दादीसा ढापा ढकै - हर्ष दान हर्ष की कविता
पीड रा खेत में अपणा ही ,
जायोड़ा रे हाथां
बोया कुटिल बीजां नै उगता देख रै ,
दादीसा करलापे।
रह्या जिगर रा टूक ,आँख रा तारा
वा किण विध दुत्कार'र
उण रो परित्याग करै।
अपणो मन मसोसती मन ई मन सोचती ,
या जांघ उघाड़ूं तो या लाजां मरै ,
अर या उघाड़ूं तो या जांघ लाजां मरै।
लाज रा फेर में अपणी कुख री
अपणा कुटम कबीला री लाज राखण नै
निगोड़ा जायोडां री
नित नुवीं करतूतां रा
दादीसा ढ़ापा ढकै।
( यह ढ़ापा ढकना ऐसा शब्द है जिसका अनुवाद सही सही नही किया जा सकता है। सभी दादी , मातायें अपनी नाजोगी संतानो के अवगुणो को ढकती ही रहती हैं। )
पीड रा खेत में अपणा ही ,
जायोड़ा रे हाथां
बोया कुटिल बीजां नै उगता देख रै ,
दादीसा करलापे।
रह्या जिगर रा टूक ,आँख रा तारा
वा किण विध दुत्कार'र
उण रो परित्याग करै।
अपणो मन मसोसती मन ई मन सोचती ,
या जांघ उघाड़ूं तो या लाजां मरै ,
अर या उघाड़ूं तो या जांघ लाजां मरै।
लाज रा फेर में अपणी कुख री
अपणा कुटम कबीला री लाज राखण नै
निगोड़ा जायोडां री
नित नुवीं करतूतां रा
दादीसा ढ़ापा ढकै।
( यह ढ़ापा ढकना ऐसा शब्द है जिसका अनुवाद सही सही नही किया जा सकता है। सभी दादी , मातायें अपनी नाजोगी संतानो के अवगुणो को ढकती ही रहती हैं। )
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