Tuesday, November 11, 2014

सेर सलूणो चून ले सीस करै बगसीस


सेर सलूणो चून ले सीस करै बगसीस 

एक ऐतिहासिक घटना जिसको राणी लक्ष्मी कुमारी जी चुण्डावत ने अपनी पुस्तक 'गिरी ऊंचा -ऊँचा गढ़ां 'में राजस्थानी में लिखा है। कहानी की भाव भूमि व राणी साहेबा की भाषा पढ़ते ही बनती है। मैं इसका हिंदी रूपांतरण यहाँ दे रहा हूँ। अनुवाद में वो आनंद तो नही आयेगा किन्तु ज्यादातर लोग इसको पढ़ व समझ पायें इस के लिए प्रयास है।

पाली ठाकुर मुकंद सिंघजी जोधपुर के प्रधान। सारी मारवाड़ उनके हिलाने से हिले ऐसा प्रभाव। इधर जोधपुर में 

राज  महाराजा अजित सिंह जी का।  राजा व प्रधान दोनों एक से  बढ़कर एक । पत्थर से पत्थर टकराये तो आग

 निकले। अजित सिंघजी मन में पाली ठाकुर से नाराज सो चूक कर मरवाने की सोची सो  काम के बहाने पाली 

से जोधपुर बुलाया। ये पाली से रवाना हो जोधपुर के लिए चले ,पाली से ८ -१० कोस पर पहला पड़ाव दिया। गाँव 

वालों ने घास पानी की आवभगत की। साथवाले बकरे लेने के लिये रेवड़ में गए वंहा खेत में एक ढाणी 

जंहा बकरों का रेवड़ चर रहा ,एक औरत उसकी रखवाली कर रही। मुकंद सिंघजी के आदमियों ने तो न पूछा न 

ताछा व दो बकरे पकड़ लिए। रूखाली करने वाली औरत ने उनको मना किया पर वे कंहा मानने वाले। कहावत 

है " रावला घोड़ा अर बावळा सवार " यानी राजा के घोड़े और उन पर पागल सवार कोई रास्ता नही देखते व न 

किसी की सुनते हैं। 

औरत ने कहा -'बकरों पर हाथ मत डालो। धनजी -भीवजी बाहर गए हुए हैं। आने वाले ही हैं ,उन से पूछ कर ले 

जाना ,नही तो वो आपको इस धृष्टता की खबर पटक देंगे। ' 

"अरे देखे तुम्हारे धनजी -भींवजी ! खबर पटक देंगे ! जानती है, हम पाली ठाकुर मुकंद सिंघजी के आदमी हैं। "

औरत के ना -ना करते हुए दो बकरे उठा ले गए । थोड़ी देर में धनजी -भींवजी आये तो औरत ने कहा -"बेटा मेरे 

ना -ना कहने के बावजूद पाली ठाकुर के आदमी  जबरदस्ती बकरे उठा ले गए।"

धनजी -भींवजी की आंख्ये तन गयी। " हमारे बकरे जबरदस्ती उठा ले जाये। किस का मुंह है जो हमारे बकरे खा 

जाये "

दोनों उसी वक्त जैसे आये थे वैसे ही उलटे पगों मुकंद सिंघजी के डेरे की तरफ रवाना हो गए। धनजी गहलोत 

और भींवजी चौहाण ,दोनों मामा -भाणेज। सीधे पाली ठाकुर के डेरे में घुस गये। हाथों में तलवार ,मूंछे भुंवारो से 

लग रही ,मूंछो के बाल तण -तण कर रहे। बकरो के रेवड़ में जैसे सिंघ घुसता है वैसे ही दोनों मामा -भाणेज ने

डेरे में प्रवेश किया। सामने बकरो को  खाल उतार कर  लटका रखा था।  धनजी भींवजी ने तो जाते ही टंगे हुए

बकरों को उठा लिया व जैसे आये थे वैसे ही वापस निकल गये।

और जाते -जाते यह  कहते गए  की राजपूत का माल खाना आसान नही है। 

  डेरे में पाली ठाकुर के पचासो सरदार उनको देखते रह गए ,किसी की हिम्मत उनको टोकने की नही हुई। पाली

ठाकुर मुकंद सिंघजी माळा फेर रहे थे। उनकी नजर दोनों मामा -भाणेज पर पड़ी। हाथ  माळा के मणिये पर

ठहर गया। उन्होंने देखा-वे  नाहर की तरह चलते व  निशंक होकर बकरों को उतार कर ले गए वंहा बैठे पचासों

साथ वाले सरदार मुंह बाये रह गये किसी ने एक कदम आगे नही रखा।

मुकंद सिंघजी माळा फेर कर उठे व सीधे उन की ढाणी पर गये। मुकंद सिंघजी को ढाणी में आया देख धनजी -

भींवजी ने आँखों में ललकार भर सामने पग रोपे । किन्तु मुकंद सिंघजी तो सीधे डोकरी के पास गये और डोकरी

से कहा -' मैं पाली का  मकंद सिंह हूँ ,आप से एक  चीज मांगने आया हूँ ! देंगी ?

डोकरी तो पाली ठाकुर को अपने घर आया देख कर खुस हो गयी बोली 'मेरे पास क्या है जो मैं आपको दूँ  ?

मुकंद सिंघजी ने कहा - ' आपके पास दो हीरे हैं ,ये दोनों ही  रत्नो से भी बढ़ कर हैं। मैं इन को अपने भाईयों की

तरह रखूंगा। '

डोकरी ने कहा -' बापजी ये आप के ही हैं -ले जाइये। '

मुकंदसिंघजी दोनों को अपने डेरे ले आये। दूसरे दिन जोधपुर का रास्ता पकड़ा ,धनजी -भींवजी भी साथ आये।

जोधपुर में पहुंचने पर अजित सिंघजी ने मुकंदसिंघजी को किले में बुलाया। साथ में थोड़े आदमी ले ये  किले में

गये। मुकंदसिंघजी व उन के भाई रघुनाथ सिंघजी के किले में घुसते ही दरवाजा बंद कर दिया। साथ वाले बाहर

रह गये। अंदर मुकंदसिंघजी की हत्या का पूरा प्रबंध कर रखा था। छिंपिया के परबत सिंघजी व उन के साथ

 वालों ने दगे से हमला किया।

मुकंदसिंघजी के साथ वाले सभी हतप्रभ हो कर खड़े रह गए किन्तु धनजी भींवजी ने सोचा की हमारे रहते इस

तरह की चूक।   हम ने इन का नमक खाया है ,हम पर भरोस कर केऔर ऐसे अवसरों के लिए  ही तो इन्होने हमे

अपने पास रखा है. किन्तु दरवाजा बंद है क्या करें।

धनजी बोले -'देख दरवाजे के किंवाड़ तो मैं तोड़ रहा हूँ  अंदर जाकर हत्यारों की खबर तूं ले। यह कह धनजी ने तो

 उछल कर किंवाड़ों पर माथे की भेटी मारी। लोह जड़े भारी किंवाड़ चरर की आवाज के साथ टूट कर गिर गये

और साथ ही धनजी का सिर टुकड़े -टुकड़े होकर बिखर गया। भींवजी काल के अवतार की तरह अंदर घुसा ,एक

पहर तक गढ़ में रेल पेल मचादी।

पहर हेक लग पोळ ,जड़ी रही जोधाण री।
गढ़ मैं रोळा रोळ ,भली मचाई भिंवाड़ा।।
गढ़ साखी गहलोत ,कर साखी पातळ कमध।
मुकन रुघा री मौत ,भली सुधारी भींवड़ा।।
आजुणी अधरात ,महल ज रूनी मुकंन  री।
पातळ री परभात ,भली रुंवाणी भींवड़ा।
मुकनो पूछै बात ,को पातळ आया कस्यां।
सुरगापुर मै साथ ,भेळा मेल्या भींवड़ै।।


1 comment:

  1. बहुत शानदार किस्सा , धनजी -भींवजी के बारे मे नई जानकारी देने के लिए शुक्रिया हुक्म

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