Saturday, June 15, 2013

बादळी - चन्द्र सिंह जी बिरकाली

बादळी - (चन्द्र सिंह जी बिरकाली )
राजस्थानी के प्रसिद्ध कवि  चन्द्र सिंह जी बिरकाली की काव्य कृति " बादळी " एक कालजयी रचना है। राजस्थान में वर्षा का महत्व जो भुक्त भोगी है वो ही समझ सकता है। राजस्थान में तो कहावत है कि ' मेहा तो बरसंता ही भला होणी व सो होय ' ग्रामीण परिवेश में आज भी मेह की उडीक होती है क्यों कि आशीर्वाद आट्टा पैकेट में नही मिलता। अनाज खेत से ही आता है।
लम्बी कविता में से कंही कंही से यहाँ उधृत है -

आठूँ पोर उडिकता , बीते दिन ज्यूँ मास !
दरसण दे अब बादळी , मत मुरधर नै तास !!

आस लगायाँ मरुधरा ,देख रही दिन रात !
भागी आ बादळी , आई रुत बरसात  !!

कोरा कोरा धोरिया , डूगा डूगा डैर  !
आय रमां ऐ बादळी , ले ले मुरधर लहर !!

ग्रीखम रुत दाझी धरा , कलप रही दिन रात !
मेह मिलावण बादळी , बरस बरस बरसात !!

नही नदी नाल़ा अठे , नहीं सरवर सरसाय  !
एक आसरो बादळी , मरू सूकी मत जाय !!

खो मत जीवण बावळी , डूंगर खोहाँ जाय !
मिलण पुकारे मरुधरा , रम रम धोरां आय !!

नांव सुण्या सुख उपजे जिवडै हुऴस अपार !
रग रग मांचै कोड मै , दे दरसण  जिण वार !!

आयी घणी उडीकतां , मुरधर कोड करै !
पान फूल सै सुकिया , कांई भेंट धरै  !!

आयी घणी अडिकता , मुरधर कोड करै !
पान फूल सै सुकिया काईँ भेट धरै  !!

आयी आज अडिकता , ,झडिया पान ' र फूल !
सूकी डाल्यां तीणकला , मुरधर वारे समूल  !!

आतां देख उतावली , हिवडे हुयो हुलास !
सिर पर सूकी जावता , छुटी जीवण आस !!

सोनै सूरज उगियो , दिठी बादळीयां !
मुरधर लेवै वारणा ,भर भर आंखडियां !!

सूरज किरण उंतावली , मिलण धरा सूं आज !
बादळीयां रोक्याँ खड़ी , कुण जाणे किण काज !!

सूरज ढकियो बादल्याँ , पडिया पडद अनेक !
तडफै किरणा बापड़ी , छिकै न पड़दो एक !!

सूरजमुखी सै सुकिया ,कंवल रह्या कुमालय !
राख्यो सुगणे सूरज नै ,    बादलीयां बिलमाय !!

छिनेक सूरज निखलियो , बिखरी बदलियाँ !
      

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