Thursday, May 29, 2014

गीत राठोड प्रिथिराज रो कह्यो

यह मरसिया प्रिथिराज राठोड बीकानेर ने अपने पिता राजा  कल्याणमल जी बीकानेर की मृत्यु पर कहा था। इस में मृत्यु व उसका जीवन दर्शन बड़े हे सुंदर ढंग से  अभिव्यक्त है -मैंने इस को शब्दिक अर्थ से अनुवाद करने का प्रयत्न किया है जिस से अर्थ अपने आप समझ में आये। अन्यथा भावार्थ सुंदर ढंग से किया जा सकता था। :-

सुखरास रमन्ता पास सहेली                   
दास खवास मोकळा दाम 
न लियो नाम पखै नारायण 
कलियो उठ चलियो बेकाम।

भावार्थ :- सुख रास में रमे हुये ,पास में सहेलियाँ ,दास ,खवास ( खवास =नाई ) मोकळा दाम यानी धन। किन्तु अंत तक नारायण का नाम नही लिया और अंत में कल्याण मल उठ चले इस संसार से बेकाम यानि बिना कुछ उपलब्धि के।


माया पास रही मुळकती 
सजि सुंदरी कीधां सिणगार 
बहु परिवार कुट्मब चौ बाघो 
हरि बिन गया जमारो हार।

भावार्थ :- माया पास में मुळकती रही। सुंदरियाँ सज धज व शृंगार कर के खड़ी रहीं।बड़ा परिवार कुटम्ब भी बढ़ा हुआ। किन्तु हरी के नाम के  बिना यह जीवन हार गए।  

हास हसंता रह्या धौलाहर                       
सुख में राजत जे सिणगार 
लाखां धणी प्रयाणै लांबै  
जातां नही भेजिया जुहार। 

भावर्थ :- यह धोलाहर यानि महल हास्य में हँसते रहे जो सुख के  समय शृंगारित रहते थे। ये लाखों का धणी (मालिक ) जब लम्बी यात्रा पर निकला तो किसी ने जाते हुए को नमस्कार भी नही भेजा। (प्रयाणै =प्रयाण ,लाम्बे =लम्बे ,जुहार =झुक कर नमस्कार )


भाई बंध कड़ूंबो भेळो 
पिंड न राखै हेक पुल 
चापरि करे अंग सिर चाढ़ो 
काढो -काढो कहै कुळ।

भावार्थ :- भाई ,बंधु व पूरा कुटम्ब (कड़ूम्बो ) इकठा हो गया (भेळा ) परन्तु इस पिंड को यानि मृत देह को एक पल भी घर में रखना नही चाहते। क्या कह रहे हैं - काढो -काढो कह कुळ और फिर चापर करके यानि जल्दी कर के इस को अंग सर चाढ़ो (अग्नि को समर्पित करो )

असिया रह्या पग आफलता 
मदझर खळहळता मैमंत 
बहलो धणी सिंघासण वाळो 
पाळो होय हालियो पंथ।

भावार्थ :-घोड़े पैर पटकते रह गये।मदझर  मैमंत - मस्त हाथी झूमते रह गए। परन्तु बड़े सिंघासन वाला पैदल ही अपनी अंतिम यात्रा पर चला।  ( पालो =पैदल , हालिया =चला )


देहली लग महली पिण दौड़ी 
फसला लग मा बहण फिरी 
मरघट लगो कुटमब चौ मेळो 
किणयन सुख दुःख बात करी।

भावार्थ :- दहलीज तक स्त्री (महली ) आई। फलसे तक मां व बहन आयी। मरघट पर कुटम्ब का मेला लगा। किन्तु किसी ने भी सुख दुःख की बात नही की। यह नही पूछा कैसे हो ?


कोमल अंग न सह्तो कलियाँ 
ताती झलियां सहै तप 
घड़ी -घडी कर तड़ी धृवियो 
बड़ी बड़ी बलियो बप।

भावार्थ :-कोमल अंग जो फूलों की कलियों को भी नही सहता था ,ताती -गर्म झलों  का ताप सह रहा है। दाह संस्कार के समय घड़ी -घडी लकड़ियों से कुरेदा जा रहा है। ( तड़ी = लकड़ी ,जांटी  की तड़ी,नीम की तड़ी=तड़ी यानि लकड़ी की डाली ) यह जो बप है शरीर है वह बड़ी बड़ी होकर बळा यानि जला।
   

केसर चनण चरचतो काया  
भणहणता ऊपर भ्रमर 
रजियो राख तणै पूगरनै 
घणा मुसाणा बीच घर। 

भावार्थ :-केसर व चंदन से जो शरीर महकता था उस के ऊपर भर्मर गुंजायमान होते थे। उसकी हालत यह हुयी की वह राख के वस्त्रों में लिप्त गया है। उसका घर श्मशान में हो गया है।


खाटी सो दाटी घर खोदै 
साथ न चाली हेक सिळि 
पवन ज जाय पवन बिच पैठो 
माटी माटी मांहि मिली।

भावार्थ :- जो उसने हस्तगत किया उसे खोद कर जमीन में गाड़ कर सुरक्षित किया ,किन्तु उसमे से एक सीली यानी तिनका भी साथ नही गया। हुआ क्या - पवन -पवन में मिल गयी और मिटटी मिटटी में मिल गयी।  
१ भवन -महल -धोलहर
२ लकड़ी -तड़ी 
३ कुरेदा -धृवियो 
४  वस्त्र -पूगरने  

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