एक वो मालिक थे जिनहोने मरते दम तक अपनी धरती पर किसी का कब्ज़ा नही होने दिया और एक ये धणी है जिनके जीते रहते धरती चली गई।
बाँकीदास आसीया का जन्म सन 1771 ई . में हुआ। यह अपने समय के ज़माने के डिंगल के उदभट कवी थे।
राजस्थान के राजाओं ने 1750 ई . के बाद के समय में मराठों व पिंडारियों के अत्याचारों से त्रस्त हो कर नव आगन्तुक अंग्रेजों से संधि करली। सर्वप्रथम 1798 ई . में जयपुर ने संधि की और उस के बाद तो 1817 ई . के आते आते तो सभी रियासते अंग्रेजों के आधीन हो गई। इस पराधीनता की स्थिति से कवी मन आहत हो उठा।
इस सन्दर्भ में उनका एक गीत है , जो इस प्रकार है :-
आयो इंगरेज मुलक रै ऊपर ,
आहंस लीधा खैंची उरा !
धणीया मर न दिधि धरा ,
धणीया ऊभां गई धरा !!1!!
फोजा देख न किधि फोजा ,
दोयण किया न खला डला !
खवां खाँच चूडै खावंद रै ,
उण ही चूडै गई ईल़ा !! 2 !!
छत्रपतियां लागी नह छाणत !
गढ़पतिया घर पर गुमी !
बळ नह कियो बापडा बोतां ,
जोतां जोतां गई जमी !! 3 !!
दुय चत्र मास वादियों दिखणी ,
भोम गई सो लिखत भवेस !
पूगो नही चाकरी पकड़ी ,
दीधो नही मरठो देस !! 4 !!
बाजियों भलो भरतपुर वालो ,
गाजै गजर धजर नभ गोम !
पहिला सिर साहिब रो पडियो ,
भड़ ऊभा नह दिधि भोम !! 5 !!
महि जातां चिंचाता महिलां ,
ऐ दोय मरण तणा अवसाण !
राखो रै किंहिक रजपूती ,
मरद हिन्दू की मुसलमाण !! 6 !!
पुर जोधाण उदैपुर जैपुर ,
पहू थारा खुटा परियाण !
आकै गई आवसी आंकै ,
बांकै आसल किया बखाण !!7!!
बहुत बढ़िया बखाण किया कवि ने|
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