Friday, June 20, 2014

पुराने जमाने में चारणा का धरणा अर आज के धरने -एक अंतर

 राजपूत राजा ,महाराज व साधारण राजपूत के यहाँ चारण सदा सम्माननीय रहे हैं ,और उनकी काव्य प्रतिभा के हिसाब से उनको सम्मान भी प्राप्त हुआ है। युद्ध में वे केवल प्रशश्ति गायक ही नही बल्कि तलवार बजाने में भी पीछे नही रहे। और यही वजह रही की उन का युद्धों संबंधी वर्णन श्रुत नही पर भोग हुआ है। विवाह आदि मांगलिक अवसरों पर चारणो को नेग दस्तूर दिए जाते। गुणी कविसरों को बड़ी संख्या में लाख पसाव मिले हैं।  इसी तरह गाँव भी सांसण में दिए जाते थे। फिर भी कुछ ऐसे अवसर भी आये हैं जब राजा ने नाराज होने पर  सांसण में दिये गये गाँव खालसा कर लिए। ऐसे अवसरों पर चारणो ने सामूहिक धरणे दिये हैं। और सफलता की प्राप्ति के लिए पेट अथवा गले पर छुरी खाने जैसी स्थितियां भी आई हैं। और इस महापाप से बचने के लिए राजाओं ने अपने हुक्म वापस भी लिए हैं। धरने के समय देवी का आव्हान किया जाता था व देवी का स्तुति पाठ किया जाता था।
शायद गांघी  इस धरने से प्रभावित रहा हो और उसने ज्यादा तर भीरु समाज के लिए बिना मरने वाले धरने को प्रोत्साहित किया।
 

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