१ . एक कहावत कि चिरमिराट मिटज्या पण गिरगिराट कोनी मीटे।
एक गावं में एक स्यामी आटा मागने के लिए जाया करता था। आटा मांगने के लिए वह एक जाट के घर भी रोज जाता था। जाट के घर एक हट्टी कट्टी खुंडी भैंस थी जिसके सींग बड़े सुंदर थे। स्यामी रोज यही सोचता कि देखूं इन सींगो के बीच मेरा सिर फिट बैठता है या नही ,लेकिन वह रोज हिचक जाता। एक दिन स्यामी जी ने अवसर पाकर भैस के दोनों सींगो में अपना सिर फसा दिया। स्यामी के इस हरकत से भैस भड़क गई और स्यामी को कई दफा उपर निचे पटका।
लोगो ने पूछा यह आप को क्या सूझी जो भैंस के सींगो में सर फसादिया। स्वामीजी ने पीड़ा से कराहते हुए कहा कि " चिरमीराट तो मिट जायेगा पण गिरगिराट नही मिट रहा था। " अब इस बात का गिरगिराट नही है कि मेरा सिर फिट बैठे ग या नही।
२ . एक चमार अपने ससुराल गया। ठण्ड बहुत पड़ रही थी , उसने अपनी सासु को सुनाते हुए कहा :
दो दो मिल सोयो ठंड पडे गी भारी।
सासु भी बड़ी हुंसीयार थी ,उस ने कहा :
अलडी सागे मलडी सोसी , रामगोपल्यो था सागे !
बुढलियो डण कुवा पर सूं आसी बो पड़ रह सी मांह सागे !!
३ . "बाणया की ताखड़ी चाल्यां बो कोई कै सारे कोनी "
एक बनिया उदास मुंह अपनी दुकान पर बैठा था ,गाँव का ठाकुर उधर से निकला तो उसने पूछा सेठजी आज उदास क्यों बैठे हो। तो बनिया बोला क्या करें आज कल तकड़ी ही नही चलती। इस पर ठाकुर ने व्यंग से कहा कि कल से हमारे अस्तबल में घोड़ों की लीद तोलना शुरू करदो। बनिये ने सहर्ष स्वीकार कर लिया व दुसरे दिन अस्तबल में जाकर हर घोड़े की लीद तोलने लगा। यह देख कर घोड़ों के अधिकारी ने इस का कारण पूछा तो उसने कहा कि तुम ठिकाने से पैसा तो पूरा लेते हो पर दाना कम खिलाते हो , इसी की जाँच पड़ताल की जाएगी। अधिकारी चोरी करता था सो उसने बनिये का महिना बांध दिया और कहा की ठाकुर से मेरी शिकायत मत करना। दूसरी बार जब ठाकुर उक्त बनिए की दुकान के आगे से निकला तो बनिया प्रसन्न चित था क्यों की उसकी तकड़ी चल गयी थी।
४. बिना मांगे जो भिक्षा मिले वह दूध के समान सात्विक ,जो मागने के बाद मिले वह पानी के समान और जो भिक्षा खीचतान से मिले वह रक्त तुल्य होती है।
अणमांगी सो दूध बरोबर ,मांगी मिले सो पाणी !
व भिच्छा है रगत बरोबर ,जी में टाणाटाणी !!
५. लाख जतन अर कोड बुध , कर देखो किण कोय !
अण होणी होवे नही , होणी हो सो होय !!
६. अब तो बीरा तनै कह्ग्यो बो मन्नै भी कह्ग्यो।
एक बुढ़िया अपने सामान की गठरी उठाये किसी गाँव जा रही थी ,उसके पास से एक घुड़सवार गुजरा तो बुढ़िया ने उससे कहा की भाई थोड़ी दूर तुम इस गठरी को अपने घोड़े पर रखकर ले चलो तो मुझे कुछ आराम मिल जाये। घुड़सवार ने इनकार करते हुए कहा कि बुढ़िया माई और घुड़सवार का क्या साथ। पर थोड़ी दूर जाने के बाद उसके मन में कलुष जगा सोचा गठरी को घोड़े पर लेकर भाग चलूं ,बुढ़िया मुझे कंहा पकड़ेगी। यों सोचकर वह वापिस लोट पड़ा। इधर बुढ़िया के मन में भी बात आई कि अगर मैं घुड़सवार को गठरी देती और वो भाग जाता तो मै क्या कर लेती। वापिस लोट कर जब घुड़सवार ने कहा कि ल बूढी माई मैं तेरी गठरी थोड़ी देर अपने घोड़े पर रख कर चलता हूँ। बुढिया ने सहज भाव से कहा 'ना बीरा अब तो जीको तनै कह्गो बो मनै भी कहगो।'
७.घर बडो, बर बडो ,बडो कुह्ड दरबार , घर में एक पछेवड़ो ,ओढण आला च्यार !
एक सेठ के गरीबी आगयी बच्चो की शादी भी नही हो रही थी। दुसरे शहर में एक सेठ के लडकी थी उस ने इस सेठ का पहले काफी नाम सुन रखा था सो नाइ को लड़का देखने भेजा।खाने का तो जैसे तैसे बंदोबस्त हो गया किन्तु जब रात को सोने का समय हुआ तो बिस्तर एक ही था सो नाई को दे देदिया।नाई ने वापस आकर सेठ को कहा सब ठीक ही है केवल ओढने का पछेवडा चार जनों के बीच एक है। सेठ को बिना बोले सारी वस्तु स्थिति समझ में आ गयी।
8. जिसको अपने विषय का ज्ञान नही उस को आप उस विषय को पढ़ाने के लिए कहें तो अर्थ का अनर्थ कैसे होता है।
एक दिन स्कुल में संस्कृत के अध्यापक नही आये तो हेडमास्टर जी ने अंग्रेजी के आध्यापक को भेज दिया।गाँवो की स्कूलों में यह आम बात थी। मास्टर जी ने आते ही बच्चों को पूछा की संस्कृत के आध्यापक आज आप को क्या पढ़ाने वाले थे। बच्चों ने पुस्तक में से एक संस्कृत का श्लोक मास्टरजी को बता दिया जो इस प्रकार था :
स्त्री स्य चरित्रम पुरषस्य भाग्यम , देवो न जानाति कुतो मनुष्य।
इंग्लिश के अध्यापक ने जो उसकी व्याख्या की वह इस प्रकार थी :
स्त्री का चरित्र सुनकर या देख कर पुरुष तो भाग ही जाता है। देवता तो उस के पास ही नही जाते। अगर मनुष्य चला गया तो कुत्ता हो जाता है।
9. मतलब री मनवार, न्यूत जिमावे चूरमो !
बिन मतलब मनवार , राब न पावे राजिया !!
गर्मी में राजस्थान की राबड़ी का स्वाद और उस की सीरत का कोई जवाब नही।
गैला शब्द का हिंदी में अनुवाद नही हो सकता। बावला भी ऐसा ही शब्द है। यह पागल पण कुछ अलग तरह का है। गैला व बावला प्यार से भी कहा जाता है।
१ ० . डा . विद्यासागर शर्मा की एक कविता को नमूनों -
साग में पानी ही पानी उस में से गोता लगाकर मटर का दाना ढूढ़ लेना हर किसी के बस की बात नही ,देखिये :
"जान मांय राजलदेसर गयो जणा जोतो ,
मान्यो कोनी जिद कर'र साथै चढ़गो पोतो ,
छोरो के हो काग हो ,
तरीदार साग हो ,
मटर ल्यायो काढ'र ,मार कटोरी में गोतो !"
१ १ . आंधा स्यामी राम राम !
कै -आज तेरे ही नुतो है।
१ २ . सेफां बाई राम राम
राम-मारया तूँ मेरो नाम कैंया जाण्यो।
तेरी तो सकल ही कवै है.
13.ठाकरां टाबरा रा नाम कांई ?
परवत सिंह ,पहाड़ सिंह ,गिरवर सिंह डूंगर सिंह।
सगला भाटा ही भाटा।
फूहड़ व कर्कशा नारी के संबंध में कहावतें -
१ पुरुष बिचारो के करै ,जे घर मैं नार कुनार।
बो सिंमै दो आंगली बा फाड़ै गज च्यार।।
२ एक सेर की सोला पोई ,सवा सेर की एक।
बो निगोड्यो सोला खायगो ,मैं बापड़ी एक।.
३ इसी रांड का इसा ही जाया ,
जिसी खाट बीसा ही पाया।
४ कांसी कुति कुभरजा ,अण छेड़ी कूकन्त।
५ चाकी फोड़ूं चूल्हो फोड़ूं ,घर कै आग लगाउंगी।
चालै है तो चाल निगोड्या ,मैं तो गंगा नहाऊँगी।।
6. लूखा भोजन मग बहण, बड़का बोली नार।
मंदर चुवै टपूकड़ा पाप तणा फल च्यार।।
७. धान पुराणों घी नयो ,आज्ञा कारी नार।
पथ तुरी चढ़ चालणों ,पुण्य तणा फल च्यार।।
८. साठी चावल भैस दूध ,घर सिलवन्ती नार।
चौथी पीठ तुरंग री ,सुरग निशाणी च्यार।।
९. इज्जत भरम की कमाई करम की लुगाई सरम की।
मिश्रित कहावतें -
१ आये भाण लड़ां ,ठाली बैठी के करां।
२ आँख फरुकै दाहिणी ,लात घमूका सहणी।
आँख फरुकै बांई ,कै बीर मिलै कै सांई।।
३ एक ओरत हर चीज में पडोसी से होड़ करती थी। होली का त्योंहार पर पडोसी की होड़। उस ने पोळी यानि दरवाजा व उसमे कमरे बनवाये तो इस ने भी बनाये। अब इस को बेटा पैदा हुआ तो इस ओरत ने ताने में कहा अब होड़ में बेटा भी जण -
"होड़ां होळी ,होड़ां पोळी होड़ां बेटो जण ये भोळी। "
४ जठै भागां भागी जाय बठै भाग अगाऊ जाय।
५ बाईजी महलां सूं उतरया ,भोडळ को भळ को।
बतलाया बोलै नही, बोलै तो डबको।।
६ एक किसान की बीबी रोज खुद खीर बना कर पति के दोपहर के भोजन के लिये आने से पहले खाले ती। एक दिन किसान के हल की कुश टूट गयी सो वह घर जल्दी आ गया। पत्नी पड़ोसी के यहां गयी हुयी थी और इसे भूख लगी हुयी थी सो रसोई जाकर जब इस ने खीर देखि तो बैठ कर पूरी खा गया व लोहार के पास कुश ठीक कराने चला गया। पीछे से पत्नी आयी और पूरी बात समझ में आ गयी। अब उसने बच ने के लिए पति को ही फसा दिया। राजा के बेटे को सांप ने काट लिया ,इस औरत ने राजा को बताया की मेरा पति सांप का जहर उतारना जानता है। राजा ने उसे पकड़ बुलाया। तब उसने कहा -
" क्यूँ कुश टूटै क्यूँ घर आऊं ,क्यूँ राजा घर बैद कहाऊं।
ओरूं न खांऊँ रांड की खीर ,सहाय करी मेरा गोगा पीर।।"
गोगाजी साँपों के देवता हैं।
७ सेरे क चून उधारा री , कोई गुड देदे तो।
गटक मलीदा करल्यूं री ,कोई घी देदे तो।.
मरती पड़ती खाल्यूं री कोई करदे तो।
८ गुड कोनी गुलगला करती ,ल्याती तेल उधारो।
पण्डे में पाणी कोनी ,आटे को दुःख न्यारो।
कडायो तो मांग लियाती , बलितै को दुःख न्यारो।
९ एक औरत ने पिंजारे को रुई पीन ने के लिये दी। पिंजारे ने रुई पिंज दी। औरत जब लेने गयी तो उसे रुई ज्यादा लगी सो उसने कहा की इसको तोलने की कोई जरूरत नही है ,तुमने मेरी रुई ही तो पीनी है। पिंजरा मन ही मन हंसा और सोचा -
तोलैगी जद रोवैगी ,पलड़े घाल पजोवेगी।
१० मैं रांड कुवा मै पड़ो , थे तो जीमल्यो ,कै थारलै कुवा मैं तो मैं पड़गो।
एक किसान की बीबी रोज माल मलीदा बनावे व खाए। किसान जब दोपहर में खाना खाने आवे तो उसको सुखी रोटी कांदे के साथ पकड़ा दे। एक दिन किसान खेत से जल्दी आगया। पत्नी पड़ोस में गयी हुई थी उसने खीर चूरमा खा लिया व वंही सो गया। पत्नी पड़ोस से आई रोटी बनाई व पति को आवाज लगाई की रोटी खालो उसने कहा की तूं ही खाले। उसने रोज की तरह कहा 'मैं रांड कुवा मै पडूँ थे ही खाल्यो ,तब किसान ने कहा की आज तेरे कुये में मै पड़ गया हूँ। चुप चाप खाना खाले।
11. गुण बिन ठाकर ठीकरो ,गुण बिन मीत गंवार।
गुण बिन चंदन लाकड़ी ,गुण बिन नार कुनार।।
एक गावं में एक स्यामी आटा मागने के लिए जाया करता था। आटा मांगने के लिए वह एक जाट के घर भी रोज जाता था। जाट के घर एक हट्टी कट्टी खुंडी भैंस थी जिसके सींग बड़े सुंदर थे। स्यामी रोज यही सोचता कि देखूं इन सींगो के बीच मेरा सिर फिट बैठता है या नही ,लेकिन वह रोज हिचक जाता। एक दिन स्यामी जी ने अवसर पाकर भैस के दोनों सींगो में अपना सिर फसा दिया। स्यामी के इस हरकत से भैस भड़क गई और स्यामी को कई दफा उपर निचे पटका।
लोगो ने पूछा यह आप को क्या सूझी जो भैंस के सींगो में सर फसादिया। स्वामीजी ने पीड़ा से कराहते हुए कहा कि " चिरमीराट तो मिट जायेगा पण गिरगिराट नही मिट रहा था। " अब इस बात का गिरगिराट नही है कि मेरा सिर फिट बैठे ग या नही।
२ . एक चमार अपने ससुराल गया। ठण्ड बहुत पड़ रही थी , उसने अपनी सासु को सुनाते हुए कहा :
दो दो मिल सोयो ठंड पडे गी भारी।
सासु भी बड़ी हुंसीयार थी ,उस ने कहा :
अलडी सागे मलडी सोसी , रामगोपल्यो था सागे !
बुढलियो डण कुवा पर सूं आसी बो पड़ रह सी मांह सागे !!
३ . "बाणया की ताखड़ी चाल्यां बो कोई कै सारे कोनी "
एक बनिया उदास मुंह अपनी दुकान पर बैठा था ,गाँव का ठाकुर उधर से निकला तो उसने पूछा सेठजी आज उदास क्यों बैठे हो। तो बनिया बोला क्या करें आज कल तकड़ी ही नही चलती। इस पर ठाकुर ने व्यंग से कहा कि कल से हमारे अस्तबल में घोड़ों की लीद तोलना शुरू करदो। बनिये ने सहर्ष स्वीकार कर लिया व दुसरे दिन अस्तबल में जाकर हर घोड़े की लीद तोलने लगा। यह देख कर घोड़ों के अधिकारी ने इस का कारण पूछा तो उसने कहा कि तुम ठिकाने से पैसा तो पूरा लेते हो पर दाना कम खिलाते हो , इसी की जाँच पड़ताल की जाएगी। अधिकारी चोरी करता था सो उसने बनिये का महिना बांध दिया और कहा की ठाकुर से मेरी शिकायत मत करना। दूसरी बार जब ठाकुर उक्त बनिए की दुकान के आगे से निकला तो बनिया प्रसन्न चित था क्यों की उसकी तकड़ी चल गयी थी।
४. बिना मांगे जो भिक्षा मिले वह दूध के समान सात्विक ,जो मागने के बाद मिले वह पानी के समान और जो भिक्षा खीचतान से मिले वह रक्त तुल्य होती है।
अणमांगी सो दूध बरोबर ,मांगी मिले सो पाणी !
व भिच्छा है रगत बरोबर ,जी में टाणाटाणी !!
५. लाख जतन अर कोड बुध , कर देखो किण कोय !
अण होणी होवे नही , होणी हो सो होय !!
६. अब तो बीरा तनै कह्ग्यो बो मन्नै भी कह्ग्यो।
एक बुढ़िया अपने सामान की गठरी उठाये किसी गाँव जा रही थी ,उसके पास से एक घुड़सवार गुजरा तो बुढ़िया ने उससे कहा की भाई थोड़ी दूर तुम इस गठरी को अपने घोड़े पर रखकर ले चलो तो मुझे कुछ आराम मिल जाये। घुड़सवार ने इनकार करते हुए कहा कि बुढ़िया माई और घुड़सवार का क्या साथ। पर थोड़ी दूर जाने के बाद उसके मन में कलुष जगा सोचा गठरी को घोड़े पर लेकर भाग चलूं ,बुढ़िया मुझे कंहा पकड़ेगी। यों सोचकर वह वापिस लोट पड़ा। इधर बुढ़िया के मन में भी बात आई कि अगर मैं घुड़सवार को गठरी देती और वो भाग जाता तो मै क्या कर लेती। वापिस लोट कर जब घुड़सवार ने कहा कि ल बूढी माई मैं तेरी गठरी थोड़ी देर अपने घोड़े पर रख कर चलता हूँ। बुढिया ने सहज भाव से कहा 'ना बीरा अब तो जीको तनै कह्गो बो मनै भी कहगो।'
७.घर बडो, बर बडो ,बडो कुह्ड दरबार , घर में एक पछेवड़ो ,ओढण आला च्यार !
एक सेठ के गरीबी आगयी बच्चो की शादी भी नही हो रही थी। दुसरे शहर में एक सेठ के लडकी थी उस ने इस सेठ का पहले काफी नाम सुन रखा था सो नाइ को लड़का देखने भेजा।खाने का तो जैसे तैसे बंदोबस्त हो गया किन्तु जब रात को सोने का समय हुआ तो बिस्तर एक ही था सो नाई को दे देदिया।नाई ने वापस आकर सेठ को कहा सब ठीक ही है केवल ओढने का पछेवडा चार जनों के बीच एक है। सेठ को बिना बोले सारी वस्तु स्थिति समझ में आ गयी।
8. जिसको अपने विषय का ज्ञान नही उस को आप उस विषय को पढ़ाने के लिए कहें तो अर्थ का अनर्थ कैसे होता है।
एक दिन स्कुल में संस्कृत के अध्यापक नही आये तो हेडमास्टर जी ने अंग्रेजी के आध्यापक को भेज दिया।गाँवो की स्कूलों में यह आम बात थी। मास्टर जी ने आते ही बच्चों को पूछा की संस्कृत के आध्यापक आज आप को क्या पढ़ाने वाले थे। बच्चों ने पुस्तक में से एक संस्कृत का श्लोक मास्टरजी को बता दिया जो इस प्रकार था :
स्त्री स्य चरित्रम पुरषस्य भाग्यम , देवो न जानाति कुतो मनुष्य।
इंग्लिश के अध्यापक ने जो उसकी व्याख्या की वह इस प्रकार थी :
स्त्री का चरित्र सुनकर या देख कर पुरुष तो भाग ही जाता है। देवता तो उस के पास ही नही जाते। अगर मनुष्य चला गया तो कुत्ता हो जाता है।
9. मतलब री मनवार, न्यूत जिमावे चूरमो !
बिन मतलब मनवार , राब न पावे राजिया !!
गर्मी में राजस्थान की राबड़ी का स्वाद और उस की सीरत का कोई जवाब नही।
गैला शब्द का हिंदी में अनुवाद नही हो सकता। बावला भी ऐसा ही शब्द है। यह पागल पण कुछ अलग तरह का है। गैला व बावला प्यार से भी कहा जाता है।
१ ० . डा . विद्यासागर शर्मा की एक कविता को नमूनों -
साग में पानी ही पानी उस में से गोता लगाकर मटर का दाना ढूढ़ लेना हर किसी के बस की बात नही ,देखिये :
"जान मांय राजलदेसर गयो जणा जोतो ,
मान्यो कोनी जिद कर'र साथै चढ़गो पोतो ,
छोरो के हो काग हो ,
तरीदार साग हो ,
मटर ल्यायो काढ'र ,मार कटोरी में गोतो !"
१ १ . आंधा स्यामी राम राम !
कै -आज तेरे ही नुतो है।
१ २ . सेफां बाई राम राम
राम-मारया तूँ मेरो नाम कैंया जाण्यो।
तेरी तो सकल ही कवै है.
13.ठाकरां टाबरा रा नाम कांई ?
परवत सिंह ,पहाड़ सिंह ,गिरवर सिंह डूंगर सिंह।
सगला भाटा ही भाटा।
फूहड़ व कर्कशा नारी के संबंध में कहावतें -
१ पुरुष बिचारो के करै ,जे घर मैं नार कुनार।
बो सिंमै दो आंगली बा फाड़ै गज च्यार।।
२ एक सेर की सोला पोई ,सवा सेर की एक।
बो निगोड्यो सोला खायगो ,मैं बापड़ी एक।.
३ इसी रांड का इसा ही जाया ,
जिसी खाट बीसा ही पाया।
४ कांसी कुति कुभरजा ,अण छेड़ी कूकन्त।
५ चाकी फोड़ूं चूल्हो फोड़ूं ,घर कै आग लगाउंगी।
चालै है तो चाल निगोड्या ,मैं तो गंगा नहाऊँगी।।
6. लूखा भोजन मग बहण, बड़का बोली नार।
मंदर चुवै टपूकड़ा पाप तणा फल च्यार।।
७. धान पुराणों घी नयो ,आज्ञा कारी नार।
पथ तुरी चढ़ चालणों ,पुण्य तणा फल च्यार।।
८. साठी चावल भैस दूध ,घर सिलवन्ती नार।
चौथी पीठ तुरंग री ,सुरग निशाणी च्यार।।
९. इज्जत भरम की कमाई करम की लुगाई सरम की।
मिश्रित कहावतें -
१ आये भाण लड़ां ,ठाली बैठी के करां।
२ आँख फरुकै दाहिणी ,लात घमूका सहणी।
आँख फरुकै बांई ,कै बीर मिलै कै सांई।।
३ एक ओरत हर चीज में पडोसी से होड़ करती थी। होली का त्योंहार पर पडोसी की होड़। उस ने पोळी यानि दरवाजा व उसमे कमरे बनवाये तो इस ने भी बनाये। अब इस को बेटा पैदा हुआ तो इस ओरत ने ताने में कहा अब होड़ में बेटा भी जण -
"होड़ां होळी ,होड़ां पोळी होड़ां बेटो जण ये भोळी। "
४ जठै भागां भागी जाय बठै भाग अगाऊ जाय।
५ बाईजी महलां सूं उतरया ,भोडळ को भळ को।
बतलाया बोलै नही, बोलै तो डबको।।
६ एक किसान की बीबी रोज खुद खीर बना कर पति के दोपहर के भोजन के लिये आने से पहले खाले ती। एक दिन किसान के हल की कुश टूट गयी सो वह घर जल्दी आ गया। पत्नी पड़ोसी के यहां गयी हुयी थी और इसे भूख लगी हुयी थी सो रसोई जाकर जब इस ने खीर देखि तो बैठ कर पूरी खा गया व लोहार के पास कुश ठीक कराने चला गया। पीछे से पत्नी आयी और पूरी बात समझ में आ गयी। अब उसने बच ने के लिए पति को ही फसा दिया। राजा के बेटे को सांप ने काट लिया ,इस औरत ने राजा को बताया की मेरा पति सांप का जहर उतारना जानता है। राजा ने उसे पकड़ बुलाया। तब उसने कहा -
" क्यूँ कुश टूटै क्यूँ घर आऊं ,क्यूँ राजा घर बैद कहाऊं।
ओरूं न खांऊँ रांड की खीर ,सहाय करी मेरा गोगा पीर।।"
गोगाजी साँपों के देवता हैं।
७ सेरे क चून उधारा री , कोई गुड देदे तो।
गटक मलीदा करल्यूं री ,कोई घी देदे तो।.
मरती पड़ती खाल्यूं री कोई करदे तो।
८ गुड कोनी गुलगला करती ,ल्याती तेल उधारो।
पण्डे में पाणी कोनी ,आटे को दुःख न्यारो।
कडायो तो मांग लियाती , बलितै को दुःख न्यारो।
९ एक औरत ने पिंजारे को रुई पीन ने के लिये दी। पिंजारे ने रुई पिंज दी। औरत जब लेने गयी तो उसे रुई ज्यादा लगी सो उसने कहा की इसको तोलने की कोई जरूरत नही है ,तुमने मेरी रुई ही तो पीनी है। पिंजरा मन ही मन हंसा और सोचा -
तोलैगी जद रोवैगी ,पलड़े घाल पजोवेगी।
१० मैं रांड कुवा मै पड़ो , थे तो जीमल्यो ,कै थारलै कुवा मैं तो मैं पड़गो।
एक किसान की बीबी रोज माल मलीदा बनावे व खाए। किसान जब दोपहर में खाना खाने आवे तो उसको सुखी रोटी कांदे के साथ पकड़ा दे। एक दिन किसान खेत से जल्दी आगया। पत्नी पड़ोस में गयी हुई थी उसने खीर चूरमा खा लिया व वंही सो गया। पत्नी पड़ोस से आई रोटी बनाई व पति को आवाज लगाई की रोटी खालो उसने कहा की तूं ही खाले। उसने रोज की तरह कहा 'मैं रांड कुवा मै पडूँ थे ही खाल्यो ,तब किसान ने कहा की आज तेरे कुये में मै पड़ गया हूँ। चुप चाप खाना खाले।
11. गुण बिन ठाकर ठीकरो ,गुण बिन मीत गंवार।
गुण बिन चंदन लाकड़ी ,गुण बिन नार कुनार।।
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