Monday, July 16, 2012

मरू-मंगल

सेखावत सुमेर सिंघजी सरवडी की मरु मंगल 1982 ई. में प्रकाशित हुई , यह राजस्थानी काव्य संग्रह है.कविताये बहुत ही सटीक व भावपूर्ण है राजस्थानी साहित्य के मूर्धन्य विद्वान श्री रावत जी सारस्वत ने इस की भूमिका लिखी है राजस्थानी में लिखी यह भूमिका भी बहुत ऊच्च कोटि की है।

                                                         आमुख
सत खंडे महल रै झरोखे, झीणे रेसमी पड़दै ओ'लै , सात  सहेल्यां रै झुमके बैठी कोई मुग्धा अकन कंवार ,
ज्यों सैंपूर रजवाडी लवाजमै रै बिचुंबीच हाथी रै होदै मुळकतै राजकंवर नै भर नैण निरखै , कै हिंगलू  बरणी ढोळणी पर अळसाक   मरोड़तै, भंवरपटां रै किणी  लांझे छैल री सीबी , ज्यूँ ओलूं -दोलुं हाजरी में ऊभी पदमणिया रा रांग रंगीला बेसां में लिपटी थाकि सीसमहल रा सैंस सैंस काचां मैं पळका मारै,  कै रंगमहल री रोसां मैं मांड्या भांत भंतिला चितराम ,ज्यूँ  ऊमाया नैणा नै निरखण रा हेला मारे -
क्यूँ इसी सी बणगट,इसो ही फूटरापो लखावै सुमेरजी रा छन्दा मै ,जठै नुवै जुनै मुरधर रा जीवता जागता रूप
परतख होता दिखे .

ओ समुचो काव्य  भोपा री फडा में उकेरया गाढ़े रंगा रा चितरामां ज्यूँ  दरसावै ,अर आँ छन्दा रा मुधरा -ओपता बोल भोप्यां रा तीखा सुरां सा गिगनारा चढ़'रै चोफेर गूंजता सा लखावै .झरने री झरण ज्यूँ  खळखलता, कोयल रै इकलैंग साद ज्यों कालजे में कसकता , सावण री साँझ में रूंखां री टूं'कळया सूँ मोर टहूका रों सो मधरास ढोळता अ छंद ठेठ देसी ठाठ में मरुधर री महमा रो बखाण करै .

बरसांपहलां 'मेघमाळ मै आँ री छंदारी  गुंथावट ,सबदा रो बँधेज,बखाणरी कारीगरी ,अर काळी कांठळ  बण
 उमड़ता घुमड़ता भावाँ रा बरसालू बादल़ा  आज रै राजस्थानी साहित मैं आप री एक निरावली छाप छोड़ी ही .
        घणी उडीक रै पछे मुरधर रो सांगोपांग सरूप ;धोरा ,मगरा,डूंगरां अर आखी जियाजूण री बणराय -सूधो मिनखाचारो ,जूनी ख्यातां रा  सैनाण ,नूँवै निरमाण रा सांपरत होता सुपना ,इण सगला चौफेरै ने
समेटता थकां घणमोला रतन जडाव रा आभुसणा री ज्यूँ छंदा री आ मंजूस खोळ'र साम्हें मेली है. लक्खी
बिणजारै री हाट ज्यूँ   दीपती इण पोथी में मिनखां रा अनोखा करतब अर अनूठी करतूतां बळबँका गायडमल
मरदां री मरदमीं, रणबँका सूरां री  जीत रा 'टोडरमल' गाता  बधावा ,  सेलाँ री अणिया सूँ बाटी सेकता
 घुड़ाला रा असवार ,  ड़ीघापातला ,बादीला, मदछकिया छेलभँवर , मरवण रा कोड़ायत,
   काळी कोसां करला डकाता ढोल कँवर,  तरवारां री धारां   सांपडता साकां रा करणहार , अगन झळl में
सिनान करती सतियाँ रा झुलरा - एक सू एक सोवणी मन मोवणी  मूँडै बोलती छिब निजरां सँजोई है .

चौमासे रा इमरत फळ मतीरा , ऊँडै निरमल जळ रा साठीका कूवा ,सरवर री पालां मँड़ता तीजां गणगोरां
  रा मेला खेला चाक्यां रा घमड़का री तालां पर परभाती गाती भु बेट्याँ रा जूट .  

     
     
                  

4 comments:

  1. सुमेर सिंह जी री एक कविता री किताब छपी जद म्हे कालेज में पढतो, उण किताब री कविता री एक लाइन आज भी याद है -
    सत्ता वोट नोट री आंधी
    जिग्यो नाथ्यो मरग्यो गांधी |
    सुमेर सिंह जी री बातां रा और भी कई संस्मरण है कदे मिलां ला जद चर्चा करस्यां :)

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  2. "गायडमल"
    इसका क्या मतलब है... कृपया बताएँगे.....

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  3. prgadh se gadh bana jiska mtlb ha drudh.yhan pr is me vyang hai.

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  4. बेहतरीन मदन जी... अति उत्तम....

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