झाझड
राजा रायसल के चतुर्थ पुत्र भोजराज का जन्म विक्रमी सम्वत 1624 की भाद्रपद शुक्ला एकादशी के दिन हुआ।
ये मेड़ता के शासक राठोड राव विरमदेव के कनिष्ट पुत्र जगमाल के दोहित्र थे। किशोरावस्था में ही भोजराज
को खंडेला में रख कर वहां के शासन प्रबंध के कार्य पर नियुक्त कर दिया गया था। रायसल जी की मृत्यु वि .
स . 1672 में हुई . भोजराज जी के अधिकार में उदयपुर परगने के 45 गाँव जो उनकी जागीर में थे के अलावा
खंडेले परगने के 12 गाँव जो उन्हें भाई बंट में मिले थे उनके स्वामित्व में थे।
भोजराज जी के तीन पुत्र थे जेष्ठ पुत्र टोडरमल के अधिकार में उदयपुर का परगना यथावत बना रहा। ठाकुर
टोडरमल अपने समय के प्रसिद्ध दातार हुये है। उदयपुर (मेवाड़ ) के महाराणा जगत सिंह प्रथम ने टोडरमल की
दानवीरता की ख्याति सुनकर अपने दरबार के चारण कवि मोघडा गाँव के हरिदास सिंढायच को उसकी
दातव्यता की परिक्षार्थ उदयपुर ( आज की उदयपुरवाटी ) भेजा। इनकी असाधारण उदारता व दातव्यता से
प्रभावित हरिदास ने निम्न दोहा स्रजित कर उन के नाम को इतिहास में अमर बना दिया :-
दोय उदयपुर उजला , दो ही दातार अव्वल !
एकज राणो जगत सिंह , दूजो टोडरमल !!
टोडरमल जी के छह पुत्रो में पुरषोतम सिंघजी जेष्ठ पुत्र थे। इनके वंशज झाझड में है। भीम सिंघजी के वंशज
मंडावरा, धमोरा , गोठडा और हरडिया में है।स्याम सिंघजी के अधिकार में डीडवाना के पास शाहपुर 12 गाँवो से
था, इनके वीर पुत्र सुजाण सिंह खंडेला के दवेमंदिर की रक्षार्थ लड़ते हुए वीरगती प्राप्त हुये। तत्पश्चात राव
जगतसिंह कासली ने शाहपुरा श्याम सिंह से छीन लिया।पैतृक गाँव छापोली भी इनके पास नही रहा, इनके
वंशज मेही मिठाई में हैं।हिम्मत सिंघजी के वंशजो के पास उदयपुर था किन्तु यह भी झुंझार सिंह के पुत्रो ने
छीन लिए।इनके वंशज आज कल कारी ,इखात्यरपुरा,पबना आदि गाँवो में है। झुंझार सिंह के पुत्र जगराम सिंह
के पुत्र शार्दुल सिंह ने 1787 वि . स . में क्यामखानी नवाब से झुंझुनू पर कब्ज़ा कर लिया। शार्दुल सिंह जी के
पुत्रो ने इसे पांच पानो में बाँट लिया जिसे पंचपना कहते है । इनके मुख्य ठिकाने नवलगढ़ ,बिसाऊ,
खेतड़ी,मंडवा , डूनलोद,अलसीसर .मलसीसर आदि है।
पुरषोतम सिंघजी को टोडरमल जी के जीवन कल में उन के छोटे भाई ने जहर दे दिया जिस से युवावस्था में
ही इनकी मृत्यु हो गयी। इनके दो संतान थी, सुरूपदे कुंवर बाईसा की शादी रतलाम महाराज कुमार से हुई।
प्रथ्वी सिंघजी ने अपनी नाबलगी में ही झाझड में गढ़ी बना कर रहना शुरू किया। विक्रमी सम्वत 1754 की
आश्विनी शुक्ल 13 को हरिपुरा के युद्ध में बादशाही सेना से रक्त रंजित युद्ध करते हुये वीर गति को प्राप्त
हुये।
ह्य उपाड़ किधो हलो , भलो हरिपुर जंग।
खागाँ खलां तिल तिल खिरियो , रंग हो पीथल रंग।।
तैं खागां साणी रगत, जुड़ मुगलाणी जंग।
झाझड जस आणी जगत , रंग भोजाणी रंग।।
धरा खंड पुर हेत खागां चंडी नाचय के।
हरिपुर रै खेत , पीथल पोढ़या भोजहर।।
हाडोती आडो बलो , दिल्ली आडा कोट।
झाझड आडो भोजहर , चढ़े नगारे चोट।।
घणी गुडातो गोड ,दादा टोडरमाल री ।
कूरम दान किरोड़ , देतो हाथी दानसी।।
झाझड में यह हमारी पृथ्वी सिंघजी से 9 वी पीढ़ी है।
ठाकुर -पृथ्वी सिंघजी
!
फतह सिंघजी -करण सिंघजी -सभासिंघजी - पदम सिंघजी
!
मालूम सिंघजी
!
स्वरुप सिंघजी (बाबाजी ) - चांद सिंघजी
!
शम्भू सिंघजी -खमाण सिंघजी - लाल सिंघजी
!
लिछमण सिंघजी -गोपाल सिंघजी -किशन सिंघजी-सुलतान सिंघजी
!
गाहड सिंघजी ( 1875 ई .-1950 ई .सन )
!
सुरजन सिंघजी ( दिसम्बर '1910 - मई '1999 )
!
रघुवीर सिंघजी -राम सिंघजी - मदन सिंह -संग्राम सिंह
!
सरोज -हेमा -गिरिराज -पृथ्वीराज
आमेर ( आज का जयपुर) राज्य के छोटे राजकुमार राव बालोजी को बरवाडा की जागीर 12 गाँवो से दी।
उनके पुत्र राव मोकल अमरसर में रहने लगे। उनके पुत्र राव शेखा ने अपने बाहुबल से आस पास के 360 गाँव जीत कर एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया व अपने पैत्रिक राज्य आमेर के बराबर हसियत बनाली।
सभी शेखावत इन्ही महाराव शेखा के वंशज हैं।उपर वर्णित राजा रायसल इनके प्रपोत्र थे। जागीर समाप्ति सन
1955 ई .स .तक पूरा शेखावाटी प्रदेश इनके वंशजों के अधिकार में था। कर्नल जेम्स टाड ने अपने राजस्थान के इतिहास में इस भूभाग का क्षेत्रफल 5000 वर्गमील माना है।
राव शेखा
!
राव रायमल
!
राव सूजा
!
राजा रायसल ( खंडेला )
!
ठाकुर भोजराज ( उदयपुर )
!
ठाकुर टोडरमल
!
कुंवर पुरषोतम सिंह
!
ठाकुर पृथ्वी सिंह ( झाझड )
!
ठाकुर सभा सिंह
!
ठाकुर मालुम सिंह
!
ठाकुर चाँद सिंह
!
ठाकुर लाल सिंह
!
ठाकुर लक्षमन सिंह
!
ठाकुर गाहड सिंह
!
ठाकुर सुरजन सिंह
!
मदन सिंह
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