Monday, June 16, 2014

ढुँढाड़ का ढंग -मसकरी की मां - कवि उमर दानजी

  आदमी :-

अरे नादिदी यारां कै लार कोडी नै चाली छै यान ,
नठोड़ी निगोड़ी रांड न माने री  नीच।

म्हे भी छा मूंछयाला ,म्हांक पाग छै माथै कै माले ,
माल  जादी  म्हाने के मरया जाण्या मीच।

न्यात छै जात छै म्हाँक पांत छै बरजाँ नी कां ,
हेडो कोको व्हेछै    ल्यांछा  लायणो भी हेर हेर।

 हरामां की  पिल्ली क्यूँ हराम जादी फुट्यो  हियो,
बेरो कोनी नसे गोसे कै दीन्यो सा बार।

टुम टाम छला बिन्टी छीन दारी काढ़द्यूंतो ,
ढोल पड़े चाढद्यूंतो माजनोधिकार .

इके घाल्या कोडी न जावां आबरू उड़ावे छै री ,
लुगांडी कमाव छै री न आवे छै रे लाज।

जीजी ये जीजी की जीजी म्हां कालै दादा की जीजी ,
अरे बारे इस्यूं खियाँ जीतीजे रै आज

औरत ने जवाब दिया :-

क्यूँ रै मोल्या उठायौड़ा  बूझ बालो कुण छै रै तूं ,
म्हांकी खसी होगी जंडे जावांगा हमेस।

राम हो तो गबिडा जेल मैं खना दीजे रै ,
राण्डया रो रै राज मैं तूं तो दला दीज्ये रेस।

बाळ्या बाळ डाडी का उपाड़ ल्यूंगी बाप खाणा ,
भोगना का राल्या बांदा क्यूँ सूझी रै भूंड।

तकादो भोत बताड़े दांत सै तुड़ावै गो तूं ,
माजने सूं रेज्ये देज्ये फुड़ावै गो मूँड़।

लाचारी मर्द की :-

बोलबा की बाण छै बुरो मानजाली बावळी छै ,
अरे भांण की तूं भारयो माँड्यो छै अन्याय।

प्राण प्यारी ओठी लेल्यूं गोध म्हांकी कोन्या पूछ ,
देल्ये गाली बाली म्हाने खाण की छै दाय।

थांकी ज्यो खसी छै जीमे म्हांकी भी खसी छै  थेट,
मोटो पेट कीजे मुने दिज्ये गणा माफ़।

तूं जिसी तो तूंई छरी कालो मुंडो काड्बा मैं ,
सालो छै   कसूर म्हांको जाणबा मैं साफ़।

आग लागी बुझा लेबा ई में छै आंपां की आछी  ,
थ्यावासी तो आथ कोन्या बचारबो थोक।

आज्यों ऊंडी सोचबा की ओरां की न दाय ,
लुगाई थे म्हांकी छोजी म्हेछा थांका लोग।

रात की रात मैं ओठा आजाज्यो रामकुंराजी ,
बात की बात मैं कांई बसावांछा बैर।

थमो तो तावड़ो थे दादा का पाछे मौज थांकी ,
खुँसड़ी  तो पैर जाज्यो पगां माँई खेर।  

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