Friday, April 27, 2012

श्री सुरजन सिंघजी झाझड की स्मृति में

                                      श्री सुरजन सिंघजी झाझड की स्मृति में
                                                                                                            (  महावीर सिंघजी सरवडी)
(यह लेख संघ शक्ति के जुलाई'१९९९ में प्रकाशित हुआ है.श्री सुरजन सिंघजी का स्वर्गवास २० मई १९९९ को हुआ )

सादा और सदाचारी जीवन की प्रति मूर्ति , क्षत्रिय आदर्श के अनुवर्ती व पोषक श्री सुरजन सिंघजी शेखावत ,झाझड ग्राम के ही सपूत नही थे, शेखावाटी अथवा शेखावतों के ही सपूत नही थे वरन वे राजस्थान प्रदेश के सपूत थे .बाल्यावस्था से लेकर ८९ वर्ष की वृद्ता तक लगातार वे साहित्य साधना में तप कर निखर ते रहे.वे डिंगल भाषा के मूर्धन्य विद्वान थे. डिंगल भाषा के माध्यम  से पूर्वजों की शोर्य गाथाएं उनके इतिहास प्रेम की पोषक बनी. साहित्य साधना उनके जीवन का आधार ही बन गई. कुछ समय पूर्व उनकी आँखों की ज्योती  मंद होने पर उनका स्पष्ट रूप से कहना था कि अगर आँखों कि ज्योति नही मिलती है तो मेरा तो जीवन ही समाप्त प्राय है. ऐसे साहित्य सेवे वे थे कि साहित्य साधना निरंतर नही रख सके तो जीवन ही निरर्थक लगता था.
इतिहास का उन का अध्ययन गहन था. विभिन्न ख्यातों एवम उपलब्ध इतिहास पुस्तकों को बारीकी से उन्होंने पढ़ा था. उनकी स्मरणशक्ति  इतनी तिक्षण थी कि अनेक वर्षों पूर्व सुने व पढ़े कवित, घटनाओं आदि का अक्षरस: वर्णन कर देते थे. मुसलमान इतिहासकारों द्वारा लिखे गये इतिहास की भी उन्हें पूरी जानकारी थी. उनका इतिहास सम्बन्धित लेखन शोधपरक होता था. विभिन्न माध्यमों से प्रमाणित होने वाली बात ही वे लिखते थे. अपनी बात को पुष्ट व प्रमाणिकता देने के लिए इतिहास का गहन अध्ययन करके पूरे सन्दर्भ उपलब्ध करवाते थे.
            राजस्थानी भाषा,साहित्य एवम संस्कृति अकादमी के सर्वोच्च सम्मान 'मनीषी'से वे १९९४ में सम्मानित किये गये.उनकी अदभुत साहित्य सेवा के लिए उन्हें अनेक सम्मान दिए गये,पर वे इन सभी से ऊपर साहित्य और इतिहास की सेवा में सदैव समर्पित रहे. 'राव शेखा','मांडण का युद्ध','नवलगढ़ का इतिहास' ,'शेखावाटी का प्राचीन इतिहास','महान क्रन्तिकारी  राव गोपाल सिंह खरवा','खंडेला का इतिहास',' खरवा का इतिहास', आदि अनेक बहुचर्चित पुस्तकों के जनक श्री सुरजन सिंघजी ने अनेकों शोध परक आलेख भी लिखे 
जो शोध पत्रिकाओं की शोभा बढाती हैं .
               आजकल शोधके नाम पर इतिहास को विकृत किये जाने की धारा प्रवाहित हो रही .अध्ययन के आभाव में
 तथ्यहीन बातें लिख डाली जाती है. जो आने वाली पीढ़ी को दिग्भ्रमित करती है.श्री सुरजन सिंघजी इस वृति से व्यथित थे और कोई भी भ्रान्ति निवारण हेतु उनसे सम्पर्क करता, उसको पूरा सहयोग देते थे.
इसका जीता जागता उदाहरण उनका निम्न पत्र है. श्री राजेन्द्र शाह ,९८३ पावटा सी, चौथी रोड, जोधपुर  ने अपने १३.५.९९ के पत्र द्वारा मोटा राजा उदय सिंह की म्रत्यु सम्बन्धित भ्रान्ति का निवारण  करवाने  हेतु निवेदन किया. श्री सुरजन सिंघजी ने अपने महाप्रयाण के एक दिन पूर्व १९ मई, १९९९ को उस पत्र का उतर लिखवाया जो निम्न प्रकार है.

        महोदय आपका पत्र प्राप्त हुआ. आपकी जिज्ञासा ज्ञात हुई. अन्यथा न समझें तो वर्तमान में आयुर्वेदिक के वैधे महोदयों में बहुत से ऐसे नीम हकीम भी होतें हैंजो मरीजों को ऐसी दवाइयां देकर उनके 
रोग को  और अधिक बढ़ा देती हैं. इसी प्रकार आज के कॉलेजों  के बहुसंख्यक स्नातक
 प्रमाणिक इतिहासों का सही अध्ययन किये बिना अधूरे,विकृत, निराधार और असंगत तथ्यों  की ही
जानकारी रखते है, जिससे हमारे प्रमाणिक इतिहासों में लिखित तथ्य भ्रांत, असंगत, और निराधार बन जाते हैं.
       आपने इस पत्र में जोधपुर के मोटा राजा उदय सिंह की मृत्यु दंताणी के युद्ध में सिरोही के
देवड़ा शासक राव सुरताण के साथ लड़े गये युद्ध में मरे जाने को संगत और सही मान लिया है.
आपकी यह जानकारी नितांत असंगत,निराधार और भ्रान्तिजनक है.
          दताणी का युद्ध विक्रमी सम्वत १६४० की काती सुदी ११ को लडा गया था.बादशाह अकबर ने उदयपुर के जगमाल शिशोदिया को जो राणा उदय सिंह का पुत्र था सिरोही का आधा राज्य दिलाने के लिए इस सम्वत में राव चन्द्रसेन राठोड के पुत्र राय सिंह को जिसे अपने पिता की मृत्यु के बाद
अकबर ने सोजत का राव बना दिया था,जगमाल सिशोदिया के साथ सेना देकर सिरोही के राव सुरताण  के विरुद्ध भेजा.सुरताण ने दतानी तक आकर उसका मुकाबला किया और युद्ध लड़ा.उस
युद्ध में राव सुरताण विजयी हुआ और जगमाल सिसोदिया  और राव चन्द्रसेन का पुत्र राय सिंह दोनों 
ही मारे गये. उस युद्ध में मोटा राजा उदयसिंह का नाम जोड़ना असंगत और अपनी अनभिज्ञता का द्योतक 
है. हाँ इस युद्ध के पूर्व भी अकबर ने उदय सिंह को भी सिरोही के आक्रमण में भेजा था,परन्तु दतानी के युद्ध में उदय सिंह नही था.
(सन्दर्भ)
अकबरनामा फारसी से अंग्रेजी अनुवाद और तुज्के जहाँगीरी फारसी से अंग्रेजी अनुवाद, हिंदी में ओझाजी लिखित जोधपुर का इतिहास, पंडित रेउजी लिखित जोधपुर का इतिहास एवम पंडित रामकरनजी आसोपा  लिखित मारवाड़ का मूल इतिहास आदि प्रमाणिक ग्रन्थों  का आप अवश्य अध्ययन करावें.
आपने मूंणोत नैणसी की ख्यात का हवाला भी दिया है- मूणोत नैणसी की ख्यात को दुगड़जी ने तथा ओझाजी ने पुन: संशोधित करके प्रकाशित कराया था.आप उसे भी पढने की कृपा करावे.
                आपने मोटा राजा उदय सिंह का दत्तानी के युद्ध में मारे जाने का वृत लिख कर असंगत व निराधार लेख लिख दिया है.इतिहासिक सत्य यह है की जब बादशाह अकबर लाहोर में था और मोटा राजा  उदयसिंह अपने पुत्रों सहित वहां उपस्थित था, तब विक्रमी सम्वत १६५१ के आसाढ़ सुद १५ को उदयसिंह मृत्यु को प्राप्त हुआ. तब बादशाह अकबर ने राजा की इच्छा के अनुसार उनके पुत्र शूर सिंह 
को राजा का ख़िताब देकर राजा बना दिया.
( सन्दर्भ ग्रन्थ पढ़िए )
जोधपुर राज्यकी ख्यात राजकुमार डॉ. रघुवीर सिंह सीतामऊ और उनके सहयोगी मनोहर सिंह रानावत   
द्वारा सम्पादित पृष्ट ११५-११६ पर 
इसके अतिरिक्त ओझाजी ,प. रेउजी,रामकरन जी ,मुंशी देवी प्रसाद आदि द्वारा जोधपुर के इतिहास जिनमे मोटा राजा उदय सिंह के सन्दर्भ में पूरा हाल लिखा हुआ है, पढने का कष्ट उठावें 
और मुहनोत नैनसी की ख्यात के वे संस्करण जो दुगड़जी और ओझा जी ने संशोधित कर के प्रकाशित कराये,सही हैं ,पढेंगे .मै चाहता हूँ किआप उपरोक्त सभी सन्दर्भ ग्रन्थों का एक इतिहासज्ञ 
कि दृष्टी से अवलोकन कर के आपकी जो गलत धारणा दत्तानी के युद्ध के सन्दर्भ में बनी है,उसे सही रूप में लिखकर प्रस्तुत करने की कृपा करे.मै आप के पत्र की प्रतीक्षा कर रहा हूँ.
         इन कई महीनों से मेरी नेत्र ज्योति मंद पद चुकी है, इस हेतु न तो मैं आये पत्र पढ़ सका हूँ और न 
जैसा चाहता हूँ वैसा लिख सकता हूँ. मेरी इस शारीरिक असमर्थता के कारण मेरी आयुष्मती पोत्री से बोलकर आप को यह पत्र लिखवाया है. सम्भव है शब्दों,वाक्यों और लेखन शैली में कुछ अधूरापन प्रतीत होता हो तो आप इन त्रुटियों को 
सुधारकर  पढेंगे.
           उतराकांक्षि आपका विनम्र -
                                                   सुरजन सिंह शेखावत
                                                           ग्राम-झाझड
पुनश्च :
मुझे बड़ा दुःख होता है कि आज के इतिहासों में गति रखने वाले विद्वान ऐतिहासिक तथ्यों
 को विकृत बनाकर लिखते है और शिक्षा बोर्ड  के अधिकारीयों से मिलकर अपने द्वारा लिखित पुस्तकें 
स्कूली पाठ्य पुस्तकों में रखा देते है, जिस से हमारे इतिहासों के तथ्यों कि हत्या हो जाती है.मैंने इन दिनों 
हमारे स्कूलों में पढाये जाने वाले ऐसे अधूरे अल्पज्ञ विद्वानों द्वारा लिखित ग्रन्थ बच्चों को पढाये जाते देखे है.और इस प्रकार  हमारा गौरवपूर्ण इतिहास विकृत बना दिया जाता है.
                                                                                            आपका-सुरजन सिंह    

  

3 comments:

  1. ग्यारहवीं कक्षा में पढते समय स्कूली किताबों के अलावा पहली बार आदरणीय स्व.श्री सुरजनसिंह जी की पुस्तक "राव शेखा" पढ़ने को मिली और उस पुस्तक को पढ़ने के बाद इतिहास पढ़ने में ऐसी रूचि पैदा हुई जिसमे आज तक कभी कोई कमी नहीं आई|
    आदरणीय श्री सुरजनसिंह जी मेरे प्रेरणा श्रोत है|

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  2. इतिहाशविज्ञ,मनीषी सुरजन सिंह जी की "महाराव शेखा" पुस्तक मुझे भी राजपूत छात्रावास झुंझुनू में अध्ययन के दौरान पढने को मिली थी।
    तब से मुझे भी इतिहास को पढने का व् जानने का शौक लगा ।
    १९९९ में झाझड़ गाँव में क्षत्रिय युवक संघ का प्राथमिक शिविर लगा था ।जिसको मैंने अटेंड किया था ।उस समय वह अत्यधिक अस्वस्थ चल रहे थे ।फिर भी उन्होंने शिविरार्थियों के लिए एक सन्देश भिजवाया था ।जिसे सबको पढ़कर सुनाया गया था ।दुर्भाग्यवश ऐसे मनीषी ,चिन्तक से में मिल नहीं पाया था ।जिसका खेद रहेगा।

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  3. स्वर्गीय श्री सुरजन सिंह जी शेखावत जी के द्वारा लिखी गई पुस्तक खरवा का व्रत इतिहास कहीं मिल सकती है क्या कृपया मुझे उपलब्ध कराएं कई दिनों से खोज रहा हूं कहीं नहीं मिली 9664027929

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