Monday, July 23, 2012

अधुना ओपरी (सेखावत सुमेरसिंह सरवडी )

मुरधर री मरवण ,
पूंगल री पदमण ,
अणखै जुग आखो ,
अपरोघे थारै
नटणी सै नवलै साँग  नै ,
घूँघट बिन सूनी माँग नै  !

माँडेची  मूमल ,
जेसाणी सूमल ,
कीकर तो कोई थने ओलखै -
सडकां पै फिरती ,
मछली सी तिरती -
अणचीतै अधुना भेस में ,
मारू देस में ?

मनडै री मनणा ,
रामू री चनणा ,
तितली बण बैठी ,
बँगलां रै जँगलां आज तूं !
बातां री बीणत ,
ख्यातां री कीरत ,
अब कियाँ पिछाणे
फुटरापो थारो पाछलो ,
सुंदर सांचलो !            

सुगणी घण साभळ
खीवै री आभळ ,
बदल्यो जुग , बदळी लार तूं !
नगरां री नारी ,
अबल़ा सिणगारी ,
कद कठे कटाई
या वेणी वासग नाग सी ,
कजळी बाग सी ?

महिला मरदानी ,
बूची बचकानी ,
फुटपाथां हाँडै गूंगी बावळी ,
गोरी सांवली  ?

गज गामण गजबण ,
लजवंती लजवण ,
सुवटै री मैना ,
बीरा री बै'ना ,
कवियां न लागे अधुना ओपरी ,
सोनल ,छोकरी !               
     




1 comment:

  1. शानदार रचना
    सुमेर सिंह जी की एक ओर बात-

    एक बार स्कूल में पढाने के लिए अपनी एक कक्षा में गए उनसे पहले पढाने के लिए किसी महिला अध्यापक का पीरियड था वह जो पाठ पढ़ा रही थी वो पुरा नहीं हुआ तो पीरियड खत्म होने के बाद भी पढ़ाती रही तब तक सुमेर सिंह जी आ गए तो अध्यापिका ने उनसे अनुरोध किया कि पांच मिनट में वो अपना पाठ खत्म कर देगी तब तक इन्तजार कीजिये|
    बस फिर क्या था सुमेर सिंह जी को गुस्सा आ गया बोले- तुझे पता नहीं मैं कौन हूँ ? और मुझ डबल एम् ऐ के सामने तेरी बोलने की हिम्मत कैसे हुई ? और बेचारी अध्यापिका को लताड़ कर उन्होंने कक्षा से बाहर कर किया|

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