Tuesday, May 29, 2012

बादसाह अकबर ने जब १५६७ में चितोड़ पर आक्रमण किया तो   महाराणा उदय सिंह ने चितोड़ खाली कर पहाड़ों की शरण ली व चितोड़ का किला   राव जयमल जी मेडतिया व पत्ताजी शिसोदिया को रक्षा के 
 लिए सुपुर्द कर दिया. दोना योधाओं ने अपने जीते जी चितोड़ पर दुश्मन का कब्जा नही होने दिया. इस सम्बन्ध में एक डिंगल गीत है:-

                                              गीत  
चवै राव जैमल चितौड मत चल चलै ,
      हेड हूँ अरिदल न दूं हाथै !
ताहरै शीस पग चढ़े नह ताइया ,
     माहरै शीस जे खवां माथै !!१!!
 
भावार्थ : " राव जयमल कहता है - हे चितौड तूं  चल विचलित मत हो
दुश्मनों को मै भगा दूंगा -उन के हाथ तुम्हारे तक नही पहुंच ने
दूंगा.जब तक मेरा  सिर (खवां ) कंधो पर है तब तक दुश्मन के पांव 
तुम्हारे सिर पर नही पड़ेंगे .
 
धडकै मत चित्रगढ़ जोधहर धीरपै ,
       गंज सत्रा दलां कंक गजगाह !
भुजां सूं मुझ जद कमल कमलां मिलै ,
        पछे तो कमल पग दे पातसाह  !!२!!
 
भावार्थ :हे चितोड़गढ़ ! तूं धडक मत ! भयभीत मत हो राव जोधा का पौत्र 
तुझे धीरज बंधाता है. मै शत्रु दल  व इस के हाथियों के समूह ध्वस्त करूंगा. .
मेरा मस्तक जब कटकर महारुद्र के गले में चढ़ जायेगा ,   उस के बाद ही बादसाह 
तेरे मस्तक पर पग रख सकेगा .  
 
दुदै कुल आभरण धुहड़- हर दाखवै ,
      धीर मन डरै मत करै धोको  !
प्रथि पर माहरो सीस पड़ियाँ पछे ,
      जाणजे ताहरै सीस जोखो  !!३!!
 
भावार्थ :  राव दूदा के कुल का आभरण, राव धुहड का वंशधर ,जयमल 
कहता है -हे चितोड़ -धीरज रख , डर मत और मन में किसी प्रकार का
धोका मत ला . प्रथ्वी पर मेरे मस्तक गिरने पर ही तुम्हारे पर कोई जोखिम 
आएगी.     

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