Thursday, March 14, 2013

बारठ वीरदास वीठू जो रंगरेला के नाम से भी मशहूर है ने जैसलमेर महाराजा से नाराज होने पर व्यंग में जैसलमेर रो जस नाम से एक कवित लिखा जो इस प्रकार है. 

राती रिड थोहर मध्यम रुंख !
         भमै दृगपाल मरनता भूख  !!
हूँचैरा तालर आवै हेर !
        मैं दीठा जादव जयसलमेर  !!
टिकायत राणी गधा टोल !
        हेकली लावत नीर हिलोल  !!
मुल्लक मंझार न बोले मोर !
        जर कुंवा सेहाँ गोहां जोर  !!
ढ्बुरो बारठ ढीली लांग !
         टहक्कै दोनां खोडी टांग  !!
गळयोड़ी जाजम बुगां रो ढेर !
          जुड़े जहाँ रावल रो दरबार  !!
कविसर पारख ठोठ न कोय !
           हसती भैंस बराबर होय  !!
परख्या ऊन बराबर पाट !
           धिनो घर घाट , धिनो घर घाट !!
पदमण पाणी जावत प्रात !
           रुळती आवत आधी रात  !!
बिलक्ख टाबर जोवै बाट !
            धिनो घर घाट , धिनो घर घाट !!

 संक्षेप में इस का भावार्थ इस प्रकार है.  

मैंने भाटी जाद्वों का जैसलमेर देख लिया ,यहाँ पेड़ के नाम पर थोहर है ,ढूंड ने से तालाब नही मिलता द्वारपालों  को समय से खाना नही मिलता।टिकायत राणी बेसुरी है ,देश में कंही मोर की आवाज नही आती ,कुवे उंडे है ,सेह व गोह जैसे जानवरों  का बोलबाला है ,बारहठ बेवकूफ है ढीली लांग की धोती ,खोडी टांग से टहका दे कर चलता है ,रावलजी का दरबार जहाँ जुड़ता है वहां की जाजम गली हुई है ,चोतारफ बुगों का ढेर है ,यहाँ तो सारे ठोठ हैं ,कवियों की कोई परख नही है ,इन के लिए हाथी और भैस बराबर हैं ,धन्य है इन्होने कीमती वस्त्रों के पाट को भी ऊन बराबर ही समझा है ,पद्म्नियाँ सुबह पानी लाने जाती हैं तब जाकर  आधी रात को रुलती हुई वापस आती हैं , घर में बच्चे बिलख ते रहते हैं , धन्य है।

इन बारहठ जी को रंग रेला  का उपनाम मुग़ल सूबेदार कमाल खान ने दिया जो कि जालोर में पदस्थापित था . वीरदास जी एक कुए पर स्नान कर रहे थे उसी समय कमल खान उधर आ निकला व  अपने घोड़े को कुवे की खेल में पानी पिलाने लगा। बारहठ जी ने उसे पहचान लिया और अपनी धोती को जोर जोर से पछाट कर धोने लगे , उस के छींटे जब कमाल खां पर गिरे तो उस ने कहा , हे कूटण कुटना बंद कर ,तो बारहठ जी ने कहा :
"कुट्टन तेरो बाप" यह सुनते ही कमाल खां ने तलवार खींचली किन्तु जब बारहठ जी ने पूरी कविता सुनाई तो कमाल खां ने कहा की तुम तो रंगरेला हो तुम ने रंग का रेल बहा दिया . कविता इस प्रकार है :

कुट्टन तेरो बाप , जिकै सिरोही कुट्टी !
कुट्टन तेरो बाप ,जीके लाहोर लुट्टी  !!
कुट्टन तेरो बाप जिकै बायडगढ़ बोया !
कुट्टन तेरो बाप , जिकै घुमंडा धबोया !!
कूटिया प्रसन खागा किता , झुंजे अर सांके धरा !
मो कुट्टण न कह कमलखां, तूं कुट्टण किणयागारा !!          


   
      

2 comments:

  1. शानदार जानकारी
    कवि रंगरेलों बहुत निर्भीक कवि थे जैसा देखते वैसा ही कविता में कहते जैसलमेर के बारे में इनकी कविता जैसलमेर रो जस के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हुई और इस कविता के पीछे उसे जेल में भी रहना पड़ा फिर भी उसने अपनी अभिव्यक्ती की स्वतंत्रता के लिए कोई समझौता नहीं किया !

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