राजस्थानी के पद्य साहित्य के साथ ही गद्य साहित्य भी बड़ा समृद्ध है। वैसे ही पत्र लेखन भी बड़ा ही समृद्ध है। रामनाथजी का एक पत्र डॉ.मनोहर जी शर्मा की पुस्तक से :-
यह पत्र रामनाथजी ने अलवर से जोधपुर के तत्कालीन कविराज भारत दान जी को १८५१ ई. में लिखा था।
श्री राम जी
म्हारी मनवारी रो अमल दारु दुनो दध्योड़ो लिरावसो जी
राजश्री कंवरजी चिमनसिंघजी रा मनवारी रो अमल दारू दुणो लिरावास्यो जी
सिद्ध श्री जोधपुर सुभ सुथानेक सदव ओपमा बिराजमान अनेक ओपमा लायक राजश्री कविराजजी श्री भारतदानजी जोग लिखियातुम अलवर सुं कविया रामनाथ स्योनाथ को मुजरी मालुम होयसी
अपरंच अठा का समाचार भला छै आपरा सदा आरोगी चायजै जी अपरंचि कागद आपरो आयो समाचार बांच्या मिलण रो सो सुख उपज्यो और आप लिखी सो ठीक छै अब आप नै पिरोतजी अठा का समाचार कैसी सो जाणु ला सो ठाकर साब उमजी और आयसजी माराजजी और आप मालिम करी र पाछो कागद तीनू ही सरदार लिखवस्योंजि।
यह पत्र रामनाथजी ने अलवर से जोधपुर के तत्कालीन कविराज भारत दान जी को १८५१ ई. में लिखा था।
श्री राम जी
म्हारी मनवारी रो अमल दारु दुनो दध्योड़ो लिरावसो जी
राजश्री कंवरजी चिमनसिंघजी रा मनवारी रो अमल दारू दुणो लिरावास्यो जी
सिद्ध श्री जोधपुर सुभ सुथानेक सदव ओपमा बिराजमान अनेक ओपमा लायक राजश्री कविराजजी श्री भारतदानजी जोग लिखियातुम अलवर सुं कविया रामनाथ स्योनाथ को मुजरी मालुम होयसी
अपरंच अठा का समाचार भला छै आपरा सदा आरोगी चायजै जी अपरंचि कागद आपरो आयो समाचार बांच्या मिलण रो सो सुख उपज्यो और आप लिखी सो ठीक छै अब आप नै पिरोतजी अठा का समाचार कैसी सो जाणु ला सो ठाकर साब उमजी और आयसजी माराजजी और आप मालिम करी र पाछो कागद तीनू ही सरदार लिखवस्योंजि।
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