Saturday, November 3, 2012

हरिपुरा का युद्ध


हरिपुरा का युद्ध 


खंडेला के राजा केशरी सिंह व मुग़ल सूबेदार अब्दुल्लाह खां के बीच अमरसर परगने के गाँव देवली व हरिपुरा

के  बीच के मैदान में भीषण रक्त रंजित युद्ध लड़ा गया जो इतिहास में हरिपुरा युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है। इस

युद्ध में प्रतापी राव शेखा के वंशजों की प्राय:सभी शाखा प्रशाखों के लड़ाकू योधाओं ने मुग़ल शाही सेना से युद्ध

लड़ते हुए प्राणों की आहुति अर्पित की थी।

शिखर वन्शोत्पति पीढ़ी वृतिका में लिखा है :-  हरिपुरा युद्ध में राजा केशरी सिंह 70 घावों से क्षत-विक्षत होकर

धराशायी हुआ।भूमि माता को अपने खून से सने मृतिका पिंड अर्पण कर अश्वमेघ यज्ञ का सा महान कार्य

करता हुआ राजा केशरी सिंह कीर्ति शेष हुआ।"
      
साहित्य एवम इतिहास के मूर्धन्य विद्वान डा . संभु सिंह मनोहर ने उस लोमहर्षक अदभुत कृत्य का उल्लेख

इस प्रकार किया है।

"महाप्रतापी राव शेखा  के वंशज शूराग्रणी केशरी सिंह खंडेला अजमेर के शाही सूबेदार से लड़ते हुए अगणित

घावों से घायल हो, रण क्षेत्र में खून से लथपथ बेहोश पड़े थे। शरीर से रक्त धाराये फूट रही थी। काफी देर बाद

जब उन्हें कुछ होश आया तो उन्होंने भूमि माता को अपना रक्त पिंड देने हेतु अपना हाथ बढाया और युद्ध क्षेत्र

से कुछ  मिट्टी ले उसमे अपना रक्त मिलाने के लिए अपने घावो को दबाया और रक्त निकालने की असफल

चेष्टा करने लगे, किन्तु उनके घावों से पहले ही काफी रक्त बह चुका था,अब रक्त कहाँ था।तब तो वीर केशरी

सिंह अपनी तलवार से शरीर के मांस पिंड काटने लगे। फिर भी रक्त नही निकला। यह देख कर उनके समीप

ही घायल पड़े उनके काका आलोदा के ठाकुर मोहकम सिंह ने पुछा -आप यह क्या कर रहे हैं।अर्ध मुर्छित

अवस्था में उतर दिया -मै धरती माता को रक्त पिण्ड अर्पण करना चाहता हूँ, पर अब मेरे शरीर में रक्त नही

रहा। यह सुन कर मोहकम सिंह ने कहा -आप के शरीर में नही रहा तो क्या हुआ मेरे शरीर में तो है। आपकी

और मेरी धमनियों में एक ही रक्त बह रहा है।लीजिये, यह कहते हुए अपने शरीर का रक्त निकाल कर उस में

  मिला दिया, जिनके पिण्ड बनाते  बनाते ही केशरी सिंह ने दम तोड़ दिया।"

                " आसन्न मृत्यु के क्षणो में भी जिस धरती के पुत्र मां वसुंधरा को अपना रक्त अर्ध्य भेंट करने की

ऐसी उत्कट साध अपने मन में संजोये रखते हो , उस धरती माता के एक एक  चप्पे के लिए यदि उन्होंने

सो सो सिर निछावर कर दिए हों तो इस में क्या आश्चर्य है। "


      

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