ,चोर लुटेरा कियां डरे .
अन धन इज्जत आब मिनख री, लेता बी नाहक डरे .
सोच समझ कर बोलो ,धरती रा है कोण धणी .
अ धणी क ब धणी .
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