चारण लोग उनके साथ हुये राजाओं के अन्याय के खिलाप धरना देते थे। यह आमरण अनशन होता था। रामनाथजी कविया ने जब अलवर नरेश विजय सिंघजी ने इनके सांसण के गाँव को खालसे कर लिया तो धरणा किया। जिस में १०१ चारण आत्मबलिदान के लिए तैयार हुये। यह अलवर का धरणा के नाम से विख्यात है। इस में जैसलमेर का एक चारण जो घोड़े बेचने के लिए आया था वो भी इस जातीय यज्ञ में शामिल हो गया। अलवर का पोळ पात जैता जगावत भी धरणे पर बैठा था किन्तु उसने पग छोड़ दिए। इस पर रामनाथ जी ने कहा :-
जागावत जैता जिसा अस्ति भगा अनेक।
कलियो गाडो काढ्बा ,आयो थलियो एक।.
मरस्यां तो मोटे मतै ,सह जग कह सपूत।
जिस्यां तो देस्याँ जरुर , जैता रै सिर जूत।।
जैता जगावत जैसे जैसे कई हस्ती भाग गये। कीचड़ में फसे गाड़े को निकाल ने के लिए एक थालिया यानी थली प्रदेश का आदमी आगे आया। अगर इस बड़े उद्देश्य के लिये मारे गये तो पूरा जगत सपूत कहेगा। और अगर जिन्दा रह गये तो इस जैता के सर पर जूत जरुर मारेंगे।
No comments:
Post a Comment