हर्ष व जीण
सीकर के पास हरस का पहाड़ है इस पर हर्षनाथ शिव का मंदिर है। इस मंदिर को ओरंगजेब के समय क्षति पंहुचायी गयी। जब शिव ने दानवों संहार किया तो उन्हें बड़ा हर्ष हुआ व वे नृत्य करने लगे और तब से वे हर्षनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुये। पास ही दूसरी पहाड़ी पर जीण माता का मंदिर है यह माता जयंती देवी है। ये मंदिर बहुत ही प्राचीन हैं। यह मंदिर गुप्त काल में भी विध्यमान था। नवमी शताब्दी में चौहान राजा गुवक ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था।
इस संबंध में एक जन काव्य "हरस व जीण " के नाम से बड़ा प्रसिद्ध है। यह बहिन -भाई के स्नहे को दर्शाता है।
चुरू के पास घांघू नामक एक गाँव है जो पुराने समय में बड़ा समृद्ध था। घांघू के चौहान राजा घंघ देव के हरस नामक एक पुत्र व जीण नामक एक पुत्री थी। राजा की मृत्यु के उपरान्त हरस की पत्नी ने अपनी ननद जीण को कुछ ताना मार दिया जिस से रुष्ट होकर घर से निकल गयी व सीकर के पास पहाड़ी पर तपस्या करने लगी। भाई हरस उसे मनाने आया किन्तु उसने लौटने से मना कर दिया तब तो हरस भी समीप की दूसरी पहाड़ी पर तपस्या करने लगा। इस प्रकार हरस ने जिस पहाड़ी पर तपस्या की उसे हरस का पर्वत व हर्ष को शिव के रूप में व जीण को माता के रूप में पूजा गया।
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