Saturday, September 20, 2014

उद्दात राजपूत चरित्र की एक मिशाल -ठाकुर नवल सिंह नवलगढ़ का भात भरने के संबध में एक आख्यान -

उद्दात राजपूत चरित्र  की एक मिशाल -ठाकुर नवल सिंह नवलगढ़ का भात भरने के संबध में एक वाकिया  -

१७७४ ई में मुग़ल बादशाह ने  एक फरमान जारी कर  शेखावाटी के सरदारों  नवल सिंह  ,बाघ सिंह ,हनुत सिंह
,व सूरजमल आदि को रूपये साठ  हजार शाही खजाने में सालाना मामला ( कर ) के रूप में जमा करने के लिये
ताकीद की।

       १७७५ ई में पंचपाना के सरदारो ने यह तय किया कि ये रूपये सभी बराबर बाँट कर देंगे व २२००० रूपये
इकठे कर नवल सिंह  को सरकारी खजाने में  जमा कराने के लिए दे दिये।  नवल सिंह  यह रकम लेकर  दादरी
के रास्ते दिल्ली जा रहे थे।  बगड़ -सलामपुर के एक महाजन की लड़की दादरी ब्याही हुई थी उसके पीहर में कोई
 भी ज़िंदा नही था। संयोग की बात की उसी दिन उस महाजन की लड़की की लड़की की शादी हो रही थी ,जब
उसने नवल सिंह की वेशभूषा व पगड़ी देखी तो उसी अपने पीहर व संबंधियों की याद आ गयी। वह जोर -जोर से  रोने लगी ,उसने कहा की आज मेरे पीहर के परिवार में कोई होता तो भात  भरने आता। नवल सिंह को जब इस
बात की खबर हुई तो उन्होंने उस स्त्री को कहलाया की उसे दुखी होने की जरुरत नही है -उसका भाई भात भरने
आया है।  नवल सिंह ने वे बाइस हजार रूपये भात में दिये जो दिल्ली के शाही खजाने में जमा कराने थे ।

      इसका परिणाम यह हुआ की  मामला  नही चुकाने पर बादशाह ने शेखावतों पर फौज भेजी  व
मांडण के रण क्षेत्र  में भयंकर लड़ाई लड़ी गयी जिसमे भोजराज जी का शेखावतों को कोई भी ऐसा परिवार नही
था जिसमे कोई काम न आया हो।

    आज के बुद्धिमान लोग इसे पागलपन कहेंगे ,पर यही जीवन दर्शन था जिसने राजपूत जाती को मर कर भी
अमरता  प्रदान की बाकी तो उम्र पाकर सभी मरते है व खत्म हो जाते हैं।

1 comment:

  1. लेकिन अफ़सोस की कहीं भी ओर किसी भी स्कूलों के पाठ्यक्रम की किताबों मे ये सब नहीं लिखा गया। यहाँ तक की फिल्मों मे भी "ठाकुर" को विलेन ही दिखाया जाता रहा।

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