Wednesday, April 11, 2012

Rana Rajsingh udaypur ka kaviyon ki prsansa me


कहाँ राम कहाँ लखन,नाम रहियो रामायण !
कहाँ कृष्ण बलदेव ,प्रगट भागोत पुराण !
बाल्मीकि सुक व्यास ,कथा कविता न करंता !
कवन स्वरूप सेवतो , कवन मन ध्यान धरंता !
जग अमर नाम चावो जिका ,सुनो सजीवन अखरा !
राजसी कह जगराण रो ,पूजो पांव कविसरा !!
राणा राज सिंघजी उदैपुर खुद अछे कवी थे ,उन्होंने कवियों की प्रसंशा में उक्त पध्य लिखा था.k
भावार्थ : आज राम और लक्ष्मण नही है परन्तु उन का वर्णन रामायण में है ,उसी प्रकार बलदेव व कृष्ण भी नही है किन्तु भागवत व पुराणो में वे आज भी    जीवित है.वाल्मिक , सुकदेव ,व्यास आदि अगर कथा कविता में उन को जिन्दा नही रखते तो आज उन का कोन ध्यान धरता और उन के रूप की  पूजा अर्चना होती . जगत में जिस को अमर नाम चाहिए  उसको कवियों के पांव पूजने चाहिए,राणा जगत सिंह का पुत्र  राजसिंह यह सजीवन अक्षरों   में कह रहा है    

3 comments:

  1. सही कहा राज सिंह जी ने यदि कवि, साहित्यकार इतिहासकार नहीं होते तो आज न इतिहास होता न साहित्य और न ही हम अपने पूर्वजों के बारे में पढ़ पाते !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. જય એક્લીનાથ જી કી સા
      બહુત હી સુંદર અભી વ્યક્તિ - ધન્યવાદ

      Delete
  2. જય એક્લીનાથ જી કી સા
    બહુત હી સુંદર અભી વ્યક્તિ - ધન્યવાદ

    ReplyDelete