"शुरू में मुझे राजस्थानी साहित्य से ही लिखने की प्रेरणा मिली। इस साहित्य को पढ़ा ,सुना और समझा तब तो यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि इस साहित्य में तो राजस्थान का इतिहास गुंफित है। साहित्य को पढ़े बिना राजस्थान का इतिहास जाना ही नही जा सकता। जो एतिहासिक घटनाओं व तथ्यों का वर्णन इन रचनाओं के द्वारा प्रकाश में आता है ,वह प्रमाणिक कहे जाने वाले इतिहास ग्रंथो में भी प्राप्त नही होता। इसी कारण मैं शनै: शनै: इतिहास की तरफ उन्मुख हुआ। साहित्य में मुझे इतिहास के दर्शन हुये ,फिर तो मैंने इतिहास के लेखन में इन काव्य रचनाओं उद्धरण भी प्रमाणों के रूप में उधृत करने चालू किये जिनसे इतिहास ग्रंथो में सरसता आई ,प्रमाणिकता बढ़ी ,पढने वालों में रूचि की बढ़ोतरी हुयी। इतिहास ग्रंथो के लेखन में रही कमियों को इन काव्य रचनाओं ने पूर्ण किया। सामान्य स्तर के वीरों के इति वृतों के विषय में इतिहास ग्रन्थ मोन थे। किन्तु इन रचनाओं से वे सामान्य वीर अमर हुए।"
(सुरजन सिंह शेखावत - सुरजन सुजस पृष्ट 21 )
"आध्यत्म चिन्तन मेरे मन का प्रिय एवं उसको (मन को ) पोषण देने वाला विषय है। इससे विलग रहकर कुछ सोचना मेरे मेरे लिए आत्मतोष का विषय नही हो सकता। आनन्दाभुती के लिए यही चिन्तन मेरा आधार है ,भाव धरातल है तथा काव्य सृजन हेतु दिव्य मंच है।
(सुरजन सिंह शेखावत - सुरजन सुजस पृष्ट 22 )
डॉ.शम्भू सिंह जी मनोहर ने अपनी पुस्तक अचलदास खिंची री वचनिका -गाडण सिवदास री कही -ग्रन्थ के मुख पृष्ठ पर अंकित भावोद्गार -
"अतीत की अनमोल संपदा को प्रलोकित करने हेतु जो स्वयम दीप शिखा से तिलतिल विसर्जित होते रहे हैं ,इतिहास के महार्णव का मंथन कर अलभ्य ग्रन्थ रत्नों से जिन्होंने शारदा का चरणार्चंन किया है , उन्ही क्षत्रिय कुल के रत्न श्रीमान ठा.सा.सुरजन सिंह शेखावत झाझड़ को ,उनके दीर्घायुष्य की अनंत मंगल कामना के साथ सादर समर्पित। "
(सुरजन सिंह शेखावत - सुरजन सुजस पृष्ट 21 )
"आध्यत्म चिन्तन मेरे मन का प्रिय एवं उसको (मन को ) पोषण देने वाला विषय है। इससे विलग रहकर कुछ सोचना मेरे मेरे लिए आत्मतोष का विषय नही हो सकता। आनन्दाभुती के लिए यही चिन्तन मेरा आधार है ,भाव धरातल है तथा काव्य सृजन हेतु दिव्य मंच है।
(सुरजन सिंह शेखावत - सुरजन सुजस पृष्ट 22 )
डॉ.शम्भू सिंह जी मनोहर ने अपनी पुस्तक अचलदास खिंची री वचनिका -गाडण सिवदास री कही -ग्रन्थ के मुख पृष्ठ पर अंकित भावोद्गार -
"अतीत की अनमोल संपदा को प्रलोकित करने हेतु जो स्वयम दीप शिखा से तिलतिल विसर्जित होते रहे हैं ,इतिहास के महार्णव का मंथन कर अलभ्य ग्रन्थ रत्नों से जिन्होंने शारदा का चरणार्चंन किया है , उन्ही क्षत्रिय कुल के रत्न श्रीमान ठा.सा.सुरजन सिंह शेखावत झाझड़ को ,उनके दीर्घायुष्य की अनंत मंगल कामना के साथ सादर समर्पित। "
surjan sujas -Dr. udyveer ji sharma ki pustk se
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