Sunday, July 22, 2012

बैरण बादळी (सेखावत सुमेर सिंघजी सरवडी )


धोराँ री धायड़,
काळजिये री कोर ,
मे'वै री मायड़ ,
तरसै मिरगा मोर ,
बिन बरसी मत जावै  बैरण बादळी !

बिरखा रुत आई ,
लाग्यो अबै अषाढ़ ,
कंठा कुमलाई
मरुधरिये रि माँढ़,
हाल निजर नीं आवै बैरण बादळी !

अंबर गरणावै -
हाकै री हुँकार ,
दमके दामणिया-
खांडै हंदी धार ,
सावण मास , बीरावै बैरण बादळी !   

मकड़ी रै जालै
आभो लोरां लोर ,
मेघा मंड़रावै
जाणे सूना ढोर ,
भादूडै भरमावे, बैरण बादळी !

मोतीडा निपजै
बरसा इंदर, छांट !
तावडियो तांणी
करमां  केरी गांठ ,
आसोजां अळसावै बैरण बादळी1


(राजस्थान के लिए मेह  व बादल़ी का महत्व जितना है वह समझना बाकि हिंदुस्तान के लिए असंभव है .मेघदूत कालिदास ने मध्य भारत में रह कर लिखी किन्तु राजस्थान के कवियों ने जो मेघमाल लिखी वो धोरों की धरती का मार्मिक काव्य है. चन्दर सिंघजी विरकाली ने लिखी या सुमेरसिंह जी ने इस में धरती की सोरभ है।  

      

   

1 comment:

  1. बहुत बढ़िया रचना|
    (जब मैं कालेज में था तब राजपूत छात्रावास सीकर में समाज के लोगों की बैठक में छात्रावास के लिए चंदा करने की बात तय हुई| सुमेर सिंह जी ने रशीद बुके छपवाने की जिम्मेदारी ली|
    आखिर में बैठक को संबोधित करते वकील बन्नेसिंह जी अपनी खास शैली वाली हिंदी में बोले- "रसीद बुके तो सुमेरसिंह जी छपवा ही देंगे|"
    बस फिर क्या था सुमेर सिंह जी खड़े हुए और बोलने लगे "छपवा ही देंगे" का क्या मतलब? मेरी तो हेंड रेटिंग इतनी बढ़िया है कि मैं अपने हाथों से ही छाप सकता हूँ|
    और दोनों में झगड़ा हो गया|
    दरअसल "छपवा ही देंगे" सुनकर सुमेर सिंह जी को लगा कि बन्ने सिंह जी ने उन पर ताना मारा है|

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