हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने
मुगल बहलोल पर जो प्रहार किया उस को मेरे स्वर्गीय पिताजी ठाकुर श्री सुरजन सिंघजी
की पुस्तक से यों का यों उध्रत कर रहा हूँ .
'हल्दीघाटी के युद्ध में मुग़ल सेना
के सेनापति कुवंर मानसिंह के hathi के aage युद्ध के मध्य भाग के रक्षकों में मुग़ल
बहलोलाखा इराकी अश्व पर चढ़ा खड़ा था . उस के मस्तक पर लोहे का टोप (सिरस्त्रान) था.
लोह जडित कड़ियों से बना कवच पहने हुए वह लोह जंजीरों
से बनी पाखर (झूल )से सज्जित घोड़े पर सवार था. अपने चेतक अश्व को प्रबल वेग से
दोडते हुए राणा को समीप आता देखकर बहलोल ने उसे युधार्थ ललकारा . राणा ने चेतक को
उठा कर बहलोल के मस्तक पर तलवार का ऐसा प्रहार किया जो खान के टोप युक्त मस्तक को
काटती कवच युक्त देह यस्ती को चीरती राणा की तलवार पाखर सहित उस के घोड़े को भी
चीरकर आरपार निकल गई . उक्त घटना के अवसर पर प्रदर्शित राणा के असीम बल और पराक्रम
की प्रसंशा में यहाँ के चारणकवियों ने गीतों की रचना कर उस रोमांचकारी धटना को
चीरस्मरणीय बना दिया .
" वीर अवसान केबान उजबेक बही, राण हथवाह दहूँ राह
राटियो.
कट झिलम सीस बख्तर बरंग अंग कट ,कटे पाखर सुरंग तुरंग कटियो
.
विगत १६ अप्रैल को मैं हल्दीघाट में था. रक्त-तलाई देखने से उन वीरों की स्मृति सजीव हो उठती है. यह दुःख होता है कि इस इलाके का इतिहास तो बड़ा समृध्द है और वर्तमान एकदम उजडा हुआ है.
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ReplyDeleteहुकम, ये धटना हल्दीघाटी की नहीं होकर दिवेर युद्ध की मानी जाती है. हेतु धन्यवाद " वीर अवसान केबान उजबेक बही, राण हथवाह दहूँ राह राटियो.
ReplyDeleteकट झिलम सीस बख्तर बरंग अंग कट ,कटे पाखर सुरंग तुरंग कटियो .
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