इतिहास मनीषी ठाकुर सुरजन सिंघजी झाझड एवम साहित्यकार ठाकुर सौभाग्य सिंघजी भगतपुरा के पत्राचार का प्रकाशन " पत्र प्रकाश ' के नाम से हुआ है .इसमें दोनों विद्वानों के बीच 1960 ई. से
1999 ई. तक जो पत्राचार हुआ उसका क्रमबद्ध संकलन ,सम्पादन ,प्रकाशन हुआ है .जिसमे राजस्थान गुजरात मालवा पाकिस्तान के कुछ भाग कश्मीर के तथा खासकर शेखावाटी अंचल के इतिहास ,साहित्य संस्कृति एवम अन्यान्य प्रसंगों से सम्बन्धित सामग्री का सुव्यवस्थित समायोजन
तथा स्पष्टीकरण हो सका है। दोनों मूर्धन्य विद्वान है। दोनों का सम्बन्ध प्रगाढ़ है। दोनों अपने साहित्य,संसकृति,इतिहास के प्रति समर्पित है।उनके शोधपरक अध्ययन के कारण उनके विचार -विमर्श में गहरी विद्वता प्रकट होती है।यह ग्रन्थ शोधर्थियो को मार्ग दर्शन करेगा .अपने शोध क्षेत्र में आगे बढ़ने का आत्मबल प्रदान करेगा .सीमित साधन एवं विपरीत परिस्थितियों में उदेश्य के प्रति निष्ठा
से जूटे रहने का सामर्थ्य देगा। इस में कुल 188 पत्र है।
राव शेखा पुस्तक के प्रथम संस्कर्ण की छपाई के सम्बन्ध में श्री सौभाग्य सिंघजी का एक पत्र 1973 ई .
का संख्या न. 25 यहाँ उध्रत है।
चोपासनी
24.8.1973
आदरणीय भाई साहेब सुर्जन सिंह जी ,
आप का कृपा पत्र कुछ दिनों पूर्व मिला था। इधर वर्षा की अत्यधिकता के कारण उतर में विलम्ब
हुआ राव शेखाजी पुस्तक के 56 पृष्ट छप गये हैं।पिछले सप्ताह वर्षा के कारण प्रूफ लाने लेजाने
में कठिनाई उत्पन हो जाने के कारण मुद्रण रुक सा गया था। अब पुन: नियमित चल पड़ा है और
मैं आशा करता हूँ की दसहरा तक इस कार्य को सम्पन करवा दूं।
भूमिका के लिये भी छापे हुये फर्मो का अध्ययन तथा चिन्तन चल रहा है। आपने इस कार्य को
कितनी निष्ठां व लगन से किया है यह अब पता चलता है।फुटनोट से ज्ञात होता है की आपने समस्त
अप्राप्य सामग्री को अत्यंत ही विवेक से पढ़ तथा पचाकर अपनी बात संतुलित भाषा में व्यक्त की है।
मैं ह्रदय से और सत्यता से आपकी इस महती सेवा की सराहना करता हूँ बड़े बड़े लोग जो कार्य नही कर सके
वह सिमित साधनों के और अपने बल पर आप ने कर दिया .पुस्तक की मेरे सभी विद्वान मित्र प्रसंशा करते हैं।
अक्सर यदा कदा प्रेस में हम मिलते रहते है। तब वे लोग भी , मैं प्रूफ देखता हूँ और उन से चर्चा करता हूँ तो
सराहना करते हैं।
रंगीन चित्र का ब्लॉक और छपाई की व्यवस्था जयपुर ही कर लानी पड़ेगी . रंगीन ब्लॉक की छपाई सबसे
अछी तो बम्बई में होती है लेकिन ऐसा तो अपनी सामर्थ्य नही है . फिर जयपुर प्रिंटर्स जयपुर, अच्छा प्रेस
है, वंही छपवाना पड़ेगा। जोधपुर में रंगीन चित्रों की छपाई के लिए अच्छी व्यवस्था नही है।
और सब आनंद है। आप की प्रसन्नता का पत्र दें,पत्रोंत्तर में विलम्ब सकारण ही हो जाता है।
अत: अन्यथा न समझें।
आपका भाई
सौभाग्य सिंह शेखावत
हुकुम, ये पत्र-प्रकाश कब प्रकाशित हुआ है ?
ReplyDeleteइस पत्राचार को पुस्तक रूप में प्रकाशित करने का सारा श्रेय काकोसा श्री सौभाग्य सिंह जी का है . सन २००६ में इस का प्रकाशन उदयपुर से हुआ है.
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