Friday, December 19, 2014

देविदास जी ढूसर वंशीय वश्ये थे .राजा रायसल जी खण्डेला के दीवान .बहुत ही योग्य व्यक्ति।  इन्होने नीति के दोहे / कवित  लिखे हैं।  कुछ इस प्रकार हैं-

छोटे छोटे पेड़न को सुलन की बार करो,
         पातरे से पौधा जिन्हे पानी दे के पारिबो।
नीचे  गिर गये तिन्हे देदे टेक ऊँचे करो ,
                 ऊँचे बढ़ गए ते जरूर काट डारिबो।
फूले फूले -फूल सब बीन एक ठौर करो ,
               घने घने रूंख एक ठौर ते उखारिबो।
राजन को मालिन को नित्य प्रति देवीदास ,
               चार घडी रात रहे इतनो विचार बो। १।.

कौन यह देश कौन काल कौन बैरी मेरो ,
             कौन हेतु कौन मोहि ढिग तेन टारिबो।
केतो आय केतो खर्च केतो बल ,
             ताही उनमान मोहि मुखते निकारबो।
संपत के आवन को कौन मेरे अवरोध ,
              ताहि को उपाय यह दाव उर धारिबो।
राजनीति राजन को दिन प्रति देवीदास ,
              चार घडी रात रहे इतनो विचारबो।। २।.


      

3 comments:

  1. देविदास राजा सुजा रायमलोत के दीवान थे राव सुजा की म्रत्यु पर लुनकर्ण जी अमरसर की गद्दी पर बैठे पिता के समय के ,दीवान से मन में विद्वेष रखते थे सो एक दिन दीवान से सवाल किया की शाह जी " राज बड़ो क मिनख " देविदास जी ने कहा की 'राज से मिनख बड़ा अगर उस में योग्यता हो तो वो राज कायम कर लेता है .' लुनकर्ण जी ने कहा की मेरा छोटा भाई लाम्या का ठाकुर (जिसको गुजारे के बाहर गाँव मिले थे ) के पास जा रहो और मिनख बड़ा वाली बात साबित करो .ऐसा लगता है की सुजाजी के समय से ही देविदास जी रायसलजी की योग्यता से प्रभावित थे और यह बात बड़े भाई लुनकर्ण जी को कभी भी पसंद नही आई होगी .
    देविदास जी लाम्या जाकर रायसल जी को आगे बढने के लिए प्रेरित किया व अकबर के सम्माननीय सभासदों में उन की पैठ करवादी .

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  2. लाम्या का ठाकुर ही एक दिन अपनी योगता व बहादूरी से राजा रायसल दरबारी लामिया हो गये

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  3. हूक्म आप मेरे को यह बताना की क्रपा करे की राजा रायसल दरबारी खेडला की पदेवी केसे मिली बल्की आपने ही अपने लेख मे लिखा कि अपने भाई भटा बटवार मे लामिया जागीरी के सात गॉव मिल थे ओर वही से अपना राज्य का विस्तार करके शेखा जी कि तरह 360 गॉव जीत थे तो वह लामिया जागीर से ही विस्तार किया था खेडला तो उन्होन जीता था तो खेडला की पदवी केसे मिली विस्तार पुरव के बताना हुक्म

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