Sunday, September 16, 2012

हरि जेम हलाड़ो तिम हालीजै

यह डिंगल गीत पृथ्वीराज जी राठोड  बीकानेर  का है।  ये राव कल्याणमल के छोटे पुत्र थे , महाराजा रायसिंह के छोटे भाई , सम्राट अकबर के प्रमुख सेनापति ,दानवीर व डिंगल के प्रसिद्ध कवि। इनकी प्रसिद्ध कृति 'वेळी क्रिसणरुक्मणी री ' राजस्थानी साहित्य की अत्यंत देदीप्यमान व श्रेष्ठ कृति है। महाराणा प्रताप को जो दोहे इन्होने लिख भेजे वो राजस्थान में बहुत प्रसिद्ध है। नीचे लिखा गीत बड़ा ही भाव पूर्ण है। इश्वर  के प्रति गहरी 
निष्ठा का द्योतक है।


                                                      गीत 
हरी ,जेम हलाड़ी तिम हालिजे ,
                कांइ धणिया सूं  जोर क्रिपाल !
महली दिवो ,दिवो छत्र माथै ,
               देवो  सो  लेऊं  स  दयाल   !! 1 !!

भावार्थ: हरी जैसा रखेगा वसे रहना पड़ेगा , हे ! कृपालु मालिक से क्या  जोर।
           पत्नी दी,शीस पर छत्र दिया ,हे! दयालु जो दोगे व सिर माथे।

रीस  करो भांवै रलियावत ,
              गज भांवै  खर चाढ गुलाम  !
माहरै सदा ताहरी माहव ,
             रजा सजा सिर ऊपरि राम  !!2!!

भावर्थ: आप  क्रोध करो चाहे  राजी रखो , हाथी पर चढावो चाहे गधे पर।
           मेरे तो आप की ही महर है, हे !राम  आपकी रजा और सजा सिर माथे।

मूझ  उमेद  बड़ी  महमण ,
          सिन्धुर  पाखे  केम   सरै  !
चितारो  खर  सीस  चित्र  दै ,
            किसूं  पुतलिया पांण करै  !!3!!

तूं स्वामी प्रथिराज ताहरो,
           बळी बीजा को करै  विलाग !
रूड़ो जिको प्रताप रावलो,
             भून्ड़ो जिको अम्हीणो भाग !!4!1

भावार्थ: आप स्वामी हो प्रथ्विराज तो आप का ही है,दूसरी जगह क्या विलाग  करे।
           जो अच्छा है वह आप का प्रताप है,और जो भूंडा है वह मेरा भाग्य है।

                                 गंगाजी (दोहे)

काया लाग्यो काट,  सिकलीगर सुधरै नही !
निरमल होय निराट , तों भेट्यां भागीरथी  !!

भावार्थ: हे!भागीरथी काया पर लगा काट किसी भी सिकलीगर से नही सुधर सकता।
           यह तो निराट निरमल आप में स्नान करने से ही होगा।
( हमारे बचपन के दिनों तक गाँवो में सिकलीगर आते थे , पीतल के बर्तनों में कलि करते थे।)


ताहरूउ अदभुत ताप , मात संसारे मानीयउ !
पाणी मुंहडइ पाप ,   जो तूं जाळइ जान्ह्वी  !!

भावार्थ :  हे माता तुम्हारे अदभुत प्रताप को सारा संसार मानता है, हे! जान्हवी तुम्हारा पानी
            मुंह में जाते ही सारे पाप जल जा ते है।


पुलियइ मग पुलिया , दरस हुवां अदरस हुवा !
जळ पईठा जळीया ,   मंदा क्रम मंदाकनी   !!

भावार्थ : झुण्ड के झुण्ड रास्ते चले जा रहे है।  रास्ते के दुःख दर्द दर्शन होने से ही अदृश्य हो गये।
            मंदाकनी के जल में घुसते ही जो मंदे कर्म है जल गये।

(दरस हुवां अदरस हुवा , मंदा कर्म मंदाकनी -  ) 




 



                 

1 comment:

  1. एक से बढ़कर एक शानदार दोहे

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